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सुतमर ं आतद एक करिारू । जेतह तजउ दीन्ह कीन्ह संसारू ॥ कीन्हे तस प्रथम जोति परकासू । कीन्हे तस िेतह तपरीि कैिासू ॥
कीन्हे तस अतिति, पवि, जि खेहा । कीन्हे तस बहुिै रं ि उरे हा ॥ कीन्हे तस धरिी, सरि, पिारू । कीन्हे तस बरि बरि औिारू ॥
कीन्हे तस तदि, तदिअर, सतस, रािी । कीन्हे तस िखि, िराइि-पााँिी ॥ कीन्हे तस धू प, सीउ औ छााँहा । कीन्हे तस मे घ, बीजु िेतहं मााँ हा ॥
कीन्हे तस सप्त मही बरम्हं डा । कीन्हे तस भुवि च दहो खंडा ॥ कीन्ह सबै अस जाकर दू सर छाज ि कातह ।
पतहिै िाकर िावाँ िै कथा कर ं औिातह ॥1॥
कीन्हे तस साि समु न्द अपारा । कीन्हे तस मे रु, खखखखंद पहारा ॥ कीन्हे तस िदी िार, औ झरिा । कीन्हे तस मिर मच्छ बहु बरिा ॥
कीन्हे तस सीप, मोिी जेतह भरे । कीन्हे तस बहुिै िि तिरमरे ॥ कीन्हे तस बिखाँढ औ जरर मू री । कीन्हे तस िररवर िार खजूरी ॥
कीन्हे तस साउज आरि रहईं । कीन्हे तस पं खख उडतहं जहाँ चहईं ॥ कीन्हे तस बरि सेि ओ स्यामा । कीन्हे तस भूख िींद तबसरामा ॥
कीन्हे तस पाि फूि बहु भ िू । कीन्हे तस बहु ओषद, बहु रोिू ॥ तितमख ि िाि करि ओतह,सबै कीन्ह पि एक ।
ििि अं िररख राखा बाज खंभ तबिु टे क ॥2॥
कीन्हे तस अिर कसिुरी बेिा । कीन्हे तस भीमसेि औ चीिा ॥ कीन्हे तस िाि, जो मु ख तवष बसा । कीन्हे तस मं त्र, हरै जेतह डसा ॥
कीन्हे तस अमृ ि , तजयै जो पाए । कीन्हे तस तबक्ख, मीचु जेतह खाए ॥ कीन्हे तस ऊख मीठ-रस-भरी । कीन्हे तस करू-बेि बहु फरी ॥
कीन्हे तस मधु िावै िै माखी । कीन्हे तस भ रं , पंखख औ पााँखी ॥ कीन्हे तस िोबा इं दुर चााँटी । कीन्हे तस बहुि रहतहं खति माटी ॥
कीन्हे तस राकस भूि परे िा । कीन्हे तस भोकस दे व दएिा ॥ कीन्हे तस सहस अठारह बरि बरि उपरातज ।
भुिुति दु हेतस पुति सबि कहाँ सकि साजिा सातज ॥3॥
कीन्हे तस मािु ष, तदहे तस बडाई । कीन्हे तस अन्न, भुिुति िेतहं पाई ॥ कीन्हे तस राजा भूाँजतहं राजू । कीन्हे तस हखस्त घोर िेतह साजू ॥
कीन्हे तस दरब िरब जेतह होई । कीन्हे तस िोभ, अघाइ ि कोई ॥ कीन्हे तस तजयि , सदा सब चाहा । कीन्हे तस मीचु , ि कोई रहा ॥
कीन्हे तस सु ख औ कोतट अिं दू । कीन्हे तस दु ख तचंिा औ धं दू ॥ कीन्हे तस कोइ तभखारर, कोइ धिी । कीन्हे तस साँपति तबपति पुति घिी ॥
कीन्हे तस कोई तिभरोसी, कीन्हे तस कोइ बररयार । छारतहं िें सब कीन्हे तस, पुति कीन्हे तस सब छार ॥4॥
धिपति उहै जेतहक संसारू । सबै दे इ तिति, घट ि भाँडारू ॥ जावि जिि हखस्त औ चााँटा । सब कहाँ भुिुति राति तदि बााँटा ॥
िाकर दीतठ जो सब उपराहीं । तमत्र सत्रु कोइ तबसरै िाहीं ॥ पखख पिंि ि तबसरे कोई । परिट िुपुि जहााँ िति होई ॥
भोि भुिुति बहु भााँति उपाई । सबै खवाई, आप ितहं खाई ॥ िाकर उहै जो खािा तपयिा । सब कहाँ दे इ भुिुति ओ तजयिा ॥
सबै आस-हर िाकर आसा । वह ि काहु के आस तिरासा ॥ जुि जुि दे ि घटा ितहं , उभै हाथ अस कीन्ह ।
और जो दीन्ह जिि महाँ सो सब िाकर दीन्ह ॥5॥
आतद एक बरि ं सोइ राजा । आतद ि अं ि राज जेतह छाजा ॥ सदा सरबदा राज करे ई । औ जेतह चहै राज िेतह दे ई ॥
छत्रतहं अछि, तिछत्रतहं छावा । दू सर िातहं जो सरवरर पावा ॥ परबि ढाह दे ख सब िोिू । चााँटतह करै हखस्त-सरर-जोिू ॥
बज्ांह तििकतहं मारर उडाई । तिितह बज् करर दे ई बडाई ॥ िाकर कीन्ह ि जािै कोई । करै सोइ जो तचत्त ि होई ॥
काहू भोि भुिुति सुख सारा । काहू बहुि भूख दु ख मारा ॥ सबै िाखस्त वह अहतथर, ऐस साज जे तह केर ।
एक साजे औ भााँजै , चहै साँवारै फेर ॥6॥
अिख अरूप अबरि सो किाा । वह सब सों, सब ओतह सों बिाा ॥ परिट िुपुि सो सरबतबआपी । धरमी चीन्ह, ि चीन्है पापी ॥
िा ओतह पूि ि तपिा ि मािा । िा ओतह कुटु ब ि कोई साँि िािा ॥ जिा ि काहु, ि कोइ ओतह जिा । जहाँ िति सब िाकर तसरजिा ॥
वै सब कीन्ह जहााँ िति कोई । वह ितहं कीन्ह काहु कर होई ॥ हुि पतहिे अरु अब है सोई । पुति सो रहै रहै ितहं कोई ॥
और जो होइ सो बाउर अं धा । तदि दु इ चारर मरै करर धंधा ॥ जो चाहा सो कीन्हे तस, करै जो चाहै कीन्ह ।
बरजिहार ि कोई, सबै चातह तजउ दीन्ह ॥7॥
एतह तवतध चीन्हहु करहु तियािू । जस पुराि महाँ तिखा बखािू ॥ जीउ िातहं , पै तजयै िुसाईं । कर िाहीं, पै करै सबाईं ॥
जीभ िातहं , पै सब तकछु बोिा । िि िाहीं, सब ठाहर डोिा ॥ स्रवि िातहं , पै सक तकछु सुिा । तहया िातहं पै सब तकछु िुिा ॥
ियि िातहं , पै सब तकछु दे खा । क ि भााँति अस जाइ तबसेखा ॥ है िाहीं कोइ िाकर रूपा । िा ओतह सि कोइ आतह अिू पा ॥
िा ओतह ठाउाँ , ि ओतह तबिु ठाऊाँ । रूप रे ख तबिु तिरमि िाऊ ॥ िा वह तमिा ि बेहरा, ऐस रहा भररपूरर ।
दीतठवंि कहाँ िीयरे , अं ध मू रुखतहं दू रर ॥8॥
और जो दीन्हे तस रिि अमोिा । िाकर मरम ि जािै भोिा ॥ दीन्हे तस रसिा और रस भोिू । दीन्हे तस दसि जो तबहाँ सै जोिू ॥
दीन्हे तस जि दे खि कहाँ िै िा । दीन्हे तस स्रवि सुिै कहाँ बैिा ॥ दीन्हे तस कंठ बोि जेतह माहााँ । दीन्हे तस कर-पल्ल , बर बाहााँ ॥
दीन्हे तस चरि अिू प चिाहीं । सो जािइ जेतह दीन्हे तस िाहीं ॥ जोबि मरम जाि पै बूढा । तमिा ि िरुिापा जि ढूाँढााँ ॥
दु ख कर मरम ि जािै राजा । दु खी जाि जा पर दु ख बाजा ॥ काया-मरम जाि पै रोिी, भोिी रहै तितचंि ।
सब कर मरम िोसाईं (जाि) जो घट घट रहै तिं ि ॥9॥
अति अपार करिा कर करिा । बरति ि कोई पावै बरिा ॥ साि सरि ज कािद करई । धरिी समु द दु हुाँ मतस भरई ॥
जावि जि साखा बिढाखा । जावि केस रोंव पाँखख -पाखा ॥ जावि खेह रे ह दु तियाई । मे घबूाँद औ ििि िराई ॥
सब तिखिी कै तिखु संसारा । तिखख ि जाइ िति-समु द अपारा ॥ ऐस कीन्ह सब िुि परिटा । अबहुाँ समु द महाँ बूाँद ि घटा ॥
ऐस जाति मि िरब ि होई । िरब करे मि बाउर सोई ॥ बड िुिवंि िोसाईं, चहै साँवारै बेि ।
औ अस िुिी साँवारे , जो िुि करै अिे ि ॥10॥
कीन्हे तस पुरुष एक तिरमरा । िाम मु हम्मद पूि -करा ॥ प्रथम जोति तबतध िाकर साजी । औ िेतह प्रीति तसतहट उपराजी ॥
दीपक िे तस जिि कहाँ दीन्हा । भा तिरमि जि, मारि चीन्हा ॥ ज ि होि अस पुरुष उजारा । सूतझ ि परि पंथ अाँ तधयारा ॥
दु सरे ढााँवाँ दै व वै तिखे । भए धरमी जे पाढि तसखे ॥ जेतह ितहं िीन्ह जिम भरर िाऊाँ । िा कहाँ कीन्ह िरक महाँ ठाउाँ ॥
जिि बसीठ दई ओतहं कीन्हा । दु इ जि िरा िावाँ जेतह िीन्हा ॥ िुि अविुि तबतध पूछब, होइतहं िे ख औ जोख ।
वह तबिउब आिे होइ, करब जिि कर मोख ॥11॥
चारर मीि जो मु हमद ठाऊाँ । तजन्हतहं दीन्ह जि तिरमि िाऊाँ ॥ अबाबकर तसद्दीक सयािे । पतहिे तसतदक दीि वइ आिे ॥
पुति सो उमर खखिाब सुहाए । भा जि अदि दीि जो आए ॥ पुति उसमाि पंतडि बड िुिी । तिखा पुराि जो आयि सुिी ॥
च थे अिी तसंह बररयारू । स हं ाँ ि कोऊ रहा जुझारू ॥ चाररउ एक मिै, एक बािा । एक पंथ औ एक साँधािा ॥
बचि एक जो सुिा वइ सााँचा । भा परवाि दु हुाँ जि बााँचा ॥ जो पुराि तबतध पठवा सोई पढि िरं थ ।
और जो भूिे आवि सो सुति िािे पंथ ॥12॥
सेरसातह दे हिी-सुििाि । चाररउ खंड िपै जस भािू ॥ ओही छाज छाि औ पाटा । सब राजै भु इाँ धरा तििाटा ॥
जाति सूर औ खााँडे सूरा । और बुतधवंि सबै िुि पूरा ॥ सूर िवाए िवखाँड वई । सािउ दीप दु िी सब िई ॥
िह िति राज खडि करर िीन्हा । इसकंदर जुिकरि जो कीन्हा ॥ हाथ सुिेमााँ केरर अाँ िूठी । जि कहाँ दाि दीन्ह भरर मू ठी ॥
औ अति िरू भूतमपति भारी । टे क भूतम सब तसतहट साँभारी ॥ दीन्ह असीस मु हम्मद, करहु जुितह जुि राज ।
बादसाह िुम जिि के जि िुम्हार मु हिाज ॥13॥
बरि ं सूर भूतमपति राजा । भूतम ि भार सहै जेतह साजा ॥ हय िय सेि चिै जि पूरी । परबि टू तट उडतहं होइ धू री ॥
रे िु रै ति होइ रतबतहं िरासा । मािु ख पंखख िे तहं तफरर बासा ॥ भुइाँ उतड अं िररक्ख मृ िमं डा । खंड खंड धरिी बरम्हं डा ॥
डोिै ििि, इं द्र डरर कााँपा । बासुतक जाइ पिारतह चााँ पा ॥ मे रु धसमसै, समु द सुखाई । बि खाँड टू तट खेह तमि जाई ॥
अतितितहं कहाँ पािी िे इ बााँ टा । पतछितहं कहाँ ितहं कााँद ं आटा ॥ जो िढ िएउ ि काहुतह चिि होइ सो चूर ।
जब वह चढै भूतमपति सेर सातह जि सूर ॥14॥
सैयद असरफ पीर तपयारा । जेतह मोंतह पंथ दीन्ह उाँ तजयारा ॥
िे सा तहयें प्रेम कर दीया । उठी जोति भा तिरमि हीया ॥
मारि हुि अाँ तधयार जो सूझा । भा अाँ जोर, सब जािा बूझा ॥
खार समु द्र पाप मोर मे िा । बोतहि -धरम िीन्ह कै चेिा ॥
उन्ह मोर कर बूडि कै िहा । पायों िीर घाट जो अहा ॥
जाकहाँ ऐस होइ कंधारा । िुरि बेति सो पावै पारा ॥
दस्तिीर िाढे कै साथी । बह अविाह, दीन्ह िेतह हाथी ॥
चारर मीि कतब मु हमद पाए । जोरर तमिाई तसर पहुाँ चाए ॥
युसूफ मतिक पाँतडि बहु ज्ञािी । पतहिे भेद-बाि वै जािी ॥
पुति सिार कातदम मतिमाहााँ । खााँडे-दाि उभै तिति बाहााँ ॥
तमयााँ सि िे तसंघ बररयारू । बीर खेिरि खडि जुझारू ॥
सेख बडे , बड तसद्ध बखािा । तकए आदे स तसद्ध बड मािा ।
चाररउ चिुरदसा िुि पढे । औ संजोि िोसाईं िढे ॥
तबररछ होइ ज चंदि पासा । चं दि होइ बेतध िेतह बासा ॥
(1) उरे हा = तचत्रकारी । सीउ = शीि । कीन्हे तस...कैिासू = उसी ज्योति अथााि् पैिंबर मु हम्मद की प्रीति के कारण स्विा की सृति की ।
(कुराि की आयि) कैिास - तबतहश्त, स्विा । इस शब्द का प्रयोि जायसी िे बराबर इसी अथा में तकया है ।
(2)खखखखंद = तकखकंधा । तिरमरे = तिमा ि । साउज = वे जािवर तजिका तशकार तकया जािा है । आरि = आरण्य । बाज = तबिा । जैसे
दीि दु ख दाररद दिै को कृपा बाररतध बाज
(3)बेिा = खस । भीमसेि, चीिा = कमू र के भेद । िीबा = िोमडी । इं दुर=चूहा । चााँटी=चींटी । भ कस=दािव । सहस अठारह=अठारह
हजार प्रकार के जीव (इसिाम के अिु सार)
(4)भूाँजतहं =भोििे हैं । बररयार=बिवाि ।
(5) उपाई=उत्पन्न की । आस हर=तिराश ।
(6) भााँजै=भंजि करिा है , िि करिा है ।
(7) तसरजिा=रचिा ।
(8) बेहरा=अिि (तबहरिा=फटिा)।
(11) पूि करा=पूतिा मा की किा । प्रथम....उपराजी=कुराि में तिखा है तक यह संसार मु हम्मद के तिये रचा िया, मु हम्मद ि होिे िो यह
दु तिया ि होिी । जिि-बसीठ=संसार में ईश्वर का संदेसा िािे वािा , पैिंबर । िे ख जोख=कमों का तहसाब । दु सरे ठााँव....वै तिखे = ईश्वर िे
मु हम्मद को दू सरे स्थाि पर तिखा अथााि् अपिे से दू सरा दरजा तदया । पाढि = पढं ि, मं त्र, आयि । (12) तसतदक = सच्चा । दीि =धमा , मि
। बािा = रीति ,ढं ि । संधाि = खोज, उद्दे श्य, िक्ष्य
(13) छाि = छत्र । पाट = तसंहासि । सूर =शेरशाह सूर जाति का पठाि था । जुिकरि = जुिकरिैि, तसकंदर की एक अरबी उपातध कााँद
= कदा म, कीचड ।
(15) अहा = था । भई अहा = वाह वाह हुई । िाथ = िाक में पहििे की िथ । पारा = सकिा है । तििारा = अिि 2(तिणाय)।
(16)मु ख चाहा = मुाँ ह दे खिा है । आिर =अग्र, बढकर । चातह = अपेक्षाकृि (बढकर) । करा = किा। सतस च दतस=पू तणामा (मु सिमाि प्रथम
चंद्रदशाि अथााि तििीया से तितथ तिििे हैं , इससे पूतणामा को उि की च दहवीं तितथ पडिी है ।)
(17) डााँक = डं का । स ह ं ि दीन्हा = सामिा ि तकया ।
(18) िे सा =जिाया । कंधार = कणाधार, केवट । हाथी दीन्ह = हाथ तदया, बााँह का सहारा तदया । अाँ जोर = उजािा । खखखखंद = तकखकंध
पवाि ।
(19) खेवक = खेिेवािा, मल्लाह ।
(20) खेवा = िाव का बोझ । सु रखुरू = सुखारू, मु ख पर िेज धारण करिे वािे । उिाइि = जल्दी । मे रइ तिये = तमिा तिया । सैयद राजे
= सैयद राजे हातमदशाह । उन्ह हुि = उिके िारा ।
(21) ियिाहााँ = ियि से, आाँ ख से । डाभ = आम के फि के मुाँ ह पर का िीखा चेप ।चोपी ।
(22) मतिमाहााँ = मतिमाि् । उभै = उठिी है । जुझारू = योद्धा । चिुरदसा िुि = च दह तवद्याएाँ ।
(23) तबििी भजा = तबििी की (करिा हूाँ )। टू ट = त्रु तट, भूि । डिा = डु ग्गी बजािे की िकडी । िारु = (क) िािू । (ख) िािा कूाँजी =
कुाँजी । फेरे भेष = वेष बदििे हुए । िपा = िपस्वी ।
(24) आछै = है । जैसे - कह कबीर कछु अतछिो ि जतहया ।
तसंहििीप -वणाि खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
िाि ििाव बरति ितहं जाहीं । सूझै वार पार तकछु िाहीं ॥
फूिे कुमु द सेि उतजयारे । मािहुाँ उए ििि महाँ िारे ॥
उिरतहं मे घ चढतह िे इ पािी चमकतहं मच्छ बीजु कै बािी ॥
प रं तह पं ख सुसंितहं संिा । सेि पीि रािे बहु रं िा ॥
चकई चकवा केति कराहीं । तितस के तबछोह, तदितहं तमति जाहीं ॥
कुररतहं सारस करतहं हुिासा । जीवि मरि सो एकतहं पासा ॥
बोितहं सोि ढे क बििे दी । रही अबोि मीि जि-भेदी ॥
(1) बारी = बािा, स्त्री । सरिदीप-अरबवािे िंका को सरिदीप कहिे थे । भूिोिि का ठीक ज्ञाि ि होिे के कारण कतव िे स्वणादीप और
तसंहि को तभन्न तभन्न िीप मािा है । हरा = शून्य
(2) िुखार =िुषार दे श का घोडा । इं दू =इं द्र । चातह = अपेक्षा (बढकर) बतिस्बि। कतविास = स्विा ।
(3) भूतम हुि = पृथ्वी से (िे कर) िाति = िक ।
(4) पींड = जड के पास की पेडी । फुरै = सचमु च । खजहजा = खािे के फि । अिबि =तभन्न तभन्न
(5) चुहचू ही =एक छोटी तचतडया तजसे फूि सुाँघिी भी कहिे हैं । सार ं = साररका, मै िा । महरर = महोख से तमििी जुििी एक छोटी तचतडया
तजसे ग्वातिि और अहीररि भी कहिे हैं । हारा = हाि, अथवा िाचारी, दीििा ।
(6) पैि पैि पर = कदम कदम पर । पााँवरी = सीढी । ब्रह्मचार = ब्रह्मचया । सुरसिी = सरस्विी (दसिातमयों में ) खेवरा = से वडों का एक
भेद ।
(7) भईं = घूमी हैं । िरे री = चक्करदार । पाि = ऊाँचा बााँध या तकिारा, भीटा ।
(8) मे घावर = बादि की घटा । िा पाईं = पैर िक । बीजु - तबजिी ।
(9) बािी = वणा, रं ि, चमक । सोि,ढे क, बि, िेदी = िाि की तचतडया । मरतजया = जाि जोखखम में डािकर तवकट स्थािों से व्यापार की वस्तुएाँ
िािे वािे , जीवतकया, जैसे, िोिा खोर ।
(10) हरफार् ््योरी = िविी । न्योजी = िीची । खाँडवािी =कााँड का रस ।
(11) कूजा = कुब्जक । पहाडी या जंििी िुिाब तजसके फूि सफेद होिे हैं ।घिबेिी =बेिा की एक जाति । िािेसर = िािकेसर । बक री =
बकाविी । बिुचा = (िट्ठा) ढे र, रातश । तसंिार-हार = हररतसंिार । शेफातिका ।
(12) मेद = मे दा एक सुिंतधि जड । ि रा = िोरोचि । ओठाँ तव = पीठ तटकाकर ।
(13) कुहकुहाँ = कुंकुम, केसर । धवि = सफेदी । तसरी = श्री, रोिी, िाि बुकिी । बेिा =खस वा िंधबेि । बेसाहिी = खरीद ।
(14) बेसा = वेश्या । खुंभी = काि में पहििे का एक िहिा, ि ि ं या कीि । सारी = सारर, पासा । िथ = पूाँजी ।
(15) सााँठ =पूाँजी । िातठ = िि हुई । सोंधा = सुिंध द्रव्य । िााँधी = िंधी । खखर री = केवडा दे कर बााँधी हुई या कत्थे की तटतकया ।
तचरहाँ टा = बहे तिया । पखंडी = कठपुििीवािा ।
(16) कररन्ह = तदग्गजों ।
(17) पाजी = पैदि तसपाही । कोिवार । कोटपाि, कोिवाि । िुं जरर िीहा = िरज कर तिया । (18) बसेरा = तटकाि ।
(19) रहाँ ट-घरी =रहट में ििा छोटा घडा । घररयार = घंटा । घरी भरी = घडी पूरी हुई (पुरािे समय में समय जाििे के तिये पािी भरी िााँद
में एक घतडया या कटोरा महीि महीि छे द करके िैरा तदया जािा था । जब पािी भर जािे पर घतडया डूब जािी थी िब एक घडी का
बीििा मािा जािा था ।
(20) परस पखाि = स्पशामतण, पारस पत्थर । सारी =पासा ।
(20) झारर = तबल्कुि या समू ह । सरर पूज = बराबरी को पहुाँ चिा है । खडिदाि =ििवार चिािा ।
(21) बारा = िार । ठे घा = सहारा तदया । अाँ िवै = शरीर पर सहिी है ।
(22) रजबार = राजिार । समं द = बादामी रं ि का घोडा । हाँ सुि = कुम्मैि तहिाई, मे हाँदी के रं ि का और पैर कुछ कािे । भ रं = मु श्की ।
तकयाह = िाड के पके फि के रं ि का । हरे = सब्जा । कुरं ि = िाख के रं ि का या िीिा कुम्मेि । महुअ = महुए के रं ि का िरर =
िाि और सफेद तमिे रोएाँ का, िराा । कोकाह = सफेद रं ि का । बुिाह = बुल्लाह, िदा ि और पूाँछ के बाि पीिे । िाजा - िातजयािा, चाबुक
। अिमि = आिे । िुखार = िुषार दे श के घोडे , यहााँ घोडे ।
(23) दर =दरवाजा । मे द =मे दा, एक प्रकार की सुिंतधि जड । िवै = िपिा है
(24) उरे ह = तचत्र । उबेहे =चुिेहुए, बीछे हुए । कोररकै = खोद कर । बेहर बेहर = अिि अिि ।
(25) बारह-बािी = िादशवणी, सूर्य्ा की िरह चमकिे वािी ।
जन्म-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) बतिजारा = वातणज्य करिवािा, बतिया । मकु = शायद, चाहे , जैसे, ििि मिि मकु मे घतहं तमिई-िुिसी । बहोर = ि टिा । सााँतठ = पूाँजी,
धि । सुतठ = खूब ।
(2)झूरै = तिष्फि, व्यथा । कुबािी = कुबातणज्य, बुरा व्यवसाय । भूाँतज = बोआ भुिकर बीज बोया ( भूिकर बोिे से बीज िहीं जमिा )।
(3) पिंि-माँडारे = तचतडयों के मडरे में वा झाबे में । चि =चंचि, तहििा-डोििा ।
(4) माँ जूसा, डिा । कंठ = कंठा, कािी िाि िकीर जो िोिों के ििे पर होिी है । धुं ध = अं धकार । परमाँ स = दू सरे का मााँस । खाधू =
खािे वािा ।
(6) सर साजा = तचिा पर चढा; मर िया ।
(7) तबसवासी = तवश्वासघािी । िाव =िवािा है , िम्र करिा है । ि रह तिरिुिा = अपिे िुण या तक्रया के तबिा िहीं रहिा । बारतहं बार =
िार-िार
(8) तडढ = दृढ । मे रवााँ = तमिाऊाँ ।
(9) बाउर =बाविा, पििा ।
िािमिी-सुवा-संवाद-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) ओपतिवारी = चमकािे वािी । बाति =वणा । कतस = कस टी पर कसकर । िोिी, िावण्यमयी, सुंदरी । आि =शपथ, कसम ।
(2) स धं े = सुिंध से ।
(3) िमचूर = िाम्र चूड, मु िाा । "शब्द ि दे इ....िमचूरू" अथााि मु िाा कहीं पद्माविी-रूपी प्रभाि की आवाज ि दे तक हे राजा उठ! तदि
की ओर दे ख । कतव ऊपर कह चुका है तक "तदितहं ि पूजै तितस अाँ तधयारी "। धाय = दाई, धात्री । दातमिी = दासी का िाम । मयूर =
मोर । मोर िाि का शत्रु है , िािमिी के वाक्य से शुक के शत्रु होिे की ध्वति तिकििी है । `कमि' में पद्माविी की ध्वति है ।
(4) तबसरामी = मिोरं जि की वस्तु । खं तडि बैरािू =बैराग्य में चूक िया इससे िोिे का जन्म पाया । काऊ = कभी । मकु = शायद, कदातचि
। िुरय = िुरि, घोडा । िाऊ= उसकी । हरर = बंदर । िुरय...जाए = कहिे हैं तक घुडसाि में बंदर रखिे से घोडे िीरोि रहिे हैं , उिका
रोि बंदर पर जािा है । सेइ = वे ही । हत्ा और पाप ही ।
(5) कूट = कािकूट, तवष । कूटे =कूट कूटकर भरे हुए बैसाररये = बैठाइए ।
(6) िुम्ह खंतडि = िुमिे खंतडि या िि तकया । सरे ख =सज्ञाि, चिुर ,। मिी = तवचार करके ।
(7) दोहाि = दु भााग्य । तवरतच = अिु रक्त होकर । दे इ सोहाि (क) स भाग्य, (ख) सोहािा दे । परहे िी = अवहे ििा की, बेपरवाही की ।
(8) आिू = आिम, पररणाम । जोि ि जाई =रक्षा िहीं तकया जािा । तबरस = अिबि । साधा = साध या िािसा मात्र से । हीि = दीि, िम्र
।
राजा-सुआ-संवाद-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) भूआ = सेमि की रूई । मु ख राि होई = सुखारू होिा है । सरा = तचिा ।
(2) घर हूाँ िे = घर से (प्रा0 पंचमी तवभखक्त `तहिो') दु वादस बािी = बारह बािी, चोखा (िादश वणा अथााि् िादश आतदत् के समाि ) कंठा फूट
= ििे में कंठे की िकीर प्रकट हुई । सयािा हुआ ।
(3) पिंि कै मारा = तजसिे पिंि बिाकर मारा । उिंिू = ऊाँचा । तकितकिा = जि के ऊपर मछिी के तिये माँ डरािे वािा एक जिपक्षी ।
होिी =बाि, ब्यवहार ।
(4) अछरी - अप्सरा । ओिाहीं = झुकिे हैं ।
(5) करा = किा । िोि = सुंदर ।
(6) छं द = रूप रचिा । पुछार = मयूर, मोर । ििवासी = िािों का फंदा अथााि् िािपाश ।
(6) धै =धरकर । चीन्हा = तचह्न, िकीर, रे खा ।
(7) ऊतब कै सााँस िीन्ह = िं बी सााँस िी । दु हेिा = कतठि खेि । पााँव ि ठे िु = पैर से ि ठु करा, तिरस्कार ि कर । तबसेखा = ममा
िखतशख खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) साँकरैं = श्रृंखिा, जंजीर । फाँदवार = फंद में फाँसािे वािे । बति = तिछावर हैं । िू रे = िु ढाँिे या िहरिे हुए । अरघाति = महाँ क, आघ्राण ।
अस्टकुरी = अिकुििाि (ये हैं - वासुतक, िक्षक, कुिक, ककोटक, पद्म, शंखचूड, महापद्म, धिं जय )।
(2) उपराहीं = ऊपर । रुतहर = रुतधर । करवि = कर-पत्र, कुछ िोि तत्रवेणी संिम पर अपिा शरीर आरे से तचरवािे थे, इसी को करवट िे ि
कहिे थे । वहााँ एक आरा इसके तिए रखा रहिा था । काशी में भी एक स्थाि था तजसे काशी करवट कहिे हैं । िपा = िपस्वी । सोहाि
=(स भाग्य), (ख) सोहािा ।
(3) ओिी = उििी । अत्र = अस्त्र । हए = हिें, मारा
(4) सहुाँ - सामिे । हुि =था । बेझ = बेध्य, बेझा तिसािा ।
(5) उिथतहं - उछििे हैं । भवााँ =फेरा,चक्कर । अपसवााँ चहतहं = जािा चाहिे हैं , उडकर भाििा चाहिे हैं (अपस्रवण )।
(6) उितट....पि माहा = बडे बडे अडिे वािे या खस्थर रहिे वािे पि भर में उिट जािे हैं ।तफरावहीं = चक्कर दे िे हैं ।अिी =सेिा ।
बिावररं = बाणावति, िीरों की पं खक्त । साखी = वृक्ष । साखी = साक्ष्य, िवाही । रि = अरण्य ।
(7) जोिु दे उाँ = जोड तमिाउाँ । समिा में रखूाँ । पाँवारी = िोहारों का एक औजार तजससे िोहे में छे द करिे हैं । तहरकाइ िे इ = पास सटा
िे ।
(8) हीरा िे इ...उतजयारा = दााँिों की स्वेि और अधरों की अरुण ज्योति के प्रसार से जिि में उजािा होिा, कहकर कतव िे उषा या
अरुणोदय का बडा सुन्दर िूढ संकेि रखा है । मजीठ = बहुि िहरा मजीठ के रं िका िाि धार = खडी रे खा ।
(9) च क =आिे के चार दााँि । पाहि = पत्थर, हीरा । झरखक्क उठे । झिक िए । अिे क प्रकार के रत्नों के रूप में हो िए । झरखक्क उठे
= झिक िए । अिे क प्रकार के रत्नों के रूप में हो िए ।
(10) अमर = अमरकोश । भासविी = भास्विी िामक ज्योतिष का ग्रंथ । सुजिन्ह = सुजािों या चिुरों को ।
(11) सााँधे = सािे , िूाँधे, खर रा = खााँड के िड् डू । खाँड रा ।घुाँघची =िुाँजा । करमुाँ हा = कािे मुाँ हवािा
(12) ि कतहं = चमकिी है , तदखाई पडिी है । खूाँट = काि का एक िहिा । खूाँट = कोिे । खुं भी = काि का एक िहिा । कचपतचया =
कृतिका िक्षत्र तजसमें बहुि से िारे एक िुच्छे में तदखाई पडिे हैं । िोहिे = साथ में , सेवा में ।
(13) कंबु = शंख । रीसी =ईर्ष्ाा (उत्पन्न करिे वािी ) अथवा `करोसी' कैसी, जैसी; समाि । कुंदै = खराद । पुछार =मोर । सााँ च =सााँचा । भाई
=तफराई हुई खराद पर घुमाई हुई ।
(14) िाभ = िरम कल्ला । हथोरी = हथेिी । िाि =िरम । टाड = बााँह पर पहििे का एक िहिा । बेतडि = िाचिे िािे वािी एक जाति ।
पिं ार = पद्मिाि =कमि का डं ठि । ठााँवतहं ठााँव..तिं ि = कमििाि में कााँटे से होिे हैं और वह सदा पािी के ऊपर उठा रहिा है ।
(15) कचोर =कटोरे । कूाँदे = खरादे हुए । मोि = मोिा, तपटारा, तडब्बा । बारी = (क) कन्या (ख) बिीचा ।
(16) अरइि = प्रयाि में वह स्थाि जहााँ जमु िा िंिा से तमििी है । करवि = आरा । करसी = उपिे या कंडे की आि तजसमें शरीर तसझािा
बडा िप समझा जािा था ,
(17) करा = किा से, अपिे िेज से। कारे = सााँप । पन्नि पंकज....बईठ = सपा के तसर या कमि पर बैठै खंजि को दे खिे से राज्य
तमििा है , ऐसा ज्योतिष में तिखा है ।
(18) पुहुतम = पृतथवी बसा =बरट, तभड, बरैं । पररहाँ स = ईर्ष्ाा, डाह । मािहुाँ िाि.. ...िए = कमि के िाि को िोडिे पर दोिों खंडों के
बीच महीि महीि सूि ििे रह जािे हैं िािा =सूि । छु द्र-घंतटका = घुाँघरूदार करधिी ।
(19) भाँव = घूमिा है , चक्कर खािा है । खोजू = खोज, खुर का पडा हुआ तचन्ह । तहवंचि = तहमाचि । िीवह = स्त्री । समु द्र िहरर =
िहररया कपडा । झोंपा = िुच्छा । अरघति = आघ्राण, महाँ क ।
(20) फेरर =उिटकर । िाए = ििाए ।
प्रेम-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) तबसाँभरा = बेसाँभाि, बेसुध । दसवाँ अवस्था = दशम दशा, मरण । िे तिहार = प्राण िे िे वािे । हरतहं = धीरे धीरे । िरासतह =त्रास तदखािे
हैं ।
(2) िारुडी = सााँप का तबष मं त्र से उिारिे वािा । चरचतह = भााँ पिे हैं । करा = िीिा , दशा । खााँिा =घटा । रोक = रोकड,रुपया । पाठांिर
-"थोक"। बरोक = बरच्छा, फिदाि ।
(3) तवहूिा = तबहीि, तबिा । घट =शरीर । तिसाथा = तबिा साथ के । अहुठ = साढे िीि ।
(4) काि सेंति = काि से । धु व = ध्रु व । तसर दे इ....छूआ = तसर काटकर उसपर पैर रखकर खडा हो ।
(5) पोई = पकाई हुई । िुम....पोई =अब िक पकी पकाई खाई अथााि आराम चैि से रहे । पोई = पकाई हुई । साधन्ह =केवि साध या
इच्छा िे । किप्प करै =काट डािे
(6) सूरर = सूिी । तदतठयार = दे खा हुआ । दे खा हुआ । भू तस जातहं = चुरा िे जायाँ ।
(7) अहतथर -खस्थर । उजार =उजाड । बसा = बसे हुए । फतिि =फििा, फतिंिा, पिंि । भृंि = कीडा तजसके तवषय में प्रतसद्ध है तक और
पतिंिों को अपिे रूप का कर िे िा है । करा = किा , व्यापार । कैि = ओर, िरफ, अथवा केिकी ।
(8) अमृि = संसार का अच्छा से अच्छा पदाथा । तवषै = तवष िथा अध्यात्म पक्ष में तवषय । पहिे यतद संजीविी बूटी आ जायिी िो वे बचेंिे
िब राम को हिु माि जी िे ही आशा बाँधाई थी । िुिै िुरू जेतह मे व = तजस भेद िक िुरु पहुाँ चिा है , तजस ित्त्व का साक्षात्कार िुरु करिा है
।
जोिी-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) तकंिरी = छोटी सारं िी या तचकारा । िटा = तशतथि, क्षीण । मे खि = मे खिा । तसंघी = सींि का बाजा जो फूाँकिे से बजिा है । धाँ धारी
= एक में िुछी हुई िोहे की पििी कतडयााँ तजिमें उिझे हुए डोरे या क डी को िोरखपंथी साधु अद् भुि रीति से तिकािा करिे हैं ; िोरखधं धा ।
अधारी = झोिा जो दोहरा होिा है । मु द्रा = स्फतटक का कुंडि तजसे िोरखपंथी काि में बहुि बडा छे द करके पहििे हैं । उदपाि =
कमं डिु । पााँवरर = खडाऊाँ । रािा = िेरुआ ।
(2) िब दे खै = िब िो दे खे; िब ि दे ख सकिा है । सरे खा = चिुर, होशवािा । सैंिे = साँभाििी या सहे जिी है ।
(3) आि = आज्ञा, घोषणा । सााँ तटया = ड डीवािा । कटकाई = दिबि के साथ चििे की िैयारी अरकािा = अरकाि-द िि; सरदार । सााँभर
= संबि, किे ऊ । सााँतठ =पूाँजी । िुरय =िुरि । िुदर होइतह = पेश होइए । आपति चीिे आछु = अपिे चेि या होश में रह । आिमि =
आिे, पहिे से ।
(4) माया = मािा । िखच्छ = िक्ष्मी । कंथा =िुदडी । कुरहटा = मोटा कुटा अन्न । दर = दि या राजिार । पररिह = पररग्रह, पररजि,
पररवार के िोि ।
(5) तिआि = तिदाि, अं ि में । पोखख = पोषण करके । साखी भरतहं =साक्ष्य या िवाही दे िे हैं । दे ख परे वा = पक्षी की सी अपिी दशा दे खी
। कजरीबि = कदिीवि ।
(6)भाँवै = इधर-उधर घूमिी है । तजितहं ..पीठी = तजिसे जाि पहचाि हो जािी है उन्हें छोड िए के तिये द डा करिी है ।
(7) मिै =सिाह िे । िाि भाि= िरम िाजा भाि ।
(8) बारा = बािक, बेटा । खररहाि करतहं = ढे र ििािी है । अाँ दोरा = हिचि, कोिाहि
(9) पूरी = बजाकर । िेति कै =ििाकर । तििार = न्यारे , अिि । मढ = मठ
(10) सिुतिया = शकुि जिािे वािा । माछ मछिी । रूप = रूपा, चााँदी । टााँका = बरिि । म र = फूिों का मु कुट जो तववाह में दू िे को
पहिाया जािा है । िााँथे = िूथे हुए । तबररख = वृ ष, बैि । साँवररया = सााँविा, कािा । चाषु = चाष, िीिकंठ । अकासी ध री = क्षेमकरी चीि
तजसका तसर सफेद और सब अं ि िाि या खेरा होिा है । िोवा = िोमडी । कुररी = तटतटहरी । कूचा = क्र च ं , कराकुि, कूज ।
(11) तमिाि = तटकाि, पडाव । ओठातहं = उस जिह ।
(12) बटाऊ = पतथक । उबट = ऊबड-खाबड कतठि मािा । दं डाकरि = दं डकारण्य । बीझबि = सघि वि । झााँखर = काँटीिी झातडयााँ ।
तहिति =सटकर ।
(13) सरे ख =सयािा, श्रेष्ठ, चिुर । िे इ सो...साखू =शाखा डूबिे समय पत्ते को ही पकडिा है । परास =पिास, पत्ता । सहिं िी = साँिििा;
साथी । बीजाििर = तवजयाििरम् । िोंड औ कोि = जंििी जातियााँ । अाँ तधयार = अाँ जारी जो बीजापुर का एक महाि था । खटोिा =
िढमं डिा का पतिम भाि िढ काटं ि - िढ कटं ि, जबिपुर के आसपास का प्रदे श । रििपुर =तविासपुर के तजिे में आजकि है । तसंघ
दु वारा = तछं दवाडा (?)। झारखं ड =छत्तीसिढ और िोंडवािे का उत्तर भाि । स रं = चादर । सेंिी = से ।
राजा-िजपति-संवाद-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) िजपति = कतिं ि के राजाओं की पुरािी उपातध जो अब िक तवजयाििरम् (ईजाििर) के राजाओं के िाम के साथ दे खी जािी है । खेिा
चाहतहं मि की म ज में जािा चाहिे हैं । िाउ = िाव, ििाव, प्रेम ।
(2) सीस पर मााँिा = आपकी मााँ ि या आज्ञा तसर पर है । खााँिा = कमी ।तकितकिा = एक समु द्र का िाम । अकूि = अपार । बूि =बूिा,
बि । सााँभर = संबि, राह का किे वा । बेरा = िाव का बेडा । रं ििाथ ह ं = रं ि या प्रेम में जोिी हूाँ तजसका । िाथ = िकेि, रस्सी । माथ
= तसर या रुख िथा िाव का अग्रभाि ।
(4) हं स = शुद्ध आत्म-स्वरूप, उज्ज्वि हं स । मर = मरा,मृ िक । क तडया = क तडल्ला िाम का पक्षी जो पािी में से मछिी पकडकर तफर
ऊपर उडिे िििा है ।
(5) सदू रा = शादू ा ि, एक प्रकार का तसंह । आथा = अखस्त; है । सेंिी = से ।
(6) यह मि...सीऊ = यह मि शखक्त की सीमा है । दीया = तदया, हुआ, दाि, दीपक
बोतहि-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) सत्त दत्त दु हुाँ सिी = सत् या दाि दोिों में सच्चा या पक्का है ।पेिे = झोंक से चिे ।
(2) ठाटी = ठट्ठ, झंुड । उपराहीं = अतधक (बेि से)। घाि ि ििे = पसंिे बराबर भी िहीं तिििा, कुछ िहीं समझिा । घाि = घिु आ, थोडी
सी और वस्तु जो स दे के ऊपर बेचिे वािा दे िा है । चािा = एक मछिी, चेिवा । िराजी = िाराज हुई । भु इाँ बाजी = भूतम पर पडी ।
साँजूि = सावधाि, िैयार । िवेजा =बािचीि । मे जा =में ढक । कोहू = तकसी को ।
(4) ओिा = उििा । पट = पल्ला । खााँि = कसर ि करू ाँ । मर-जीया = जी पर खेिकर तवकट स्थािों से व्यापार की वस्तु (जैसे
,मोिी,तशिाजीि, कस्तूरी) िािे वािे , तजवतकया । ढाँ ढोरी = छािकर ।
साि समु द्र-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
रावि चहा स ह
ं होइ उिरर िए दस माथ ।
संकर धरा तििाट भुइाँ और को जोिीिाथ ?॥3॥
धाय तसंघ बरू खािेउ मारी । की ितस रहति अही जतस बारी ॥
जोबि सुिेउाँ की िवि बसंिू । िेतह बि परे उ हखस्त मै मंिू ॥
अब जोबि-बारी को राखा । कुंजर-तबरह तबधं सै साखा ॥
मैं जािे उाँ जोबि रस भोिू ।जोबि कतठि साँिाप तबयोिू ॥
जोबि िरुअ अपेि पहारू । सतह ि जाइ जोबि कर भारू ॥
जोबि अस मैमंि ि कोई । िवैं हखस्त ज ं आाँ कुस होई ॥
जोबि भर भाद ं जस िंिा । िहरैं दे इ, समाइ ि अं िा ॥
पररउाँ अथाह, धाय! ह ं जोबि-उदतध िाँभीर ।
िेतह तचिव चाररहु तदतस जो ितह िावै िीर ॥3॥
दहै , धाय! जोबि एतह जीऊ । जािहुाँ परा अतिति महाँ घीऊ ॥
करबि सह ं होि दु इ आधा । सतह ि जाइ जोबि कै दाधा ॥
तबरह समु द्र भरा असाँभारा । भ रं मे ति तजउ िहररन्ह मारा ॥
तबहि-िाि होइ तसर चतढ डसा । होइ अतिति चंदि महाँ बसा ॥
जोबि पंखी, तबरह तबयाधू । केहरर भयउ कुरं तिति-खाधू ॥
किक-पाति तकि जोबि कीन्हा । औटि कतठि तबरह ओतह दीन्हा ॥
जोबि-जितह तबरह-मतस छूआ । फूितहं भ रं , फरतहं भा सूआ ॥
(1) िेतह जोि साँजोिा = राजा के उस योि के संयोि या प्रभाव से । केंवाच = कतपकच्छु तजसके छू जािे से बदि में खुजिी होिी है , केमच ।
िहै बीि.....ओिाई = बीि िे कर बैठिी है तक कदातचि इसी से राि बीिे, पर उस बीि के सुर पर मोतहि होकर चंद्रमा का वाहि मृ ि
ठहर जािा है तजससे राि और बडी हो जािी है । तसंघ उरे है िािै = तसंह का तचत्र बिािे िििीहै तजससे चंद्रमा का मृ ि डरकर भािे ।
तघररि परे वा = तिरहबाज कबूिर ।धति = धन्या स्त्री । कंि ि आव तभररं ि होइ = पति रूप भृं ि आकर जब मु झे अपिे रं ि में तमिा िे िा
िभी जििे से बच सकिी हूाँ । िीप =िे प करिी हो ।
(2) तहय भा तपयर = कमि के भीिर का छत्ता पीिे रं ि का होिा है । परपीरा = दू सरे का दु ुःख या तवयोि । भ रं -दीतठ मिो िाति अकासू
= कमि पर जैसे भ रं े होिे हैं वैसे ही कमि सी पद्माविी की कािी पुितियााँ उस सूया का तवकास दे खिे को आकाश क ओर ििी हैं । भोरा
= भ्रम ।
(3) मै मंि = मदमत्त । अपेि = ि ठे ििे योग्य ।
(4) समु द्र = समु द्र सी िंभीर । िुरी = घोडी । माि = मािा हुआ, मिवािा । दु हेिा = कतठि खेि । ििि दीतठ ... िराहीं = पहिे कह
आए हैं तक "भ र-दीतठ मिो िाति अकासू " ।
(5) दाधा =दाह, जिि । होइ अतिति चंदि महाँ बसा = तवयोतियों को चंदि से भी िाप होिा प्रतसद्ध है । केहरर भएउ....खाधू = जैसे तहरिी
के तिये तसंह, वैसे ही य वि के तिये तवरह हुआ । औटि =पािी का िरम करके ख िाया जािा । मतस =कातिमा । फूितह भ रं ...सूआ =
जैसे फूि को तबिाडिे वािा भ रं ा और फि को िि करिे वािा िोिा हुआ वैसे ही य वि को िि करिे वािा तवरह हुआ ।
(6) कोरा =कोर, कोिा । पहारू = पाहरू, रक्षक ।
(7) परसों = स्पशा करू ाँ , पूजि करू
ाँ । जेतह...करसों = तजससे उस सुमेरु को हाथ से हृदय में ििाऊाँ । होइ सुभर = अतधक भरकर,
उमडकर । घटैं = हमारे शरीर को । तिकाजै =तिकम्मा ही । जोबि = य विावस्था में ।
पदमाविी-सुआ-भेंट-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) तबछोई = तबछु डा हुआ । रहस = आिन्द । तबछूिा = तबछु डा हुआ । सुहेिा = सु हैि या अिस्त िारा । झरै = छाँ ट जािा है , दू र हो जािा
है । मे ह = मे घ, बादि ।
(2) छाज ि = दह ं अच्छा िििा । पींजर-ठाटू = तपंजरे का ढााँ चा । तदि एक ..मे िा = तकसी तदि अवश्य हाथ डािे िी । िर = िरसि,
तजसमें िासा ििाकर बहे तिए तचतडया फाँसािे हैं । तचत्र =तवतचत्र । सर साज िीन्ह = तचिा पर चढा; मर िया ।
(3) मतियार = र िक,सोहाविा । अं स = अविार । रििािर = रत्नाकर, समु द्र ।
(4) तचििी = तचििारी । कंचि-करी = स्वणा कतिका । िाति = तिये, तितमत्त । मे िा पहुाँ चा । दरस के िाईं = दशाि के तिये । रािा =
अिु रक्त हुआ । ओप =दमक । िािा = िरम । पीि तक रािा = पीिा तक िाि, पीिा सोिा मध्यम और िाि चोखा मािा जािा है ।
(6) करा = किा, तकरि । बजाति = वज्ाति । अकसर = अकेिा । सावााँ =श्याम, सााँविा । काह कह ं ह . ं ..तिमे ट= =सूआ रािी से पूछिा है
तक मैं उस राजा के पास जाकर क्या संदेसा कहूाँ तजसिे ि तमटिे वािा दु ुःख उठाया है ।
(7) बािू = वणा, रं िि । छािा = मृ िचमा पर । फूि ह ं िााँथे = िुम्हारे (िुरु के) कहिे से उसके प्रेम की मािा मैं िे िूाँथ िी ।
(8) पावा पाि = तबदा होिे का बीडा पाया । चिै = चिािे के तिए । रााँधा =पास, समीप । िाकरर =रििसेि की । िुम्ह सेवा = िुम्हारी सेवा
में । अं बा = आम का फि । बसै मीि...पास = जब मछिी पकाई जािी है िब उसमें आम की खटाई पड जािी है ; इस प्रकार इस प्रकार
आम और मछिी का संयोि हो जािा है । तजस प्रकार आम और मछिी दोिों का प्रेम एक जि के साथ होिे से दोिों में प्रेम-संबंध होिा है ,
उसी प्रकार मे रा और रििसेि का प्रेम िुम पर है इससे जब दोिों तववाह के िारा एक साथ हो जायाँिे िब मैं भी वहीं रहूाँ िा । मारि = मािा
में (ििे हुए) । आतद = प्रेम का मू ि मं त्र ।
(9) फतिि = फििा ,फतिंिा । समापि = पूणा ।
बसंि-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) दे उ दे उ कै = तकसी प्रकार से, आसरा दे खिे दे खिे । हाँ कारा = बुिाया । बारी =कुमाररयााँ । िोहिे =साथ में , सेवा में ।
(2) आि = राजा की आज्ञा, ड ड ं ी । होइ मािति = श्वेि हास िारा माििी के समाि होकर । िारा-मं डि = एक वस्त्र का िाम, चााँद िारा ।
कुमोद =कुमु तदिी । आहा = वाह वाह, धन्य धन्य । छतत्तस कुरर = क्षतत्रयों के छत्तीसों कुिों की । ब तसति =बैस क्षतत्रयों की खस्त्रयााँ । बातिति =
बतियाइि । पउति =पािे वािी, आतश्रि, प िी परजा । डार =डािा ।
(4) धमारर = होिी की क्रीडा । जोहार =प्रणाम आतद । मिोरा झूमक = एक प्रकार के िीि तजसे खस्त्रयााँ झाँुड बााँधकर िािी हैं ; इसके प्रत्ेक
पद में "मिोरा झूमक हो" यह वाक्य आिा है । सैंिब = समे ट कर इकट्ठा करें िी ।
(5) जााँबु...झारा = जामु ि जो तवरह की ज्वािा से झुिसी सी तदखाई दे िी है । न्योजी = तचििोजा । खीरी = खखरिी । िुवा =िुवाक, दखक्खति
सुपारी ।
(6) कूजा = कुब्जक , सफेदजंििी िुिाब । ि री =श्वेि मखल्लका । अजािबीरो = एक बडा पेड तजसके संबंध में कहा जािा है तक उसके िीचे
जािे से आदमी को सुध-बुध भूि जािी है । पंचम = पंचम स्वर में । मादर = मदा ि, एक प्रकार का मृ दंि ।
(8) जाइ िुिािी = जा पहुाँ ची । तदयारा = िु क जो िीिे कछारों में तदखाई पडिा है ; अथवा मृ ििृष्णा । चााँप = चंपा, चंपे की महक भ रं ा िहीं
सह सकिा ।
(9) एक...दू जा = दो बार प्रणाम तकया
(10) हींतछ =इच्छा करके । अकूि = परोक्ष, आकास-वाणी । ओझा = उपाध्याय, पुजारी । पू रर =पूरी । िोझा = एक पकवाि, तपराक । खोवा =
खोव । धर =शरीर ।
(11) िंि = ित्त्व दसएाँ िछि = योतियों के बत्तीस िक्षणों में दसवााँ िक्षण `सत्' है । तपंििा = तपंििा िाडी साधिे के तिये अथवा तपंििा
िाम की अपिी रािी के कारण । कजरी आरि = कदिीबि ।
(12) कचोर = कटोरा । जोिी सहुाँ = जोिी के सामिे , जोिी की ओर । िै ि रोतप...दीन्हा =आाँ खों में ही पद्माविी के िे त्रों के मद को िे कर
बेसुध हो िया ।
(13) मकु = कदातचि् । सूि = सोया । सीर = शीिि, ठं डा । आखर =अक्षर । ठााँव = अवसर, म का । बारति रही = बचािी रही । भिू
=रं ि में भंि, उपद्रव ।
(14) िाका =उस ओर बढा। मरर भा = मर िया, मर चुका । बति भीउाँ = बति और भीम कहिािे वािा । बाज = तबिा, बिैर, छोडकर, ।
(15) तबहार = तबहार या सैर की । मे रावा = तमिि । तिखेधा = वह ऐसी तितषद्ध या बुरी बाि है । राहु =रोहू मछिी । राहु िा बेधा =
मत्स्यबेध हुआ ।
(16) जूझ ...रामा = हे बािा ! िुम्हारे तिये राम कुछ िडें िे (राम =रत्नसेि, रावण = िंधवासेि)। बारर तबधं सब =संभोि के समय श्रंिार के
अस्तव्यस्त होिे का संकेि ।बिीचा पुरतबिा = पूवा जन्म का । संजोि = फि या व्यवस्था ।
राजा-रत्नसेि-सिी-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
रोवै रिि-माि जिु चूरा । जहाँ होइ ठाढ, होइ िहाँ कूरा ॥
कहााँ बसंि औ कोतकि-बैिा । कहााँ कुसुम अति बेधा िैिा ॥
कहााँ सो मू रति परी जो डीठी । कातढ तिहे तस तजउ तहये पईठी ॥
कहााँ सो दे स दरस जेतह िाहा ?। ज ं सुबसंि करीितह काहा ?॥
पाि-तबछोह रूख जो फूिा । सो महुआ रोवै अस भुिा ॥
टपकैं महुअ आाँ सु िस परहीं । होइ महुआ बसमि ज्यों झरहीं ॥
मोर बसंि सो पदतमति बरी । जेतह तबिु भएउ बसंि उजारी ॥
(1) उकठी = सूख कर ऐंठी हुई । अथवा = अस्त हुआ । खेवरा = ख रा हुआ, तचतत्रि तकया या ििाया हुआ ।
(2) हुाँ ि =से । परजरे = जििे रहे । सर-आति = अतिबाण । सब...दािे = मािों उन्हीं अतिबाणों से झुिसकर तसंह के शरीर में दाि बि
िए हैं और बि में आि ििा करिी है । तकििे आाँ क...सोवा = जब सोया था िब वे अं क क्यों तिखे िए; दू सरे पक्ष में जब जीव अज्ञाि-
दशा में िभा में रहिा है िब भाग्य का िे ख क्यों तिखा जािा है । दमावति = दमयंिी ।
(3) कहााँ सों दे स....िाहा ? = बसंि के दशाि से िाभ उठािे वािा अच्छा दे श चातहए, सो कहााँ है ? करीि के वि में वसंि के जािे ही से
क्या ? आरति = दु ुःख । चोप =चाह ।
(4) ओद = िीिा, आद्रा । िरें दा = िैरिे वािा काठ बेडा ।
(5) िाजा = िाज, बज् । धरहरर = धर-पकड, बचाव । िोहिे = साथ या सेवा में । अपसई =िायब हो िई । तिसााँसी = बेदम । को चािै =
क ि चिावै ?
(6) हिा = था, आया था । सर = तचिा ।
(7) ककिू = एक पक्षी तजसके संबंध में प्रतसद्ध है तक आयु पूरी होिे पर वह घोंसिे में बैठकर िािे िििा है तजससे आि िि जािी है और
वह जि जािा है । पहि = पाषाण,पत्थर। पिं का = पिाँ ि, चारपाई अथवा िं का के भी आिे`पिं का' िामक कखल्पि िीप ।
पावािी-महे श-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1)कुखस्ट = कुिी, कोढी । हडावरर = अखस्त की मािा । हत्ा = मृ त्ु , काि ? रुद्र-काँवि = रुद्राक्ष । िटा = िट्टा, िोि दािा ।
(2) तिस्तर = तिस्तार, छु टकारा ।
(3) ओतह एतह बीच....पूजा = उसमें (पद्माविी में ) और इसमें कुछ अं िर रह िया है तक वह अं िर प्रेम से भर िया है और दोिों अतभन्न
हो िए हैं । रािा = ितिि, सुंदर । िोकााँ = िुझको
(4)िस =ऐसा कतबिास = स्विा । बार ं =बचाऊाँ सार ं = करू ाँ । चाह =खबर । तिरास = तजसे तकसी की आशा ि हो; जो तकसी के आसरे
का ि हो ।
(5) आछे = रहिा है । कसे = कसिे पर । िािा = प्रिीि हुआ । डभकतहं = डबडबािे है , आद्रा होिे हैं । परिट...बैिा = दोिों (पीिे मु ख
ओर िीिे िे त्र) प्रेम के बचि या बाि प्रकट करिे हैं । हत्ा दु इ = दोिों कंधों पर एक एक ।
(6) िाखा =िखा, पहचािा । मे रा = मे ि, भेंट । जो मे ट = जो इस तसद्धान्त को िहीं माििा ।
(7) िहबरा = घबराया । घािा डािा । पतदक = िाबीज, जंिर । िा पाटा =(पािी से) पट िया ।
(8) मयारू = मया करिे वािा, दयाद्रा । ईसर = ऐश्वया । ओकााँ = उसको । मू सै पेई = मू सिे पािा है । चढें ि...खूाँदी = कूदकर चढिे से
उस िार िक िहीं जा सकिा ।
(9) िाका = उसका । जो ितह ...चााँटी = जो िुरु से भेद पाकर चींटी के समाि धीरे धीरे योतियों के तपपीतिका मािा से चढिा है । पैंि =
दााँव ।
(10) िाि कै िे खा = िाड के समाि (ऊाँचा) । िोकचार = िोकाचार की । जुरै = जुट जाय ।
राजा-िढ-छें का-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) परी हूि = कोिाहि हुआ । जस घर भरे ...कीन्हा = जैसे भरे घट में चोरी करिे का तवचार चोर िे तकया हो । िाि =ििे , तभड िए ।
खेिा = तवचरिा हुआ आया । रजायसु = राजाज्ञा ।
(2) खेितहं = तबचरें , जायाँ । अस िािेहु = ऐसे काम में ििे । कोहु = क्रोध ।
(3) आएउाँ िे ई = िेिे आया हूाँ । भूजा = मे रे तिये भोि है । धरम िाइ = धमा तिए हुए , सत् सत् । भीख तिहोरा = भीख के संबंध में,
अथवा इसी भीख को मैं मााँििा हूाँ । तिरासा =आशा या कामिा से रतहि
(4) धरिी परा...चाटा = धरिी पर पडा हुआ क ि स्विा या आकाश चाटिा है ? कहावि है - " रहै भूईं औ चाटै बादर" । िोटा = िोिा ।
रोटा = दबकर िूाँधे आाँ टे की बेिी रोटी के समाि । बााँदर काटु = बंदर काटे , मु हातवरा - अथााि् जोिी का बुरा हो, जोिी चूिे में जायाँ ।
(5) सि =स । सरर पहुाँ चाव = बराबर या तठकािे पहुाँ चा दे िा है । तदखस्ट चातह....हाथू = दृति पहुाँ चिे के पहिे ही योिी का हाथ पहुाँ च जािा
है । चातह = अपेक्षा, बतिस्बि । िए =िम्र हुए ।
(6) साँजोऊ =समाि । पति =बडाई, प्रतिष्ठा जोिी....खेिे = योिी कहााँ रहिे हैं तबिा (और जिह) िए ?
(7) चाहा = चाह खबर । माझी =मध्यस्थ । िाठा जाइ = िि तकया या तमटाया जािा है । मतस =स्याही । तिखिी = िे खिी, किम । अकल्
= अकत्थ बाि ।
(8) सेवा कतह -तविय कहकर । साँवार = संवाद, हाि । बति तजउ रहा...जािा = जीव िो पहिे ही बति चढ िया था, ( इसी से िुम्हारे आिे
पर) वह शरीर ि जिा । ईस = महादे व । भाव = भािा है । आसामु खी = मु ख का आसरा दे खिे वािा ।
(9) जाि =जाििा है । सावााँ = श्याम । छूाँतछ = खािी ।
(10) िीर कंठ ितह ....तपयासा = कंठ िक पािी में रहिा है तफर भी प्यासों मरिा है । बसंदर = बैश्वािर, अति ।तबरह = तवरह से ।
रूख= तबिा िेि का ।
(12) रििारा = िाि । िै ि रकि भरर आए = चकोर और पहाडी कोतकिा की आाँ खें िाि होिी हैं ।
(13) दीन्ह पथ िहााँ = वहााँ का रास्ता बिाया मरि खेि...जहााँ = जहााँ प्राण तिछावर करिे का आिम है । उिटा पंथ = योतियों का अं ि-
मुा ख मािा; तबषयों की ओर स्वभाविुः जािे हुए मि को उिटा पीछे की ओर फेरकर िे जािे वािा मािा ।
(14) िातह कै पािी = उसकी उस तचट्ठी से । दे खु कंठ जरर ..िेरा = दे ख, कंठ जििे ििा कंठ जििे ििा (िब) उसे तिरा तदया । दे तह
पवारी = फेंक दे ।
(15) कााँचा =कच्चा । रााँचा = राँ ि िया । औतट = पिकर ।
(16) धति =स्त्री । किक पाति = सोिे का पािी । तबसाँभार = बेसुध । घािा =डािा, ििाया । किक पाति = सोिे का पािी । तबसाँभार =
बेसुध घािा = डािा, ििाया । मकु = कदातचि् ।जािे भेंट....होई = जाििे से भेंट होिी है , सोिे से िहीं ।
(17) अपिास = अपिा िाश ।
(18) तिबाहैं आाँ टा = तिबाह सकिा है । केि = केिकी । महुाँ , मैं भी । ओर तिबाहु = प्रीति को अं ि िक तिबाह ।
(19) कूरा = ढे र । तपंििा = दतक्षण िाडी । सुखमि = सुषुम्ना, मध्य िाडी । सूति समातध = शून्यसमातध । िारी = त्राटक, टकटकी । िाढ =
कतठि अवस्था ।
(20) केवा = केिकी । अिाहू भएउ = तवतदि हुआ । उदं ि = संवाद, वृत्तान्त । छािा = पत्र । सातम =स्वामी ।
(21) हिु वाँि = हिुमाि् के ऐसा बिी । तझझकार = तझडके । सहुाँ =सामिे बेहरािा =फटा ।
(22) धाँ तस िे ई = धाँ सकर िेिे के तिए । िािू =िाि, ििि । परे = दू र । बााँक = टे ढा, चक्करदार । सरिदु वार = दू सरे अथा में दशम िार ।
िंधवासेि-मं त्री-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
अबहीं करहु िुदर तमस साजू । चढतहं बजाइ जहााँ िति राजू ॥
होतहं साँजोवि कुाँवर जो भोिी । सब दर छें तक धरतहं अब जोिी ॥
च तबस िाख छ्त्रपति साजे । छपि कोतट दर बाजि बाजे ॥
बाइस सहस हखस्त तसंघिी। सकि पहार सतहि मतह हिी॥
जिि बराबर वै सब चााँपा। डरा इं द्र बासुतक तहय कााँपा॥
पदु म कोट रथ साजे आवतहं । तिरर होइ खेह ििि कहाँ धावतहं ॥
जिु भुइाँचाि चिि मतह परा। टू टी कमठ-पीतठ, तहय डरा॥
घरर चारर इतम िहि िरासी। पुति तबतध तहये जोति परिासी॥
तिसाँस ऊतभ भरर िीन्हे तस सााँसा। भा अधार, जीवि कै आसा॥
तबिवतहं सखी, छूट सतस राहू। िु म्हरी जोति जोति सब काहू॥
िू सतस-बदि जिि उतजयारी। केइ हरर िीन्ह, कीन्ह अाँ तधयारी?॥
िू िजिातमति िरब-िरे िी। अब कस आस छााँड िू, बेिी॥
िू हरर िं क हराए केहरर। अब तकि हारर करति है तहय हरर? ॥
िू कोतकि-बैिी जि मोहा। केइ व्याधा होइ िहा तिछोहा?॥
(1) सबद = व्यवस्था । सरि जाए = स्विा जािा (अवधी) सूरर =सूिी ।
(2) रााँध =पास, समीप । भवाँहीं = तफरिे हैं । अपसवहीं =जािे हैं । मरि-पंख = मृ त्ु के पंख जैसे चींटों को जमिे हैं । पारा =पारद । छरतह
= छि से, युखक्त से । बर =बि से ।
(3) िुदर = राजा के दरबार में हातजरी, मोजरा; अथवा पाठांिर `कदरमस'=युद्ध । साँजोवि = सावधाि । दर = दि , सेिा । बराबर चााँपा = पैर
से र दं कर समिि कर तदया । भुइाँचाि = भूचाि, भूकंप । अिोतप िए = िु प्त हो िए ।
(4) साका पूजी = समय पूरा हुआ । बोिा = वचि, प्रतिज्ञा । ऊभ =ऊाँचा । एतह सेंति = इससे, इसतिये । पातितह कहा...धारा =पािी में
ििवार मारिे से पािी तवदीणा िहीं होिा, वह तफर ज्यों का त्ों बराबर हो जािा है । ि तट ...मारा = जो मरिा है वही उिटा पािी (कोमि
हो ) हो जािा है । धरक = धडक । तबसम = तबषाद (अवध) । ररस अस िासी = क्रोध भी सब प्रकार िि कर तदया है ।
(7) अहा = था । अाँ िरपट = परदा, व्यवधाि । इिराहीं =इिरािे हैं , िवा करिे हैं । करू चूरू = चूर करे , पीस डािे । पै = ही । जि
जीवि...आवा =जि सा यह जीवि चंचि है , यह तदखाई िहीं दे िा है । ठाठ= रचिा, ढााँचा । काठ = जड वस्तु, शरीर ।
(8) जािरा पूजा = यात्रा सफि हुई । पाटा = तसंहासि । करवि तसर सारै = तसर पर आरा चिावै ।
(9) रोजू = रोदि, रोिा । खोजू = च कसी । अिस्त =एक िक्षत्र, जैसे, उतदि अिस्त पंथ जि सोखा । तबसम = तबिा समय के । भाँवि भाँवर
....अचेिा = डोििे हुए भ रं े अथााि् पुितियााँ तििि हो िई ।
(10) कोई = कुमु तदिी, यहााँ सखखयााँ । काि कै किा = काि के रूप । िवेिा =िया ।
(11) प ि पर = पवि के परवािा अथााि् वायुरूप । बेकरारा = बेचैि कैसहु तबरह ि छााँडै, भा सतस िहि िरास। िखि चहूाँ तदतस रोवतहं , अं धर
धरति अकास॥ अं धर = अाँ धेरा ।
(12) िू हररिं क....केहरर = िूिे तसंह से कतट छीिकर उसे हराया । हारर करति है = तिराश होिी है , तहम्मि हारिी है । तिछोहा = तिष्ठु र
।
(13) तफरर कै भ रं ....मधुबासा = भ रं ों िे तफर मधु वास तिया अथााि् कािी पुितियााँ खुिीं । बररयाईं = जबरदस्ती । दवैं = दबािा है , पीसिा
है । झााँपा = ढका हुआ । साँकेि = संकट । िहि = सूया-रूप रत्नसेि का अदशाि ।
(14) अाँकूरू = अं कुर ।काहू = कभी ।
(15) झारा = झार, ज्वािा । सराि = शिाका, सीख । िूाँजा =िरजा । दिध =दाह । उतिम = उत्तम ।
(16) दु हेिी = दु ुःखी । पिु हि = पल्लतवि होिे, पिपिे हुए
(17) िुम्ह हुाँ ि = िुम्हारे िारा । ओहट =ओट में , दू र । मे रू = मे ि, तमिाप । तमितहं ि तमिे = तमििे पर भी िहीं तमििा । दमि =दमयंिी
। मु कुि होि है = छूटिा है ।
(18) रूप िुम्हार जीउ..फेरर = िुम्हारे रूप (शरीर) मैं अपिे जीव को करके (पर-काय-प्रवेश करके) उसिे मािो दू सरा शरीर प्राप्त तकया ।
(19) करमु खी =कािे मुाँ ह वािी । िििे हा =ििि में , स्विा में । करा = जिा ।चेिा तसखद्ध सो पावै ...मे द = यह शुक का उत्तर है ।
अछे द,अभेद = भेद-भाव का त्ाि ।
(20) अिु =तफर, आिे । मोतह बूझहु ...िवेिा = िया तसद्ध बिाकर उिटा मु झसे पूछिी हो । अपसई = चि दी । सीऊ = शीि । अदे स
करै = िमस्कार करिा है ;`आदे श िुरु' यह प्रणाम में प्रचतिि है ।
(21) िे वरी = तिबटी, छूटी । तिपु रुष = पुरुषाथाहीि । सूरी =शूिी जो रत्नसेि को दी जािे वािी है । परसेद = प्रस्बेद, पसीिा । घट = घटिे पर
। बेरा = दे र, तविं ब ।
रत्नसेि-सूिी-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
कहे खन्ह साँवरु जेतह चाहतस साँवरा। हम िोतह करतहं केि कर भाँवरा॥
कहे तस ओतह साँवर ं हरर फेरा। मु ए तजयि आह ं जेतह केरा॥
औ साँवर ं पदमावति रामा । यह तजउ िे वछावरर जेतह िामा॥
रकि क बूाँद कया जस अहही। 'पदमावति पदमावति' कहही॥
रहै ि बूाँद बूाँद महाँ ठाऊाँ। परै ि सोई िे इ िे इ िाऊाँ॥
रोंब रोंब िि िास ं ओधा। सूितह सूि बेतध तजउ सोधा॥
हाडतह हाड सबद सो होई। िस िस मााँह उठै धु ति सोई॥
सुअटा भााँट दस ध
ं ी, भए तजउ पर एक ठााँव ।
चति सो जाइ अब दे ख िहाँ जहाँ बैठा रह राव ॥6॥
(1) सोहािू =स भाग्य या तववाह के िीि । राि = िाि । तबछाय = तबछावि । बंदि बंदिवार
(2) िाए = ििाए हुए । तचत्र सारहु = चंदि केसर की ख र बिाओ । अभाउ=ि मािे वािे , ि सोहिे वािे । फुिायि = फुिे ि । दिद =
दििा, ढीिा अं िरखा । पााँवरर =खडाऊाँ ।
(3) दर = दि । िोहिे =साथ में । िइ = झुककर । मतसयर = मसाि । सोतहहिा = सोहिा या सोहर िाम के िीि । मतशयार = मशाि ।
(4) जेतह कहाँ सतस िढी = तजसके तिए चंद्रमा (पद्माविी) बिाई िई । जयमार = जयमाि
(5) िाहु =िाथ, पति । तिरखख = द्दति िडाकर ।
(6) िाजा = िरजा । अस्ट भाव = आठों भावों से, कसिी = अाँ तिया । िं क =कतट और िं का । रावि =(1) रमण करिे वािा ।(2) रावण ।
झाँखी =झीखकर, पछिाकर ।
(8) तचत्तर सारी = तचत्रशािा । जोति पखे रू = पक्षी के समाि एक स्थाि पर जमकर ि रहिे वािा योिी । फूति = आिन्द से प्रफुल्ल होकर ।
िे ि िािा = साथाक हुआ , सफि हुआ, हीिे ििा ।
(9) पिवार = पत्ति । खोरा = कटोरा । मतसयार =मशाि । करा =किा ।
(10) झािर = एक प्रकार का पकवाि ,झिरा । मााँडे = एक प्रकार की चपािी । पाि = पिडी । िु चुई = मै दे की महीि पूरी । सोहारी =
पूरी । कोंवरी = मु िायम । खाँडरा = फेंटे हुए बेसि के, भाप पर पके हुए, च खूाँटे टु कडे जो रसे या दही में तभिोए जािे हैं ; किरा रसाज ।
बचका = बेसि और मै दे को एक में फेंटकर जिे बी के समाि टपका घी में छाििे हैं , तफर दू ध में तभिो कर रख दे िे हैं । एकोिर स =
एकोत्तर शि, एक स एक । कोहाँ ड री = पेठे की बरी । साँधािे = अचार । बसााँधै =सुिंतधि । मु रंडा = भुिे िेहूाँ और िुड के िड् डू; यहााँ
िड् डू । जाउरर = खीर पतछयाउरर = एक प्रकार का तसखरि या शरबि ।
(11) भूखा.....सूखा = यतद भू ख है िो रूखा-सू खा भी मािो अमृ ि है । िाद = शब्दब्रह्म, अिहि िाद ।
(12) तसराि = ठं डे हुए । पोख = पोषण ।
(13) मद = प्रेम मद । पैंड = ईश्वर की ओर िे जािे वािा मािा मोक्ष का मािा । उिमद = उन्मि । तििकर पुति...छाजा = राजधमा में रि
जो राजा हो िए हैं उिका पुण्य िू सुिे िो सोभा दे िा है । चढे ...दू म = मद चडिे पर उमंि में आकर झूमिे िििा है ।
(14) खाँडवािी = शरबि ।
(15) हार िखि....सो पाई = हार क्या पाया मािो चंद्रमा के साथ िारों को भी पाया । त्ों =साथ । घुटै कै = िााँठ को दृढ करके; जैसे,
आि िााँतठ घुतट जाय त्ों माि िााँतठ छु तट जाय ।
(16) आिु = िाए । ििरु = िहीं िो ।
(17) चहुाँ पाहााँ = चारों ओर । चााँपै पावै = दबािे पािा है ।
(18) तििावा =िारा । िच = फशा । भूिे = खो से िए । अछरी =अप्सरा ।
(19) खोरी = कटोरी । तसंधोरी =काठ की सुंदर तडतबया तजसमें खस्त्रयााँ ईंिुर या तसंदूर रखिी हैं । बीरी = दााँि राँ ििे का मं जि । पररमि
=पुषपिंध, इत्र । सुिंध-समीरी = सुिंध वायुवािा । स ध ं े = िंधद्रव्य ।
पद्माविी-रत्नसेि-भेंट-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
चिुर िारर तचि अतधक तचहूाँ टी । जहााँ पेम बाढे तकमी छूटी ॥
कुरिा काम केरर मिु हारी । कुरिा जेतहं सो ि सुिारी ॥
कुरितहं होइ कंि कर िोखू । कुरितह तकए पाव धति मोखू ॥
जेतह कुरिा सो सोहाि सुभािी । चंदि झेस साम काँठ िािी ॥
िेंद िोद कै जािहु िई । िेंद चातह धति कोमि भई ॥
दाररउाँ , दाख, बेिरस चाखा । तपय के खेि धति जीवि राखा ॥
भएउ बसंि किी मु ख खोिी । बैि सोहावि कोतकि बोिी ॥
(1) पािक = पिं ि । डासी = तबछाई । िेंडुआ = ितकया । ििसूई = िाि के िीचे रखिे का छोटा ितकया । कााँची = िोटा पट्टा । प तड
=िे टकर । सुकुवााँरर = कोमि ।
(2) िपि =िप करिे हुए । चारू =चार, रीति ,चाि । हरतद उिारर = ब्याह के िि में शरीर में जो हिदी िििी है उसे छु डाकर । रं िू =
अं िराि । छरा = ठिा िया, खोया । कर हाथ से । टू तट भइ = घाटा हुआ , हाति हुई । ठि-िाडू = तवष या िशा तमिा हुआ िड् डू तजसे
पतथकों को खखिाकर ठि िोि बेहोश करिे थे ।
(3) चााँद रहा...िराई = पतद्मिी िो रह िई ,केवि उसकी सखखयााँ तदखाई पडी । तिरधािु = तिस्सार । तबरवा िोिा = (क) अमिोिी िाम
की घास तजसे रसायिी धािु तसद्ध करिे के काम में िािे हैं । (ख) सुंदर वल्ली, पद्माविी । रूप = (क) रूपा (ख) चााँदी । क तडया =
पक्षी जो मछिी पकडिे के तिए पािी के ऊपर माँ डरािा है ।
(4) तिछोही = तिष्ठु र । जो ...ओही = जो उस िुरु (पद्माविी) को िुमिे तछपा तदया है । रााँि =रााँिा । जोरा के = (क) एक बार जोडी
तमिाकर । (ख) िोिे भर रााँिे और िोिे भर चााँदी का दो िोिे चााँदी बिािा रसातयिों की बोिी में जोडा करिा कहिािा है ।
(5) का बसाइ = क्या वश चि सकिा है ? बाज = तबिा । बर = बि ।
(6) िपा = िपस्वी । जति िे सी = ि िे । दै उ मिाउ...ओहु= = ईश्वर को मिा तक उसे (पद्माविी की ) भी वैसी ही दया हो जैसी हम
िोिों को िुझ पर आ रही है ।
(7) फूि = िाक में पहििे की िोंि । छु द्रावति = क्षुद्रघंतटका, करधिी । चूरा = कडा । च क = चार चार का समू ह । कुिीि = उत्तम ।
सुभर = शुभ्र । साँवारे = श्रृंिार को । पत्रावति = पत्रभंि रचिा । दु इज = दू ज का चंद्रमा । सु हि = सुहेि (अिस्त्य) िारा जो दू ज के चंद्रमा
के साथ तदखाई पडिा है और अरबी फारसी काव्य में प्रतसद्ध है । खूाँट = काि का एक चक्राकार िहिा । मािहुाँ दरपि ...दे खाव = मािो
आकाश-रूपी दपाण में जो चंद्रमा और िारे तदखाई पडिे हैं वे इसी पद्माविी के प्रतितबंब हैं ।
(9) खंजि....दे खा = पद्माविी का मु ख चंद्र शरद के पूणा चंद्र के समाि होकर शरद ऋिु का आभास दे िा है । हे र िाकिी है । धिु क =
इं द्रधिु ष । ओिवा =झुका, पडा । काि-कस्ट...िाति= तबरह कहिा है तक यह कािकि आ पडा सब मे रे ही जी के तिये ।
(10) मारा = मािा । झााँपी = ढााँक तदया । उभे = उठे हुए । बहुाँ टा और टााँड = बााँह पर पहििे के िहिे । पायि = पैर का एक िहिा ।
अिवट = अाँ िूठे का एक िहिा । समु दहु = तमिो आतिं िि करो ।
(11) िहरू = दे र, तविंब । साँवरर = स्मरण करके । िेवति = सोच या तचंिा में पड िई । अितचन्ह = अपररतचि । सााँव = श्याम । पूतछतह =
पूछेिा ।
(12) राई = अिु रुक्त हुई । डार ि टू ट...िरुआई = क ि फूि अपिे बोझ से ही डाि से टू ट कर ि तिरा ? पोढ =पुि । िाडू = िाड,
प्यार, प्रेम । चााँडू = िहरी चाहवािा । साजि = पति ।
(13) मेि = डाििा है । सदू रू = शादू ा ि, तसंह । पहुाँ चा =किाई । प िारी = पद्मिाि । खडि छपा = ििवार तछपी (म्यािमें ) बारी होइ =
बिीचे में जाकर । िरब-िहेिी = िवा धारण करिे वािी ।
(14) िोहिे =साथ में । कुरकुटा = अन्न का टु कडा; मोटा रुखा अन्न । पै = तिियवाचक, ही । िाथ = जोिी (िोरखपंथी साधु िाथ कहिािे हैं
)।
(15) बार = िार । पैठ पार = घुसिे पािा है ।
(16) होइ आिा = अन्य अथााि् योिी होकर । केवा = कमि । छे वा = फेंका, डािा खेिा । अाँ िएउाँ = अाँ िेजा, शरीर पर सहा ।
(17) तचन्हारी = जाि पहचाि । छं द = कपट, धू िािा । िेतह मातहं अकेिा = उिमें एक ही धू त्ता है । अपसवतह =जािे हैं । मिसतहं = मि में
ध्याि या कामिा करिे हैं ।अिु ,धति िू तितसअर तितस माहााँ । ह ं तदिअर जेतह कै िू छाहााँ ॥
(18) तितसअर = तिशाकर, चंद्रमा । अिु = तफर, आिे । करा = किा ! िुम्ह हुाँ ि = िुम्हारे तिये । पिाँि कै करा = पिंि के रूप का । बारू
= िार । दे खै...जिि परभािा = संध्या सवेरे जो ििाई तदखाई पडिी है । तधकै = िपिा है । मजीठ = सातहत् में पक्के राि या प्रेम को
मं तजष्ठा राि कहिे हैं । जिम ि डोिै = जन्म भर िहीं दू र होिा चक चूि करै = चूणा करे । चूि = चूिा पत्थर या कंकड जिाकर बिाया
जािा है ।
(20) पेडी हुाँ ि = पेडी ही से ; जो पाि डाि या पेडी ही में पुरािा होिा है उसे भी पेडी ही कहिे हैं । सोिरास = पका हुआ सफेद या पीिा
पाि । बड िा = (क) बडाई । (ख) एक जाति का पाि । िड िा = एक प्रकार का पाि जो जमीि में िाडकर पकाया जािा है । ि िी =
िू िि, िाजी । भुाँज िा कीन्ह = भु िा । औिा = आिा है , आ सकिा है ।
(21) ओराहीं= चुकिे हैं । छं द = छि, चाि । कचूर = हिदी की िरह का एक प धा । दू रर अदे श = दू र ही से प्रणाम ।
(22) ि आितहं पीऊ = दू सरा जि िहीं पीिा । आिरर = अतधक ।
(23) सारी =िोटी पैंि = दााँव । रास = ठीक । सि = सत्, साि का दााँव । इिारह = दस इं तद्रयााँ और मि, ग्यारह का दााँव । दू वा = दु बधा
। जुि सारर = दो िोतटयााँ, कुच । दसवाँ दावाँ = दसवााँ दााँव, अं ि िक पहुाँ चािे वािी चाि । िरहे ि = अधीि, िीचे पडा हुआ । स तिया = तिया,
एक दााँव ,सपत्नी । िंजि = िाश, दु ुःख ।
(24) बाचा = प्रतिज्ञा । पैंि िाएउ = दााँव पर ििाया । च क पं ज = च का पंजा दााँव । छि-कपट,छक्का पंजा । िुम्हतबच.....कााँची =
कच्ची, िोटी िुम्हारे बीच िहीं पड सकिी पातक = पक्की िोटी । जुि तििारा होिा = च सर में युि फूटिा ,जोडा अिि होिा । कहााँ
बीच...दे तिहारी = मध्यस्त होिे वािी दू िी की कहााँ आवश्यकिा रह जािी है ।
(25) साँदेसी = संदेसी = संदेसा िे जािे वािा । िुम्ह हुाँ ि = िुम्हारे तिये । रूप = रूपा, चााँदी ,स्वरूप । बैसाय = बैठाया, जमाया । काँवि-िै ि
...बईठा मे रे िे त्र कमि में िू भ रं ा (पुििी के समाि ) होकर बैठ िया । काँवि कहाँ = कमि के तिए ।
(27) चरतचउाँ = मैं िे भााँपा । बसेरा = तिवासी । केवा = कमि । छे वा = डािा या खेिा ।
(28) िैितह िाति = आाँ खों से िे कर । सााँच = सत् स्वरूप , सााँ चा । रूप, चााँदी ।
(29) रावि = रमण करिे वािा । रावण । जब-हुाँ ि =जब से । सुतिउाँ = (मैं िे ) सुिा िबहुाँ ि = िब से ।
(30) च रासी आसि = योि के और कामशास्त्र के बंधक = कामशास्त्र के बंध । औिाई = झुकाई । राहु = रोहू मछिी । बरमा = छे द करिे
का औजार । िं सा करतह = िि करिे हैं । खूाँदतहं - कुदिे हैं । कुरितहं = हं स आतद के बोििे को कुरिािा कहिे हैं ।
(31) बािू = वणा , दीखप्त, किा । ि री = स्त्री । सारर = च पड । चोका = चूसिे की तक्रया या भाव । चोका िाइ = चूसकर । ि साि =
सोिह श्रृंिार । साि औ पााँचा = बारह आभरण । पुरुष....बााँचा = वे श्रृंिार और आभरण पुरुष की दस उाँ ितियों से कैसे बचे रह सकिे हैं
।
(32) तचहूाँ टी = तचमटी । कुरिा = क्रीडा । मिु हारी = शांति, िृखप्त । मोखू = मोक्ष , छु टकारा । चातह = अपेक्षा बतिस्बि ।
(33) तबधााँतस = तवध्वंस की िई, तबिड िई । जीउ जो िासा = तजसिे जीव की दशा तबिाड रखी थी । िािी = ििी, बंद । बारी = बातियााँ ।
अरिज = अरिजा िामक सुिंध-द्रव्य तजसका िे प तकया जािा है । मरिज = मिा-दिा हुआ ।
(34) िइ =िवाकर ।
(35) जाइ परर सोई = पडकर सो जािा है । छीजा = क्षति, हाति । पिु ह = पिपिा है । खााँि = कमी हुई ।
(36) रतव =सूया और रत्न सेि । साईं = स्वामी । िखि िराईं = सखखयााँ । बिया = चूडी । पाि =पके पाि सी सफेद या पीिी । चूि = चूणा
। तिराँ ि = तववणा, बदरं ि । आिस =आिस्य-युक्त । छु व = छूिी है । िरी मु री = बाि की कािी िटें मोतियों के हार से तिपटकर उिझीं ।
िाभी िाभु....िाव = िातभ पु ण्य िाभ करके काशीकुंड कहिािी है इसी से दे विा िोि उस पर तसर काटकर मरिे हैं पर उसे दोष िहीं
िििा ।
(37) सुिि सूर...मधु बासा = कमि खखिा अथााि् िे त्र खुिे और भ रं े मधु और सुिंध िेिे बैठे अथााि् कािी पुितियााँ तदखाई पडीं । तिसयािीं
= सुध-बुध खोए हुए । तबथुरे िखि = आभूषण इधर-उधर तबखरे हैं
(38) सरे खी = सयािी, चिुर । फूि बास...िुम्हारा = फूि शरीर और बास जीव । रावि = रमण करिे वािा ,रावण । खोज परी ं = पीछे पडी
।
(39) मोतहं िे खे = मे रे तहसाब से, मे री समझ में । दू खा = िि हुआ । खसेउ =तिरा ।
(40) चााँडू = चाह। जस तकछु दे इ धरै कहाँ = जैसे वस्तु धरोहर रखे और तफर उसे सहे ज कर िे िे । ठाँ ठारर खुक्ख ।
(41) चंप सुदरसि...होई= = िेरा वह सुंदर चंपा का सा रं ि जदा चमे िी सा पीिा हो िया है । उछरी ं = पडी हुई तदखाई पडीं । धारी =
रखा । िमोरा = िांबूि । अिकाउर = अिकावति । िोरा = िेरा । रायमु िी = एक छोटी सुंदर तचतडया । रिमु हीं = िाि मुाँ ह वािी ।
फुिचुहीं = फुिसुाँघिी िाम की छोटी तचतडया । तसंिार हार = तसंिार को अस्त-व्यस्त करिे वािा िायक, परजािा फूि ।
किा = िकिबाजी, बहािा (अवधी)। िे वारी = दू र कर ,एक फूि । कदम सेविी = चरणों की सेवा करिी हुई, कदं ब ओर सेविी फूि ।
(42) तिरं ि = तववणा, बदरं ि । पवि अधारी = इििी सुकुमार है तक पविही के आधार पर मािो जीवि है । अही = थी। वारी भइ = तिछावरर
हुई । मं ि = मााँि ।
(43) झार = ज्वािा,िेज । वारर =तिछावर करके । वारा कीन्ह = चारों ओर घुमाकर उत्सिा तकया ।
(44) िहर-पटोरी = पुरािी चाि का रे शमी िहररया कपडा । फुाँतदया = िीवी या इजारबंद के फुिरे । कसतिया = कसिी, एक प्रकार की
अाँ तिया । छायि = एक प्रकार की कुरिी । तचकवा तचकट िाम का रे शमी कपडा । मघोिा = मे घवणा अथााि् िीि का राँ िा कपडा । पेमचा
= एक प्रकार का कपडा । च धारी = चारखािा । हररयारी = हरी । तचिेरे = तचतत्रि चाँद ि िा = एक प्रकार का िहाँ िा । खरदु क = कोई
पहिावा । बााँसपूर = ढाके की बहुि महीि िंजेब तजसका थाि बााँस की पििी ििी में आ जािा था । तझितमि = एक बारीक कपडा ।
अिबि = अिेक ।
रत्नसेि-साथी-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) पथ हे रा = रास्ता दे खिी है । िािर = िायक । बावाँि करा = वामि रूप । छरा = छिा । करि = राजा कणा । छं दू = छि-छं दू ,
धू त्तािा । तझितमि = कवच (सीकडों का) । अपसवा चि तदया । पींजर = पंजर, ठटरी ।
(2) बाउर = बाविा । हरे हरे =धीरे धीरे । िारी = िाडी । चोिा = शरीर,पहर । एक...बोिा = इििा अस्पि बोि तिकाििा है तक मििब
समझिे में पहरों िि जािे हैं । हं स = हं स और जीव ।
(3) पाट महादे व = पट्ट महादे वी, पटरािी मे रावा = तमिाप । टे कु तपयास = प्यास सह । बााँधु मि थीिी = मि में खस्थरिा बााँध । तजति = मि
। पिु हंि = पल्लतवि होिे हैं , पिपिे हैं ।
(4) िाजा = िरजा । धू म = धू मिे रं ि के । ध रे = धवि, सफेद । ओिई = झुकी । िे ई िाति = खेिों में िे वा ििा , खेि पािी से भर िए
। िार = ि रव,अतभमाि ।
(5) मे ह = मे घ । भरति परी = खेिों में भरिी ििी । सरे ख = चिुर भाँभीरी = एक प्रकार का पतिंिा जो संध्या के समय बरसाि में आकाश
में उडिा तदखाई पडिा है ।
(6)दू भर = भारी कतठि । भर ं = काटू ाँ , तबिाऊाँ; । अििै = अन्यत्र । िरासा = डरािा है ओरी = ओििी । पुरबा = एक िक्षत्र ।
(7) िटा = तशतथि हुआ । पिु है = पिपिी है । उिरा चीिु = तचत्त से उिरी या भूिी बाि ध्याि में िा । तचत्रा = एक िक्षत्र । िुरय =
घोडा । पिाति = जीि कसकर । घाय = घाव । बाजु = िडो । िाजहु = िरजो । सदू र = शादू ा ि, तसंह ।
(8) झुमक = मिोरा झूमक िाम का िीि । झुरावाँ = सूखिी हूाँ । जिम = जीवि ।
(9) दू भर = भारी, कतठि । िाहू =िाथ । सो घति तवरहै ...िाि = अथााि् वही धु आाँ िििे के कारण मािों भ रं े और क ए कािे हो िए ।
(10) िं का तदतस = दतक्षण तदशा को । चााँपा जाइ = दबा जािा है । कोतकिा = जिकर कोयि (कािी) हो िई । सचाि = बाज । जाडा =
जाडे में । ररर मु ई = रटकर मर िई । पीउ ...पंख = तप्रय आकर अब पर समे टे ।
(11) जडकािा = जाडे के म तसम में । माहा = माघ से । महवट = मघवट, माघ की झडी । चीरू = चीर, घाव । सर =बाण । झोिा मारिा
= बाि के प्रकोप से अं ि का सुन्न हो जािा । केतह क तसंिार ? = तकसका श्रृंिार ? कहााँ का श्रृंिार करिा ? पटोरा = एक प्रकार का रे शमी
कपडा । डोरा = क्षीण होकर डोरे के समाि पििी । तििउर = ििके का समू ह । झोि = राख , भस्म;
(12) ओिि = झुकी हुई । तिहोर िि ं = यह शरीर िुम्हारे तिहोरे िि जाय, िुम्हारे काम आ जाय ।
(13) पंचम = कोतकि का स्वर या पंचम राि । सिर ं = सारे । बूतड उठे ...पािा = िए पत्तों में ििाई मािों रक्त में भीििे के कारण है
। तघररि परे वा = तिरहबाज कबूिर या क तडल्ला पक्षी । िारर = िाडी, स्त्री ।
(14) तहं वचि िाका = उत्तरायण हुआ । तबरह-बजाति...हााँका = सूया िो सामिे से हटकर उत्तर की ओर खखसका हुआ चििा है , उसके स्थाि
पर तवरहाति िे सीधे मे री ओर रथ हााँका भारू =भाड । सरवर-तहया ....िािों का पािी जब सूखिे िििा हथ िब पािी सूखे हुए स्थाि में
बहुि सी दरारें पड जािी हैं तजससे बहुि से खािे कटे तदखाई पडिे हैं । दवाँिरा = वषाा के आरम्भ की झडी । मे रवहु एका = दरारें पडिे
के कारण जो खंड खंड हो िए हैं उन्हें तमिाकर तफर एक कर दो । बडी सुंदर उखक्त है ।
(15) िु वार = िू । िातज = िरज कर । पिं का = पिं ि । मं दी = धीरे धीरे जिािे वािी ।
(16) तििउर = तििको का ठाट । झूर ं = सूखिी हूाँ । बंध = ठाट बााँधिे के तिये रस्सी । कंध ि कोई = अपिे ऊपर भी कोई िहीं है ।
सााँतठ िातठ = पूाँजी िि हुई । मूाँ ज ििु छूाँछा = तबिा बंधि की मूाँ ज के ऐसा शरीर । थााँम = खंभा । थूिी = िकडी की टे क । छपर छपर
= िराबोर । कोर ं = छाजि की ठाट में ििे बााँस या िकडी । िव कै = िए तसर से
(17) सहस सहस सााँस = एक एक दीघा तिश्वास सहस्त्रों दु खों से भरा था, तफर बारह महीिे तकििे दु ुःखों से भरे बीिे होंिे । तिि
तिि....परर जाई = तिि भर समय एक एक वषा के इििा पड जािा है । सेराई = समाप्त होिा है । सोहाि = स भाग्य, सोहािा । सुिारी
= वह स्त्री , सुिाररि । झुरर = सूखकर ।
(18) पुछार = पूछिे वािी, मयूर । तचिवााँस = तचतडया फाँसािे का एक फंदा । कािा = खस्त्रयााँ बै ठै क वे को दे खकर कहिी हैं तक ` तप्रय आिा
हो िो उड जा' ।हाररि थकी हुई, एक पक्षी । ध री = सफेद, एक तचतडया । पंडुक = पीिी , एक तचतडया । तचि रोख = हृदय में रोष, एक
पक्षी । जातह बया = साँदेश िे कर जा और तफर आ । काँठिवा = ििे में ििािे वािा । ि रवा = ि रवयुक्त, बडा; ि रा पक्षी । दही = दतध,
जिाई । पेड = पेड पर । जि = जि में ।तििोरी = िेतिया मै िा । कटिं सा = काटिा और िि करिा है , (ख) कटिास या िीिकंठ ।
तिपाि = पत्रहीि ।
(19) घुाँघची = िुंजा । सेराव = ठं डा करे । तबंब = तबंबाफि ।
िािमिी-संदेश-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
तफरर तफरर रोव, कोइ िहीं डोिा । आधी राति तबहं िम बोिा ॥
"िू तफरर तफरर दाहै सब पााँखी । केतह दु ख रै ति ि िावतस आाँ खी"
िािमिी कारि कै रोई । का सोवै जो कंि-तबछोई ॥
मितचि हुाँ िे ि उिरै मोरे । िैि क जि चुतक रहा ि मोरे ॥
कोइ ि जाइ ओतह तसंििदीपा । जेतह सेवाति कहाँ िै िा सीपा ॥
जोिी होइ तिसरा सो िाहू । िब हुाँ ि कहा साँदेस ि काहू ॥
तिति पूछ ं सब जोिी जंिम । कोइ ि कहै तिज बाि, तबहं िम !॥
(1)कुरी = कुि, कुिीििा । खाट =खटािा है , ठहरिा है । सरर ि पाव....खाट = बराबरी करिे में कोई िहीं ठहर सकिा ।
(2) दे वा = हे दे व ! उपराहीं = ऊपर । िीका करतहं = अपिा तसक्का जमािे हैं । िीका =थाप । हम्ह कै चााँद....आजू = उि िक्षत्रों के
बीच चंदमा ( उिका स्वामी) बिाकर हमें भेतजए । भोर प्रभाि , भूिा हुआ, असावधाि । मतह िेइ...आउ = पृथ्वी पर हमारी आयु िे कर ।
(3) राजसभा = रत्नसेि के सातथयों की सभा सवारी = सब । अिु = हााँ, यही बाि है । फूटी....फूट । दीपक िे सी = पद्माविी ऐसा प्रज्वतिि
करके । पाहुि = अतितथ ।
(4) मािति = अथााि् िािमिी । कदम सेविी = चरण सेवा करिी है , कदं ब और सफेद िुिाब । ह तसंिारहार...िािा = हार के बीच पडे
हुए डोरे के समाि िुम हो । पु हुप-किी िािा = किी के हृदय के भीिर इस प्रकार पैठे हुए हो । बकुचि = बद्धांजति, जुडा हुआ हाथ;
िुच्छा । बकाउ = बकाविी । िािसेर = िािमिी, एक फूि । बोि = एक झाडी जो अरब, शाम की ओर होिी है । कोि बारर = केिकी,
रूपवािा, तकििा ही वह स्त्री । धसतक उठा = दहि उठा िहबर = िीिे । होितह...कािू = जन्म िे िे ही क्यों ि मर िई ? बाजा = पडा ।
िेवाि = सोच, तचंिा । हर मं तदर = प्रत्ेक घर में ।
(6) तबथा = दु ुःख तिउ मे िा = ििे पडा ।
(7) झंखी = झीखी, पछिाई । का हम्ह दोष....िोहूाँ = हम िोिों को एक िेहूाँ के कारण क्या ऐसा दोष ििा ( मु सिमािों के अिु सार तजस
प धे के फि को खुदा के मिा करिे पर भी ह वा िे आदम को खखिाया था वह िेहूाँ था । इसी तितषद्ध फि के कारण खुदा िे ह वा को
शाप तदया और दोिों को बतहश्त से तिकाि तदया)। तचरािा = बीच से तचर िया । छोहािा = दया की । सरे खा = चिुर ।
(8) िूरै = िोडे । ऊभ = ऊाँचा, उठा हुआ । ब रं र = ििा । प तढ = िे ट कर । िराहा = िीचे । सेवा जीिा = सेवा में सबसे जीिी हुई
अथााि् बढकर रहे ।
(9) अतदि = आतदत्वार । सूक = शुक्र । खंडै = चबाय ।
(10) दसा = दस । सामु हा = सामिे । बााँचु = िू बच ।
(11) ि भाए = िहीं अच्छा है । अदाएाँ = वाम, बुरा । अितिउ = आिेय तदशा । मारै = घािक है । वारै = बचावे । रमे सरी = िक्ष्मी ।
परमे सरी दे वी । बायब = वायव्य । ईसि = ईसाि कोण । िाछी = िक्ष्मी । सिुि दु घररया = दु घररया मु हूत्ता जो होरा के अिु सार तिकािा
जािा है और तजसमें तदि का तवचार िहीं तकया जािा राि तदि को दो दो घतडयों में तवभक्त करके रातश के अिु सार शुभाशुभ का तवचार
तकया जािा है ।
(12) तबरतछक = वृतिक रातश । उिरे = तिकिे । अििइिा = आिेय तदशा ।
(14) िंदा = आिं ददातयिी, शुभ । मं दा = अशुभ । जया = तवजय । दे िेवािी । खया = क्षय करिे वािी । सति ररकिा = शति ररक्ता, शतिवार
ररक्ता तितथ या खािी तदि ।
(15) समतद = तवदा के समय तमिकर (समदि = तबदाई; जैसे, तपिृ समदि अमावस्या) । आइ िु िािा = आ पहुाँ चा । टे क = पकडिा है । का
केहू = और कोई क्या है ? िुरेरा = दे खा-दे खी, साक्षात्कार । एक एक दीप....िहा = एक एक रत्न का मोि एक एक िीप था ।
(17) दत्त = दाि । सत्त = सत् । साँतच कै = संतचि करके । तसद्ध जो... थापा = जो तसद्ध हैं वे द्रव्य को अति ठहरािे हैं । थापा =
थापिे हैं , ठहरािे हैं । दािी = दाि िे िे वािा, तभक्षुक । कै दािी कर रूप = मं िि का रूप धरकर ।
दे शयात्रा खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) जूरू = जोडिा । साँचा = सं तचि तकया । दाि = दाि से । सैंति सहे जकर ; संतचि करके
(2) सैंति = संतचि तकया । एिी = इििी । बेसाहा = खरीदिे हैं । कुबुज =कुबडा । दरब रहै तििारा = द्रव्य धरिी में िढा रहिा है और
चमकिा है माथा (असंिति का यह उदाहरण इस कहावि के रूप में भी प्रतसद्ध है ,: िाडा है माँ डार , बरि है तििार") दे इ को पारा = क ि
दे सकिा है । मूाँ द = मूाँ दा हुआ, बंद ।
(3) उिराही = उत्तर की हवा अतदि = बुरातदि । काऊ = कभी । मिातहं = मि में ।
(4) साँघािा = संि। फेंकरे = िं िे; तबिा टोपी या पिडी के (अवधी) चाँवर जिु िाए = चाँवर के से खडे बाि ििाए हुए । चााँद, सूर, िखि =
पद्माविी, राजा और सखखयााँ ।
(5) दे वा = दे व, राक्षस । बि = बििा । िाइ दे उाँ िोतह बाट = िुझे रास्ते पर ििादू ाँ ।
(6)ि तिररही = किाई में पहििे का, खस्त्रयों का, एक िहिा जो बहुि से दािों को िूाँथ कर बिाया जािा है । िोडर = िोडा, किाई में पहििे
का िहिा । महरा = मल्लहों का सरदार । रकसाई = राक्षसपि । बासा = िंध । तबसवास = तवश्वासघाि ।
(7) जतहया = जब । पाति = हाथ हाथ से । हुि था । जेतह = तजससे ।
(8) माँ डारू = दह, िड्ढा । हिका = तहिोर, िहर । िर = िीचे । ब रातस = बाविा होिा है िू ।
(9) जो बाउर...सरे खा = पािि भी अपिा भक्ष्य ढूढिे के तिये चिुर होिा है । पााँखी = पतिंिा । घरमाटी = तमट्टी के घर में । छरी = छिी
िई, भ्रांि हुई ।
(10) भाँवंतह = चक्कर खािे हैं । आस िुिािी = आशा जािी रही । मािवा = मिु र्ष् । डहि = डै िा, पर ।
िक्ष्मी-समु द्र-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
कहे खन्ह" ि जाितहं हम िोर पीऊ । हम िोतहं पाव रहा ितहं जीऊ ॥
पाट परी आई िुम बही । ऐस ि जाितहं दु हुाँ कहाँ अही" ।
िब सुतध पदमावति मि भई । सवरर तबछोह मु रुतछ मरर िई ॥
िै ितहं रकि-सुराही ढरै । जिहुाँ रकि तसर काटे परै ॥
खि चेिै खि होइ बेकरारा । भा चंदि बंदि सब छारा ॥
बाउरर होइ परी पुति पाटा । दे हुाँ बहाइ कंि जेतह घाटा ॥
को मोतहं आति दे इ रतच होरी । तजयि ि तबछु रै सारस-जोरी ॥
सिी होइ कहाँ सीस उघारा । घि महाँ बीजु घाव तजतम मारा ॥
सेंदुर, जरै आति जिु िाई । तसर कै आति साँभारर ि जाई ॥
छूतट मााँि अस मोति-तपरोई । बारतहं बार जरै ज ं रोई ॥
टू टतहं मोति तबछोह जो भरै । सावि-बूाँद तिरतहं जिु झरे ॥
भहर भहर कै जोबि बरा । जािहुाँ किक अतिति महाँ परा ॥
अतिति मााँि, पै दे इ ि कोई । पाहुि पवि पाति सब कोई ॥
खीि िं क टू टी दु खभरी । तबिु रावि केतह बर होइ खरी ॥
ितछमी िाति बुझावै जीऊ ।"िा मरु बतहि! तमतितह िोर पीऊ ॥
पीउ पाति, होइ पवि -अधारी । जतस ह ं िहूाँ समु द कै बारी ॥
मैं िोतह िाति िे उाँ खटवाटू । खोजतह तपिा जहााँ िति घाटू ॥
ह ं जेतह तमि ं िातह बड भािू । राजपाट औ दे ऊाँ सोहािू "॥
कतह बुझाइ िे इ मं तदर तसधारी । भइ जेविार ि जेंवै बारी ॥
जेतह रे कंि कर होइ तबछोवा । कहाँ िेतह भूख, कहााँ सुख-सोवा ?॥
कहााँ सुमेरु, कहााँ वह सेसा । को अस िेतह स ं कहै साँदेसा ?॥
कतह कै उठा समु द पहाँ आवा । कातढ कटार िीउ महाँ िावा ॥
कहा समु द्र, पाप अब घटा । बाह्मि रूप आइ परिटा ॥
तििक दु वादस मस्तक कीन्हे । हाथ किक-बैसाखी िीन्हे ॥
मु द्रा स्रवि, जिे ऊ कााँधे । किक-पत्र धोिी िर बााँधे ॥
पााँवरर किक जराऊाँ पाऊाँ । दीखन्ह असीस आइ िेतह ठाऊाँ ॥
कहतस कुाँवर! मोस ं सि बािा । काहे िाति करतस अपघािा ॥
पररहाँ स मरस तक क तिउ िाजा । आपि जीउ दे तस केतह काजा ॥
हाँ सा समु द, होइ उठा अाँ जोरा । जि बूडा सब कतह कतह 'मोरा ॥
िोर होइ िोतह परे ि बेरा । बूतझ तबचारर िहुाँ केतह केरा ॥
हाथ मरोरर धु िै तसर झााँखी । पै िोतह तहये ि अघरै आाँ खी ॥
बहुिै आइ रोइ तसर मारा । हाथ ि रहा झूठ संसारा ॥
जो पै जिि होति फुर माया । सैंिि तसखद्ध ि पावि, राया ! ॥
तसद्धै दरब ि सैंिा िाडा । दे खा भार चूतम कै छाडा ॥
पािी कै पािी महाँ िई । िू जो तजया कुसि सब भई ॥
(1) ि जािी = ि जािें । अही = थी । सेंिी = से । रे िी = बािू का तकिारा । िीवइ = स्त्री में ।
(2) कािर = कािज । पिरा = पििा । उडाइ = उडकर । क रै = िोद में । बोति कै = पुकारकर । समु तझ = सुध करके ।
(3) चेिी = चेि करके, होश में आकर । दे खै काह = दे खिी क्या है तक । झााँपी = आच्छातदि । चााँपी = दबी हुई । चूरी = चूणा तकया ।
िाि ं केहतह के डार = तकसकी डाि ििूाँ अथााि् तकसका सहारा िूाँ ?
(4) पाव = पाया । साँवरर = स्मरण करके । सर तचिा ।
(5) तथरतक मार = तथरकिा या चारों ओर िाचिा है । साथी....तिरबातह = साथी वही है जो धि और दररद्रिा दोिों में साथ तिभा सके ।
आतथ = सार,पूाँजी । तिआतथ = तिधा ििा । घि महाँ ...मारा = कािे बािों के बीच मााँि ऐसी है जैसे तबजिी की दरार । भहर भहर =
जिमिािा हुआ । मााँि = मााँििी है । पाहुि पवि...सब कोई = मे हमाि समझ कर सब पािी दे िी हैं और हवा करिी हैं ।बर = बि,सहारा
। अरं भ = रं भ, िाद, कूक ।
(7) बुझावै िाति = समझािे -बुझािे ििी । बारी = िडकी । िे उाँ खटवाटू = खटपाटी िूाँ िी; रूसकर काम-धंधा छोड पडी रहूाँ िी (खस्त्रयों का
रूसकर खािा-पीिा छोड खाट पर इसतिये पड रहिा तक जब िक मे री बाि ि मािी जायिी ि उठूाँिी, `खटपाटी' िे िा कहिािा है ) सुख-
सोवा = सुख से सोिा (साधारण तक्रया का यह रूप बाँििा से तमििा है ।) कहााँ सुमेरु...सेसा = आकाश पािाि का अं िर । बाि चाति =
बाि चिाई ।
(8)डूाँिा = टीिा। खाँधारा = स्कंधावार , डे रा, िंबू । अविाह = अथाह (समु द्र) में ।
(9) चाह = खबर । दाँ साव ं = धाँ सूाँ । िवेसी = खोजी, ढूाँढाँिेवािा, िवेषणा करिे वािा । बर वााँतध = रे खा खींचकर, दृढ प्रतिज्ञा करके ( आजकि
`वरै या बााँतध' बोििे हैं )
(10) मीि होइ = जो तमत्र हो । िाढे =संकट के समय में । दाम = रस्सी । करिी सार ..कथा = करिी मु ख्य है , बाि कहिे से क्या है ?
बटा भा = बटाऊ हुआ, चि तदया । ढीि होइ रहा = चुपचाप बै ठा रहा । उघे ति = खोिकर ।
(11) थााँबा = ठहराया, तटकाया । थूति = िकडी का बल्ला जो टे क के तिये छप्पर के िीचे खडा तकया जािा है । भार ि थाकी = भार से
िहीं थकी । सब के पीतठ....सााँटी = सब की पीठ पर िेरी छडी है , अथााि् सब के ऊपर िेरा शासि है ।
(12) मेरवतस = िू तमिािा है । आउ = आयु । तबछोवतस = तबछोह करिा है । मे राऊ = तमिाप । जाहााँ = जहााँ । किप ं = काटू ाँ । करे तस
= िुम करिा ।
(13) पाप अब घटा = यह िो बडा पाप मे रे तसर घटा चाहिा है । बैसाखी = िाठी । पााँवरर = खडाऊाँ । पाऊाँ = पााँव में । काहे िति =
तकस तिये । अपघाि = आत्मघाि । पररहाँ स = ईर्ष्ाा ।
(14) िुम्ह = िुम्हें। भााँडे = घट में , शरीर में । ओिी = उििी चातह । चातह =बढकर । रूपमिी = रूपविी । दु हेि = दु ख ।
(15) िोर...होइ...बेरा = िेरा होिा िो िेरा बेडा िु झसे दू र ि होिा । झााँ खी = झीखकर । उघरे = खुििी है । सैंिि तसखद्ध...राया = िो
हे राजा ! िुम द्रव्य संतचि करिे हुए तसखद्ध पा ि जािे । पािी कै...िई = जो वस्तुएाँ (रत्न आतद) पािी की थी ं वे पािी में िई । िे इ चाह =
तिया ही चाहे । जब भाव = जब चाहे ।
(16) अिु = तफर, आिे । फूिा = प्रफुल्ल हुआ । चातह = अपेक्षा, बतिस्बि । मोकााँ = मोकहाँ , मु झको । दे इ हत्ा = तसर पर हत्ा चढाकर ।
दााँव = बदिा िे िे का म का ।
(17) मरर भा = मर चुका । दायााँ = दााँव, आयोजि । बाट भा = रास्ता पकडा ।
(18) बीर = तबरवा, पेड । दाधी = जिी हुई । कररहाउाँ = कमर, कतट । तबछूक = तबच्छू । सेवाति =स्वाति िक्षत्र में ।
(19) छरै = छििी है । बाटा = मािा में । अिमि = आिे । दीठी = दे खा । दीन्ही पीठी = पीठ दी, मुाँ ह फेर तिया ।
(20) खोज = पिा । कर फेरा = फेरा करिा है । हे रा = ढूाँढिा है । वारै = तिछावर करिा है । िव = िया । भाि = भािा ।
(21) िे इ चिुाँ, जाउाँ = यतद िे चिे िो जाऊाँ । छपा = तछपा हुआ । कचोर = कटोरा । िोपीिा = िोपी । दमितह = दमयंिी को । तपंड =
शरीर । छूाँछा = खािी । पतदक = ििे में पहििे का एक च खूाँटा िहिा तजसमें रत्न जडे जािे हैं ।
(22) पतदक पदारथ = अथााि् पद्माविी । बहुरा = ि टा, तफरा । मू रू = मू ि, जड । एक पासा = एक साथ । सीऊ = सीि । रज मे ट =
आाँ सुओं से पैर की भूि धोिी है । भइ सतस काँवितह भेंट = शतश, पद्माविी का मु ख और कमि, राजा के चरण ।
(23) घाति तिउ = िरदि िीचे झुकाकर । मािु ष साजू = मिु र्ष्-रूप में । घाति तिउ पािा = ििे में दु पट्टा डािकर । पािा = पिडी । िि
तजउ ...चीन्ह ि कोऊ = शरीर और जीव के बीच ईश्वर िे तवयोि तदया; यतद वह ऐसा ि करे िो उसे कोई ि पहचािे ।
(24) िुम्ह = िुम्हारे । आथी = पूाँजी ,धि । जरी = जडी ।
(25) पखािा = िि, पत्थर । सोि = सोिा । रूप = चााँदी िुम्ह ठाऊाँ = िुम्हारे तिकट, िुमसे । हीर-फार = हीरे के टु कडे । फार = फाि ,
किरा, टु कडा । हम सम िच्छ = हमारे ऐसे िाखों हैं ।
(26) पहुिाई = मे हमािी । तबसेखे = तवशेष प्रकार के । बंसू =वंश, कुि । सावक-सादू रू = शादू ा ि-शावक, तसंह का बच्चा । परस = पारस
पत्थर । कंचि-मू रू = सोिे का मू ि, अथााि् सोिा उत्पन्न करिे वािा । जि-मािु ष = समु द्र के मिु र्ष् । अिुवा = पथ-प्रदशाक संि िाए =
संि में ििा तदए । भेंट-घाट = भेंट-तमिाप । समतद =तबदा करके ।
(27) रींधा =पका हुआ । सााँतठ = पूाँजी, धि । िातठ = िि हुई । झ रं ाई = झूमकर । कह = कहिे हैं । औंघाई = िींद । सातध िि = शरीर
को संयि करके । आिरर = बढी हुई, अतधक । िथ = पूाँजी ।
(28) िाठी = िि हुई । मु किी = बहुि सी, अतधक । सााँकर परे = संकट पडिे पर । उपकरै = उपकार करिी है , काम आिी है । सााँभर =
संबि, राह का खचा । सकाि = डरा ।
तचत्त र-आिमि-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
अब िति रहा पवि, सखख िािा । आजु िाि मोतहं सीअर िािा ॥
मतह हुिसै जस पावस-छाहााँ । िस उपिा हुिास मि माहााँ ॥
दसवाँ दावाँ कै िा जो दसहरा । पिटा सोइ िाव िे इ महरा ॥
अब जोबि िंिा होइ बाढा । औटि कतठि मारर सब काढा ॥
हररयर सब दे ख ं संसारा । िए चार जिु भा अविारा ॥
भािेउ तबरह करि जो दाहू । भा मु ख चंद, छूतट िा राहू ॥
पिु हे िै ि, बााँह हुिसाहीं । कोउ तहिु आवै जातह तमिाहीं ॥
(1) अाँ दोरा = अं दोर , हिचि, शोर (आं दोि)। चंडोि =पािकी । सरि स ं ईश्वर से । िेतिया = सींतिया तवष । िे तिया....िेही = चाहे उसे
िेतिया तवष से ि मारे । केहुाँ = तकसी प्रकार ।
(2) िुच = त्वचा, केंचिी । सुचा = सूचिा ,सुध,खबर । सोंतध बसाई = सुिंध से बस जािी है या सोंधी महकिी है । कररि = कल्ला । कोंप
= कोंपि ।
(3) िािा = िरम । दसवाँ दावाँ = दशम दशा, मरण । महरा = सरदार । औटि = िाप । िए चार = िए तसर से ।
(4) दर =दि । रहस-चाव = आिं द-उत्साह । िहतक उठी = िहिहा उठी । हुि =थे । अठारह िंडा िदी = अवध में जि साधारण के बीच
यह प्रतसद्ध है तक समु द्र में अठारह िंडे (अथााि् 72) ितदयााँ तमििी हैं
(5) बेवाि = तवमाि । तजउ महाँ भा आिू = जी में कुछ और भाव हुआ । झार = िपट, ईर्ष्ाा, डाह । ज =अब । उिारा । हे म सेि = सफेद
पािा या बफा ।
(6) बहुि कै = बहुि सा । जि = तजससे । अरकािा = अरकािे द िि, सरदार उमरा । दु िी = दु तिया में । डााँि = डं का । पााँ च सबद =
पंच शब्द , पााँच बाजे-िंत्री,िाि, झााँझ, ििाडा और िुरही । छतिस कूरर = छत्तीसों कुि के क्षतत्रय । षट दरसि = (िक्षण से) छुः शास्त्रों के
वक्ता ।
(7) तदआवा = तदिाया । कुररहारा = किरव , कोिाहि ।
(8) पोढ=दृढ, मजबूि, कडे । फरे सहस साखा होइ दाररउाँ , दाख , जाँभीर । फरे सहस...भीर = अथााि् िािमिी में फीर य वि-श्री और रस आ
िया और राजा के अं ि अं ि उससे तमिे ।
(9) मे र = मे ि, तमिाप । िोिी = सुंदर । िािसेर = अथााि् िािमिी । काँवि = अथााि् पद्माविी । तबसैंधा = तबसायाँध िंधवािा, मछिी की सी
िंधवािा । भाव = प्रेम भाव ।
(10) दे ख = दे खा । भािू = सूया, रत्नसेि । डफारा = ढाढ मारिी है । मारा = मािा । कुआाँ महाँ मे िी = मु झे िो कुएाँ में डाि तदया, अथााि्
तकिारे कर तदया । झुराि = सूखी । घरी = घडा । सुभर = भरा हुआ ।
(11) बेधा िोतह पाहााँ = िेरे पास उिझ िया हूाँ । डे रावति = डराविी । तहरके = सटे । कररया = कािा ।
(12) पिु ही = पल्लतवि हुई, पिपी । िहहे = आिन्द-पूवाक । कुराहर = कोिाहि । जस = जैसे ही । खूसट = उल्लू । िूरतह = िोडिी हैं ।
िािमिी-पद्माविी-तववाद-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) धमारी करै = होिी की सी धमार या क्रीडा करिा है । िुम जो बकावरर ...भर िा = िुम जो बकाविी फूि हो क्या िुमसे राजा का जी
िहीं भरिा ? बकुचि िहे ...करिा = जो वह करिा फूि को पकडिा या आतिं िि करिा चाहिा है । िािेसरर = िािकेसर । काँवि ि....
आपति बारी = काँवि (पद्माविी) अपिी बारी या घर में िहीं है अथााि् घर िािमिी का जाि पडिा है । जस सेविीं..चमे िी = जैसे सेविी
और िुिािा आतद (खस्त्रयााँ) िािमिी की सेवा करिी हैं वैसे ही एक पतद्मिी भी है । अति जो ....सदबरिै जोि = जो भाँवरा सुदरसि फूि
पर िूाँजेिा वह सदबिा (िेंदा) के योग्य कैसे रह जायिा ?
(2) संििराव = साँििरा िीबू ; संिि राव, राजा का साथ । अतमिीं इमिी; ि तमिी हुई; तवरतहणी । ि राँ ि = िारं िी; िए आमोद-प्रमोद ।
(3) अिु = और । िजा पातक = सरोवर का जि छोडा । अभेरा = तभडं ि, रिडा । सारी = साररका, मै िा । सरवर-जि = सरोवर के जि में
। बाढै =बढिा है ?
(4) िुइाँ अाँ बराव...जूरी =िूिे अपिे अमराव में इकट्ठा ही क्या तकया है ? ऊमर = िूिर । ि बाजु = ि िड । खूझा खाजु = खर पिवार,
िीरस फि ।
(5) झडबेरी = झडबेर, जंििी बेर । कोकाबेरी =कमतििी । िि िि जाउ = चाहे िि जाऊाँ; िििि िीबू । सवति ितहं भाख ं = सपत्नी का
िाम ि िूाँ । कोइ ढे ि ि बाहा = कोई ढे िा ि फेंके (उससे क्या होिा है ) ऊभी = उठाकर
(6) केवा = कमि कािा = क वापि भुजइि = भुजंिा पक्षी । पोि = कााँच या पत्थर की िुररया । मतस =स्याही रााँध = पास, समीप ।
(7) रोठा = रोडा, टु कडा । जेतह के तहये ..कोठा = काँवि िट्टे के भीिर बहुि से बीज कोष होिे हैं । िटा = काँवििट्टा । उघेति = खोिकर
। दाररउाँ = अिार के समाि काँवििट्टा जो िेरा स्ति है । तितस भरसी = राि तबिािी है िू । करसी = िू करिी है । सरवर...पूज = िाि
की िहर उसके पास िक िहीं पहुाँ चिी; वह जि के ऊपर उठा रहिा है । भूाँज = भूििी है ।
(8) हरर हर हार कीन्ह = कमि की मािा तवष्णु और तशव पहििे हैं । मरि के पााँखी = कीडों को जो पंख अं ि समय में तिकििे हैं ।
(9) जरर = जड, मूि । डोम छूआ = प्रवाद है तक चंद्रमा डोमों के ऋणी हैं वे जब घेरिे हैं िब ग्रहण होिा है
(10) आसािु बुध = सुिंध की आशा से सााँप चंदि में तिपटे रहिे हैं ।
(11) तसंिार पराए = दू सरों से तिया तसंिार जैसा तक ऊपर कहा है । जूड अतमय ...िािे = उि अधरों में बािसूया की ििाई है पर वे
अमृ ि के समाि शीिि हैं ; िरम िहीं । िािेसर-करी = िािेसर फूि की किी । िरहे ि िीचे पडा हुआ, अधीि ।
(12) बाजैं = िडिी हैं । बाि ि मोरा = बाि िहीं मोडिी, अथााि् िडाई से हटिी िहीं । अिी = िोक । ििी = चोिी के बंद । च दं िा =
स्याम दे श का एक प्रकार का हाथी;अथवा थोडी अवस्था का उद्दं ड पशु (बैि, घोडे आतद के तिये इस शब्द का प्रयोि होिा है ) ठििाडू =
ठिों के िड् डू तजन्हें खखिाकर वे मु सातफरों को बेहोश करिे हैं । धरहररया = झिडा छु डािे वािा । बीचु करै = दोिों को अिि करे , झिडा
तमटाए ।
रत्नसेि-संिति-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) जाएउ = उत्पन्न तकया, जिा । ऊाँचे तदि रै ितह = तदि-राि में वैसा ही बढिा िया । दुं द = झिडा, िडाई ।
राघव-चेिि-दे स-तिकािा-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) आऊ सरर = आयु पयांि, जन्म भर । चेिा = ज्ञाि प्राप्त । भेऊ = भेद, ममा । तपंिि = छं द या कतविा में । तसंघि मथा = तसंघिदीप की
सारी कथा मथकर वणाि की । मि िहा = मि को वश में तकया । राजा भोज चिुरदस = च दहों तवद्याओं में राजा भोज के समाि ।
(2) होइ अचेि ,..ज आई = जब संयोि आ जािा है िब चेिि भी अचेि हो जािा है ; बुखद्धमाि भी बुखद्ध खो बैठिा है ।भुजा टे तक = हाथ
मारकर , जोर दे कर । जाखखिी = यतक्षणी । बर खााँचा = रे खा खीचकर कहा , जोर दे कर कहा ।
(3) क ि अिस्त...सोखा = अथााि् इििी अतधक प्रत्क्ष बाि को क ि पी जा सकिा है ? अब कस सीसा = अब यह कैसा कंचि कंचि और
सीसा सीसा हो िया । काखि कै = कि को। तदखस्टबंध = इं द्रजाि, जादू । चेटक = माया । चमाररति िोिा = कामरूप की प्रतसद्ध जादू िरिी
िोिा चमारी । एक तदि राहु चााँद कहाँ िावै = जब चाहे चंद्रग्रहण कर दे ; पद्माविी के कारण बादशाह की चढाई का संकेि भी तमििा है ।
(4) फटकरै = फटक दे । मतिभंिी = बुखद्ध भ्रि करिे वािा । िेतह मािु ष कै आस का = उसको मिु र्ष् की क्या आशा करिी चातहए ? अिम
= आिम, पररणाम । जाखखिी = यतक्षणी । सूर के ठााँव ..ठाढा = सूया की जिह दू सरा सूया खडा कर दे । (राजा पर बादशाह को चढा िािे
का इशारा है )हरिािी = हरिाि की ििवार प्रतसद्ध थी । अजु िुति = अिहोिी बाि, अयुक्त बाि । भोरे = भूिकर । जस बहुिे....थोरे =
यश बहुि करिे से तमििा है , अपयश थोडे ही में तमििा है । उिारा = तिछावर तकया हुआ दाि ।
(6) कोरी = बीस की संख्या । पवारा = फेंका । च तं ध उठा = आाँ खों में चकाच ध ं हो िई ।
(7) सतिपािू = सतन्नपाि, तत्रदोष ।
(8) साँकेिा = संकट में ।ठिोरी िाई = ठि तिया; सुध-बुध िि करके ठक कर तिया । ब री = बाविों की सी । बरज = मिा करिा है ।
िोहारर िििा = पुकार सुिकर सहायिा के तिये आिा ।
(9) दखच्छिा-धोखे = दतक्षणा का धोखा दे कर । जोरी = पटिर, उपमा । तदि होइ राति = िो राि में भी तदि होिा और राि ि होिी । हाँ कारर
= बुिाकर । सिछाँ डा = सत् छोडिे वािा । समािे = खींचिे से । िबतहं ि....कारी = िभी ि (उसी कारण से ) आाँ खों के मुाँ ह में
कातिमा ( कािी-पुििी । िि रही है । सरवर िीर ....फाट = िािाब के सूखिे पर उसकी जमीि में चारों ओर दरारें सी पड जािी है ।
(10) बरति ि जाइ....रूपा = तकसी के साथ उसकी उपमा िहीं दी जा सकिी ।भूई = सरकंडे का धू आ । उघेिु....रूई = सुिकर चेि
कर, काि की रूई खोि ।
(11) एिा = इििा । संस = शंशय । क ि रहति = वहााँ का रहिा क्या ? दे इ एि...खााँि ं = इििा दो तक तफर मु झे कमी ि हो । सोि ढरै
= सोिा ढििा है , सोिे के तसक्के ढािे जािे हैं । बारहबािी = चोखा । तदिारा = दीिार िाम का प्रचतिि तसिे का तसक्का । अति = भ रं ा ।
राघव-चेिि-तदल्ली-िमि-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) बार = िार । ठाढ झुरातहं = खडे खडे सूखिे हैं । जोहार सिाम । िेवाि = तचंिा, सोच । झूरा = व्याकुि होिा है , सूखिा है । िातहं
उबार = यहााँ िुजर िहीं । दीन्हें तसर छािा = छत्रपति राजा िोि । उमर = उमरा, सरदार । खुर-खेह = घोडों की टापों से उठी धू ि में ।
(2) सजि = होतशयार । रै ति तफरै ....जोिी को जोिी के भेस में प्रजा की दशा दे खिे को घूमिा है । चाह = खबर ।
(3) मया साह मि = बादशाह के मि में दया हुई । सैति = संतचि करके । तबिोव कीन्ह = मथा । मतह = पृथ्वी ; मही, मट्ठा । दतह िे इ =
तदल्ली में ; दही िे कर । खेह = धू ि, तमट्टी ।
(4) हुि = था । संसार मति = जिि में मतण के समाि ।
(5) जेतह कंचि पावा = तजससे सोिा पाया । िावाँ तभखारर...बााँची = तभखारी के िाम पर अथााि् भीखारी समझकर िेरे मुाँ ह में जीभ बची हुई
है , खींच िहीं िी िई । िोि = िावण्य, स द ं या । होइ िोि तबिासीं = िू िमक की िरह िि जाय । चक्कवै = चक्रविी ।
(6) अिु = और, तफर । भीख कहाँ = तभक्षा के तिए । बाजा = पहुाँ चिा है , डटिा है । उदय-अस्त = उदयाचि से अस्ताचि िक । तकतछ जो
चारर...उपराहीं = जो चार चीजें सबसे ऊपर हैं । मू रू = मू ि, असि । बहुबास = बहुि सी रहिी हैं ।
स्त्री-भेद-वणाि-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) अछवाई = सफाई । बिाऊ = बिाव तसंिार । बसाइ = दु िांध करिा है । चोख = चंचििा या िे त्र
(2) सुभर = भरा हुआ । चाहै तपउ हिा = पति को कभी कभी मारिे द डिी है । घाि ि ििा = कुछ िहीं समझिी, पसंिे बराबर िहीं
समझिी । फीिी = तपंडिी । िरहुाँ डी = िीचा । हे र = दे खिी है । मथवाह = झािरदार पट्टी जो भडकिे वािे घोडों के मत्थे पर इसतिये बााँध
दी जािी है तजसमें वे इधर उधर की वस्तु दे ख ि सकें । जेतह िुि सबै तसंघ के = कतव िे शायद शंखखिी के स्थाि पर `तसंतघिी' समझा है ।
(3) सवाई = अतधक । अछवाई = साफ, तिखरी । चातह = अपेक्षा, बतिस्बि । घातट =घटकर । करा = किा । बासिा = बास, महाँ क ।
(4) सुतठ = खूब, बहुि । दीरघ चारर...होइ = ये सोिह श्रृंिार के तवभाि हैं ।
(5) दीरघ = िं बे । िीख = िीखे । तिति = िीि । केहरर हारा = तसंह िे हार कर दी । आाँ िा = अाँ िडी । सुभर = भरे हुए । िाि =
िािसा ।
पद्माविी-रूप-चचाा-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
भ हैं साम धिु क जिु चढा । बेझ करै मािु ष कहाँ िढा ॥
चंद क मू तठ धिु क वह िािा । काजर मिच, बरुति तबष-बािा ॥
जा सहुाँ हे र जाइ सो मारा । तिररवर टरतहं भ ह ं जो टारा ॥
सेिुबंध जेइ धिु ष तबिाडा । उह धिु ष भ ह ं न्ह स ं हारा ॥
हारा धिु ष जो बेधा राहू । और धिु ष कोइ ििै ि काहू ॥
तकि सो धिु ष मैं भ ह ं न्ह दे खा । िाि बाि तिन्ह आउ ि िे खा ॥
तिन्ह बािन्ह झााँझर भा हीया । जो अस मारा कैसे जीया ?॥
(1)बासा = महक, सुिंध । ओतह छु इ ....सभािा = उसको छूकर वायु तजि पेडों में ििी वे मियातिरर चंदि हो िए । काह ि मू तठ...दे ही
= उस मु ट्ठी भर दे ह में क्या िहीं है ? तचिेर = तचत्रकार ।
(2) सामरै ति = अाँधेरी राि । उडै िी = जुििू । सर = बाण । चार = ढं ि, ढब । दु ख = उसके दशाि से उत्पन्न तवकििा ।
(3) काि कर काढा = काि का चुिा हुआ ।पि =पिक । बूडी = डूबी हुई । धािु क = धिु ष चिािे वािी । ऊडी = पिडु ब्बी तचतडया ।
घाति....रखा = डाि रखा ।
(4) झार = झारिी है । जि दीपक िे सा = राि समझकर िोि दीया जिािे िििे हैं । तसर हुाँ ि = तसर से । तबसहर =तबषधर, सााँप ।
सकपकातहं = तहििे डोििे हैं । िहकतहं = िहरािे हैं , झपटिे हैं । िु रतहं = िोटिे हैं । तफरर तफरर भाँवर = पािी के भाँवर में चक्कर खाकर
। बन्दी = कैद , बाँधुवा । ढु रि आछै = ढरिा रहिा है । झााँप = ढााँकिी है ।
(5) पत्रावति = पत्रभंि-रचिा । पाटी = मााँि के दोिों ओर बैठाए हुए बाि । उरे ह =तवतचत्र सजावट । बि = बिि । पूजै = पू जि करिा है
।
(6) मतियारा = कांतिमाि् = सोहाविा । चुन्नी = चमकी या तसिारे जो माथे या कपोिों पर तचपकाए जािे हैं । पारस-जोति = ऐसी ज्योति
तजससे दू सरी वस्तु को ज्योति हो जाय । तसरी = श्री िाम का आभूषण । ओप = चमक । पूजतहं = बराबरी को पहुाँ चिे हैं ।
(7) बेझ करै बेध करिे के तिये । पिच = पिंतचका, धिु ष की डोरी । तबहाडा = िि तकया । धिु ष जो बेधा राहू = मत्स्यबेध करिे वािा
अजुाि का धिु ष । आउ ि िे खा = आयु को समाप्त समझा । बेह = बेध, छे द । (8) िै ि तचत्र...तचिेरा = िे त्रों का तचत्र इस रूप से तचतत्रि
हुआ है । तचिेरा = तचतत्रि तकया िया । बहोरर बहोरी = तफर तफर ।तफरर तफरर = घूम घूम कर । मिे सिाह = करिे में । अाँ ि
सेि...ओही = आाँ खों के सफेद डे िे और कािी पुितियााँ । िाि = िािसा ।
(9) कीरू = िोिा । सोतहि िारा = सुहेि िारा जो चंद्रमा के पास रहिा है । तबितस फूि..चढा = फूि जो खखििे हैं मािों उसी पर तिछा
वर होिे के तिये ।
(10) काढे अधर...चीर = जैसे कुश का चीरा ििा हो ऐसे पििे ओठ हैं जो खााँडै बीरा = जब बीडा चबािी है । जिु परभाि...दे खा =
मािों तवकतसि कमिमु ख पर सूया की िाि तकरिें पडी हों ।िाके = तदखाई पडे । मकोई = जंििी मकोय जो कािी होिी है । तकि वै
दसि...भीिे = कहााँ से मैं िे उि रं ि-भीिे दााँिों को दे खा ।
(12) कोंप = कोंपि, िया कल्ला । सााँिी = शां ति । मािी =माि कर । तबरवा पेड । सूख = सू खा हुआ । पिु ह = पिपिा है , हरा होिा है ।
बीि तबस्वासा = बीि समझकर ।
(13) कुंदि सीपी = कुंदि की सीप (िाि के सीपों का आधा सं पुट ) अं बर = वस्त्र । खूाँट = कोिा, ओर । खूाँटी = खूाँट िाम का िहिा
कचपतचया = कृतत्तका िक्षत्र । पुहुप पंक = फूि का कीचड या पराि । कै करा = के रूप, के समाि । बाएाँ तदखस्ट...होई= तकसी की बाईं
ओर ि जाय क्योंतक वहााँ तिि है । िा िाडी = िड िया । दु इ पहार = अथााि् कुच ।
(15) कुदै = खराद पर । कुाँदे रै = कुाँदे रे िे । करा =किा, शोभा । तघररि परे वा = तिरह बाज कबूिर । िमचूर = मु िाा । िेइ सोइ
ठााँव...दे खा = जो उसे दे खिा है वह उसी जिह ठक रह जािा है । जाति तहय चिी = हृदय में बस जािी है । िातिति = अथााि् केश ।
कमं ठ = कछु ए के समाि पीठ या खोपडी ।
(16) डााँडी काँवि ....िाई = कमििाि उिटकर रखा हो । कर-पल्लव = उाँ ििी । साखख = साक्षी । कंिि हाथ...साखख = हाथ कंिि
को आरसी क्या ?
(17) कचोरा = कटोरा । पाट = तसंहासि । साम छत्र = अथााि् कुच का श्याम अग्रभाि । िट् टू = िट् टू । फूरी = फूिी । साम = शाम
(सीररया) का मु ल्क जो अरब के उत्तर है । घर =खािा, कोठा । िोटा = िोटी । पिार = प्राकार या परकोटे पर ।
(18) दे ख = दे खा । खेिे = चिे िए । ब्रह्माँडि = स्विा ।
(19) बेकरारा = बेचैि । डासतहं = तबछािी हैं । स रं = चादर । फााँस = कडा िंिु । मकरर क िार = मकडी के जािे सा महीि । तछरर
जाइ = तछि जािा है । पािाँ ि पााँव...पाटा= = पैर या िो पिं ि पर रहिे हैं या तसंहासि पर । िे ि = रे शमी कपडे की चादर, िे त्र ।
(20) मातहं = भीिर हृदय के । जो जो मं तदर...दे खी = अपिे घर की तजि तजि खस्त्रयों को पतद्मिी समझ रखा था वे पतद्मिी (काँवि) का
वृत्तांि सुििे पर कुमु तदिी के समाि िििे ििी ं । चूरू कै = िोडकर । मतिि = हिोत्साह ।
(21) पदारथ = बहुि उत्तम बोि । परस पखािा = पारस पत्थर । सादू र शादू ा ि तसंह । िाििा = िििे वािा, तशकार करिे वािा । िरजि =
िरजिे वािा । रोझ = िीििाय । सचाि =बाज । सायर समु द्र ।
(22) जेंवा =दतक्षणा में । िाजि िाि = िाि का कोडा । करा = किा से, चिुराई से ।
बादशाह-चढाई-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
जेतह जेतह पंथ चिी वै आवतहं । िहाँ िहाँ जरै , आति जिु िावतहं ॥
जरतहं जो परवि िाति अकासा । बिखाँड तधकतहं परास के पासा ॥
िैंड ियदाँ जरे भए कारे । औ बि-तमररि रोझ झवाँकारे ॥
कोइि, िाि काि औ भाँवरा । और जो जरे तिितहं को साँवरा ॥
जरा समु द्र पािी भा खारा । जमु िा साम भई िेतह घारा ॥
धु आाँ जाम, अाँ िररख भए मे घा । ििि साम भा धुाँ आ जो ठे घा ॥
सुरुज जरा चााँद औ राहू । धरिी जरी, िं क भा दाहू ॥
(1)दै उ = (दै व) आकाश में । माँ तदर एक कहाँ ...साजू = घर बचािे भर को मेरे पास भी सामाि है पै = ही कोपी = कोप करके । सकि
= भरसक । दोस = दोष ।
(2) रािा िाि । जो िोतह भार ...िे िा = िेरी जवाबदे ही िेरे ऊपर है । डोिू = हिचि । बारा = दे र । जेतह = तजसकी ।
(3) घरति = िृतहणी , स्त्री । तजउ ि िे इ = चाहे जी ही ि िे िे । हमीरू = रणथंभ र का राजा हमीर । सक-बंधी = साका चिािे वािा ।
सैरंधी = सैरंध्री ,द्र पदी । राहु = रोहू मछिी । जाउ =जावै ।
(4) आपु जिाई = अपिे को बहुि बडा प्रकट करके । तछिाई = कोई स्त्री (1) सीस ि छााँडै...िािे = धु ि पड जािे से तसर ि कटा, छोटी
सी बाि के तिये प्राण ि दे । माख = क्रोध, िाराजिी ।
(5) कै िाई = की सी दशा । धरिी िोह...िााँबा = उस आि के पहाड की धरिी िोहे के समाि दृढ है और उसकी आाँ च से आकाश
िाम्रवणा हो जािा है । ज पै इसकंदर....कीन्ही = जो िुमिे तसकंदर की बराबरी की है िो । छर और डर = छि और भय तदखािे से ।
(6) दे व = राजा ; राक्षस । सुिेमााँ = यहूतदयों का बादशाह सुिेमाि तजसिे दे वों और पररयों को जीिकर वश में कर तिया था । बर खााँचा =
क्या हठ तदखािा है । रिथाँभउर = रण- थंभ र का प्रतसद्ध वीर हमीर अिाउद्दीि से िडकर मारा िया था ।
(7) दुं द घाव = डं के पर चोट । सकािा = डरा । अरं भ = शोर । बाररिाह = बारिाह, दरबार (1) बाररिह िािी = दरबार बढा । सरवाि =
झंडा या िंबू । सूिा = सोया हुआ । दर = दि, सेिा । बेसरा = खच्चर । विािे िीन्ह = घोडे कसे । सरह = शिभ, तटड्डी ।
(8) किकािी = एक प्रकार के घोडे जो िदहे से कुछ ही बडे और बडे कदमबाज होिे हैं । कुमइि = कुमै ि । खखंि = सफेद घोडा, तजसके
मुाँ ह पर का पट्टा और चारों सुम िुिाबीपि तिए हों । कुरं ि = कुिं ि । िखी = िाखी । तसराजी = शीराज के । च घर = सरपट या पोइयााँ
चाि, तकरतमज = तकरतमजी रं ि के । िुरास = बेि ।
(9) िोहसार = फ िाद । अाँ तधयारा = कािे । तहरकी = ििी,सटी । तिन्ह = उिकी । हस्ती = तदग्गज । िर कहाँ = िीचे को । उठै िहाँ
पािी = िड्ढा हो जािा है और िीचे से पािी तिकि पडिा है ।
(10) बािे = वेश, सजावट । हरे ऊ = हरे व, `हरउअिी' सरस्विी, प्राचीि पारसी हरह्वे िी या अरिंदाब िदी के आसपास का प्रदे श, जो तहं दूकुश के
दतक्षण-पतिम पडिा है । ि र =ि ड; वंि दे श की राजधािी । शाम = अरब के उत्तर शाम का मु ल्क । कामिा, तपंडवा = कोई प्रदे श । मिर
अराकाि जहााँ मि िाम की जाति रहिी है ।
(11) जाँबुर = जंबूर, एक प्रकार की िोप जो ऊाँटों पर चििी थी । कमाि = िोप । खदं िी = खदं ि, बाण । जीभा =जीभ । ितजम एक प्रकार
की कमाि तजसमें डोरी के स्थाि पर िोहे का सीकड ििा रहिा है और तजससे एक प्रकार की कसरि करिे हैं । एरातकन्ह = एराक दे श के
घोडों पर । पाखर = िडाई की झूि । सार = िोहा । बहर-बहर = अिि-अिि । मााँडो िे ई = मााँड िढ से िे कर । मथािी परी = हिचि
मचा । अाँ तधयार = अाँ तधयार और खटोिा, दतक्षण के दो स्थाि । पाि = पत्ता । बोति = चढाई बोिकर । छाि = छत्र ।
(13) जैस सुमेरै = जैसे सुमेरु ही हैं । दर = दि । पािी = पत्री , तचट्ठी । मे ड = बााँध । बााँधा = ऊपर तिया । िातहं ि सि...छाँ डाई =
िहीं िो हमारा सत् (प्रतिज्ञा) क ि छु डा सकिा है , अथााि् मैं अकेिे ही अडा रहूाँ िा । टू टे = बााँध टू टिे पर । बारर = बारी ,बिीचा ।
(14) राय = राजा । परे वा = तचतडयााँ, यहााँ दू ि । ज हर = िडाई के समय की तचिा जो िढ में उस समय िैयार की जािी थी जब राजपूि
बडे भारी शत्रु से िडिे तिकििे थे और तजसमें हार का समाचार पािे ही सब खस्त्रयााँ कूद पडिी थी ं । पिाँि कै िे खा = पिंिों का सा हाि
है । बीरा दे हु = तबदा करो तक हम वहााँ जाकर राजा की ओर से िडें ।
(15) कुरै = कुि । दाढी = बाजा बजािे वािी एक जाति । खे वे = ख र ििाए हुए । अाँ िवै = ऊपर िे िा है , सहिा है ।
(16) िस = ऐसा । खााँि = सामाि की कमी । बााँके चातह बााँक = तवकट से तवकट । मारा = मािा, समू ह । बीचु = अं िर, खािी जिह ।
साँचरे = चिे । चााँटी = चींटी । ठारे = ठाढे , खडे । सहसमु ख = सहस्त्र धारावािी ।
(17) इं द्र-भाँडार = इं द्रिोक । बैरख = बैरक, झंडे । पेतड = पेडी, ििा । आिू = आिे चााँप = रे िपेि , धक्का ।
(18) कमािें = िोपें । चक्र = पतहए । दारू = बारूद; शराब । मािी = `दारू'शब्द का प्रयोि कर चुके हैं इसतिये । बषाबर = समिि ।
(19) कह ं तसंिार...मिवारी = इि पद्यों में िोपों को स्त्री के रूपक में तदखाया है । िररवि = िाटं क िाम का काि का िहिा। टू टतहं कााँधे
= सातथयों के कंधे टू ट जािे हैं । बीर तसंिार = वीररस । बाि = िोिे । हे रतहं = िाकिी हैं । चुरकुि = चकिाचूर ।
(20) तधकतहं = िपिे हैं । परास के बिखाँड = पिाश के िाि फूि जो तदखाई दे िे हैं वे मािों वि के िपे हुए अं श हैं । िैंड = िैंडा रोझ
= िीििाय । झवाँकारे = झााँवरे । ठे वा = ठहरा , रुका । डु ं िवै = डूाँिर, पहाड । उठे बज् जरर....छाइ = इस वज् से (जैसे तक इं द्र के
वज् से ) पहाड जि उठे ।
(21) चकचूि = चकिाचूर । सि-खाँड....षटखंडा = पृथ्वी पर की इििी धू ि ऊपर उडकर जा जमी तक पृथ्वी के साि खंड या स्तर के
स्थाि पर छुः ही खंड रह िए और ऊपर के िोकों के साि के स्थाि पर आठ खंड हो िए । जेतह पथ...आथी = ऊपर जो िोक बि िए
उि पर इं द्र ऐरावि हाथी िे कर चिे तजसके चििे का मािा ही आकाशिंिा है । आथी = है । हररचंद पूरी = वह िोक तजसमें हररिंद्र िए ।
मतसयार = मशाि ।
(22) अचाका = अचािक , एकाएक । साँकेिा = संकुतचि हुआ । अपूरी = भरा हुआ । अतिितह पािी...धू री = अििी सेिा को िो पािी
तमििा है पर तपछिी को धू ि ही तमििी है । उजरी = उजडी । तजन्ह घर खेह...खेह = तजिके घर धू ि में खो िए हैं , अथााि् संसार के
मायामोह में तजन्हें परिोक िहीं तदखाई पडिा है । उरे ह = ििाये ।
(23) रूहा = चढा । सुििािी = बादशाहि । की धति...राजा = या िो राजा िू धन्य है । बैरख = झंडा । परछाहीं = परछाईं से । जेबिार
= िोिों को रसोई में ।
(24) साँजोऊ = िैयारी । अकूि -एकाएक, सहसा अथवा बहुि से । जुझाऊ =युद्ध के । िु खार = घोडा । रीसा = ईर्ष्ाा , बराबरी । प री =
सीढी के डं डे । मोरछााँह = मोरछि । सिाहा = बकिर । पहुाँ ची = बचािे का आवरण । ओपा = चमकिे हैं । ििझंप = ििे की झूि
(िोहे की) । िजिाह = हाथी की झूि ।
(25) इं द्ररस-बाहा = इं द्र का रथ खींचिे वािे । बािका = घोडे । पाखर = झूि । च रासी = घुघुरुओं का िुच्छा । बाहि दीन्ह....बीरा =
तजिको सवारी के तिये वे घोडे तदए उन्हें िडाई का बीडा भी तदया । घाि िितहं ितहं = कुछ िही समझिे । सेंदूर = यहााँ रोिी समझिा
चातहये । खेवरे = ख रे , ख र ििाए हुए
(26) रजबारा = राजिार । दरपि = चार-आईि ;बकिर । िोहे सारी = िोहे की बिी । अाँ बारी = मं डपदार ह दा । तसरी = माथे का िहिा ।
रूाँ दैं = र द
ं िे हैं । किमिी = खि बिाई । माँ जूसा = ह दा । ढार = ढाि । भिपति = भािा चिािे वािे । धिु कार = धिु ष चिािे वािे ।
(27) असुदि = अश्वदि । दे विोक ...इं द्र = जैसे इं द्र के साथ दे विा चििे हैं सूर के कटक = बादशाह की फ ज । रै ति मतस = राि की
अाँ धेरी । चााँद = राजा रत्नसेि । िखि = राजा की सेिा । अिी = सेिा । होवै चाहै = हुआ चाहिा है ।
राजा-बादशाह-युद्ध-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) बाजा = पहुाँ चा । िाजे = िरजे । दतध = दतधसमु द्र । उदतध = पािी का समु द्र । खखखखंद = तकखकंधा पवाि । सहुाँ = सामिे । पेिे =
जोर से चिाए । जूह = यूथ, दि ।
(2) िराहीं = िीचे । दर = दि । चााँतप = दबकर । िरब = मदजि । िुद = तसर का िूदा । तमिाइ = धू ि तमिाकर ।
(3) आठ ं बज् = आठों वज्ों का । दर = दि में । फारा = फाि , टु कडा । सेि बरछे । होइ =होिा है । कााँदो = कीचड । मु ख राि =
िाि मु ख िे कर, सुखारू होकर । मतस = कातिमा, स्याही । पराि = भाििे हुए ।
(4) काऊ = कभी । िोहे = हतथयार । अिाऊ = आिे, सामिे । िूरा = िुरही । मााँडो = मं डप । अिी सेिा । सकति = शखक्त भर, भरसक
। पोखख = पोषण करके । ओछ = ओछा, िीच । पूर = पूरा । जोखख आवति = तवचारिा आिा है । जो तथर आवि जोखख = जो ऐसे शरीर
को खस्थर समझिा आिा है ।
(5) चााँद = राजा । सूर बादशाह । समू हा = शत्रुसेिा की भीड । छािू = छत्र । दर िोहा = सेिा के चमकिे हुए हतथयार । ओडि = ढाि,
रोकिे की वस्तु । ओडि चााँद....पाए = चंद्रमा के बचाव के तिये समय-तवशेष (रातत्र) तमिा जब तक सूया सामिे िहीं आिा । जिमि =
झिझिािी हुई । जिमि ....िाति = राजा िे िढ पर से बादशाह की चमकिी हुई सेिा को दे खा । छु ए....आति = यतद िोहा सूया के
सामिे होिे से िप जािा है िो जो उसे छु ए रहिा है उसके शरीर में भी िरमी आ जािी है , अथााि् सूया के समाि शाह की सेिा का प्रकाश
दे ख शस्त्रधारी राजा को जोश चढ आया ।
(6) काँवि = बादशाह । कुमु द = कुमु द के समाि संकुतचि । तदि...बडाई = तदि में सूया के सामिे उसकी क्या बडाई है ? िपे = प्रिापयुक्त
थे । जो होइ सरि..झूझा = जो स्विा (ऊाँचे िढ) पर हो वह िीचे उिरकर युद्ध िहीं करिा । हाथ परै िढ = िू ट हो जाय िढ में । भा
िढपति = तकिे में हो िया , अथााि् सूया के सामिे िहीं आया ।
(7) उदतध समुद्र = पािी का समु द्र । केिेन्ह...साजा = ि जािे तकििों को िए िए सामाि दे िा है । िस राजा = ऐसा बडा राजा वह
अिाउद्दीि है । अिं िै = बाजू, सेिा का एक एक पक्ष । अतिदाह = अतिदाह। सुरुज िहि ....राहु = सूया (बादशाह)-- चंद्रमा (राजा) के
तिए ग्रहण-रूप हुआ चाहिा है , वह चंद्रमा (राजा) के तिये राहु-रूप हो िया है ।
(8) भा बासा = अपिे डे रे में तटकाि हुआ । िखि = राजा के सामं ि और सैतिक िू क = अति के समाि बाण । उठ =उठिी है । कोल्हहु =
कोल्हहू । ढरकाहीं = िु ढकाए जािे हैं । सकै को.....कातढ = उि बाणों के सामिे सेिा को क ि आिे तिकाि सकिा है ।
(9) िरे रा = घेरा । एक मु ख = एक ओर । बाजतहं = पडिे हैं । फोंक = िीर का तपछिा छोर तजसमें पर ििे रहिे हैं । बाजतहं जहााँ
...फूटतह = जहााँ पडिे है तपछिे छोर िक फट जािे हैं , ऐसे जोर से वे चिाए जािे हैं । राँ ि = रण-रं ि । िाक = िाका, मु ख्य-स्थाि ।
(10) सुराँि = सुरंि, जमीि के िीचे खोदकर बिाया हुआ मािा । िरिज = परकोटे का वह बुजा तजसपर िोप चढाई जािी है । कमािैं = िोपें
। दारू = बारूद । तफरं िी = पुिा -िािी भारि में सबसे पहिे आए पुिािातियों के तिये प्रयुक्त हुआ) िोट = िोिे । ओदरतहं = ढह जािे हैं
। रावट =महि । अजर = जो ि जिे ।
(11) थवई = मकाि बिािे वािे । तचत्र = ठीक, दु रुस्त । िुपक = बंदूक । बाजा = पडिे हैं । धरिी सरि = आकाश और पृथ्वी के बीच ।
डु ं िवा = टीिा ।
(12) समु हें = सामिे । मादर = मदा ि, एक प्रकार का ढोि । रबाब = एक बाजा । कमाइच = सारं िी बजािे की कमाि । उपंि = एक बाजा
। िूरा =िूर, िुरही । महुअर = सूखी िुमडी का बिा बाजा तजसे प्रायुः साँपेरे बजािे हैं । हुडु क = डमरू की िरह का बाजा तजसे प्रायुः कहार
बजािे हैं । िंि = िंत्री । घििार = बडा झााँझ ।
(13) ऊपर भए; िर भए = ऊपर से; िीचे से । िढ माथे = तकिे के तसरे पर । उमरा झुमरा = झूमर, िाच ।
(14) पहूाँ च = पहुाँ चिी है ।
(15) तफरि = तफरिे हुए । तसंघासि = तसंहासि पर = िूाँजा = िरजा । तमररि = मृ ि अथााि् मृिियिी । भूजा = भोि करे िा ।
(15) भए ऊाँचे = ऊपर की ओर चिाए िए । सााँचा= शरीर । उडसा = भंि हो िया । िारा = िाि, िािी ।
(16) अकास चढाई== और ऊाँचे पर बिवाई । चहुाँ फेर ििाई = चारों ओर ििाकर । मढा = घेरा । पटाऊ = पटाव। ििि िेइ = आकाश
िक । को कााँध = उस जिह जािे का भार क ि ऊपर िे सकिा है ?
(17) मिै = सिाह करिे के तिये । कीजै बेति...कााँधा = जैसा भारी युद्ध आपिे तिया है उसी के अिु सार कीतजए, यही सिाह सबिे दी ।
समतद = एक दू सरे से अं तिम तबदा िे कर । साका कीन्ह = कीतिा स्थातपि की है चातहय पूरी = पूरी होिी चातहए । सरा = तचिा । ज हर =
िढ तघर जािे पर जब राजपूि िढ की रक्षा िहीं दे खिे थे िब खस्त्रयााँ शत्रु के हाथ में ि पडिे पाएाँ इसके तिये पहिे ही से तचिा िैयार रखिे
थे । ( जब िढ से तिकिकर पुरुष िडाई में काम आ जािे थे िब खस्त्रयााँ चट तचिा में कूद पडिी थी । यही ज हर कहिािा था ) खेवरे =
क र ििाई । मे हररन्ह = खस्त्रयों । खेह = राख ।
(18) आइ साह अाँ वराव...पाए = बादशाह िे आकर जो आम के पेड ििाए वे बडे हुए, फिकर झड भी िए पर िढ िहीं टू टा । जो िोर ं =
बादशाह कहिा है तक यतद िढ को िोडिा हूाँ िो । अरदासैं = अजादाश्त, प्राथािापत्र । हरे व = हे राि प्रदे श का पुरािा िाम । थाि उठे =
बादशाह की जो स्थाि स्थाि पर च तकयााँ थी वह उठ िईं । तजन्ह....बबूर = तजि तजि रास्तों में घास भी उिकर बाधक िहीं हो सकिी थी
उिमें बादशाह के रहिे से बेर और बबूि उि आए हैं ।
राजा-बादशाह-मे ि-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
सुरजा पितट तसं घ चतढ िाजा । अज्ञा जाइ कही जहाँ राजा ॥
अबहूाँ तहये समु झु रे , राजा । बादसाह स जू झ ि छाजा ॥
जेतह कै दे हरी पृतथवी सेई । चहै ि मारै औ तजउ िे ई ॥
तपंजर माहाँ ओतह कीन्ह परे वा । िढपति सोइ बााँच कै सेवा ॥
ज िति जीभ अहै मु ख िोरे । साँवरर उघेिु तबिय कर जोरे ॥
पुति ज जीभ पकरर तजउ िे ई । को खोिे , को बोिे दे ई ?॥
आिे जस हमीर मै मंिा । ज िस करतस िोरे भा अं िा ॥
(1) चीिे = सोचे, तवचारे । तचंिा एक...ठाएाँ = एकहृदय में द ओर की तचंिा ििी । िढ स . ं ..टू टै = बादशाह सोचिा है तक िढ िे िे में
जब उिझ िए हैं िब उससे िभी छूट सकिे हैं जब या िो मे ि हो जाय या िढ टू टे । पाहि कर ररपु ....हीरा = हीरे पत्थर का शत्रु हीरा
पत्थर ही होिा है अथााि् हीरा हीरे से ही कटिा है । पाि दे इ बीरा = ऊपर से मे ि करके । मािहु सेऊ = आज्ञा मािो । चूरा कीन्ह = एक
प्रकार से िोडा हुआ िढ । खाहु = भोि करो । समदि कीन्ह = तबदा के समय भेंट में तदए थे ।
(2) उघेिु = तिकाि। हमीर = रिथंभ र का राजा, हमीरदे व जो अिाउद्दीि से िडकर मारा िया था । िस = वैसा । घर ि घािु = अपिा घर
ि तबिाड ।
(3) िाका = ऐसा तबचारा ॥ सााँ तठ = सामाि । कााँिा कम होिा । समद ं = तबदा के समय का तमििा तमिूाँ । जो तितस बीच....दहुाँ होई =
(सरजा िे जो कहा था तक `दे खु काखि िढ टू टै ' इसके उत्तर में राजा कहिा है तक) एक राि बीच में पडिी है (अभी राि भर का समय
है ) िो कोई डर की बाि िहीं; दे ख िो कि क्या होिा है ?
(4) अिु = तफर । सजविा = िैयारी । रविा = रावण । अन्न माटी होइ = खािा पीिा हराम हो जायिा । साँघारू = संहार, िाश । ढोवा =
िू ट । मकु सो एक िुि....मे ट = शायद
(5) को भेट पारा = इस बाि को क ि तमटा सकिा है तक । भाँ डारा = भंडार से । जो यह बचि = जो बादशाह का इििा ही कहिा है िो
मे रे तसर मत्थे पर से । बाचा-परवााँिा = बचि का प्रमाण है । िाव जो मााँ झ...िीवा = जो तकसी बाि का बोझ अपिे ऊपर िेकर बीच में
िरदि हटािा है । छि = छि से । बसीठ मािा = सुिह का साँदेस माि तिया ।
(6) सोिहार= समु द्र का पक्षी । कााँडी = तपंजरा ? तबििी करतहं काि मतस कारे = हे सूया ! क ए तबििी करिे हैं तक उिकी कातिमा ( दोष,
अविुण) दू र कर दे अथााि् राजा के दोष क्षमा कर । कोह = क्रोध । छोह = दया, अिु ग्रह । धू प = धू प से । छाहााँ = छााँह में , अपिी छाया
में । परा माँ जूसा = झाबे में पड िया अथााि् तघर िया । काितह केर अभाि = क ए का ही अभाग्य है तक उसकी कातिमा ि छूटी ।
(7) कािहु कै मतस...िाई = क वै की स्याही िुम्हीं िे ििा िी है (छि करके) वे क ए िहीं हैं । पतहिे तह...भािै = जो क वा होिा है वह
ज्योंही धिु ष खींचा जािा है भाि जािा है । अबहूाँ ..होहों = वे िो अब भी यतद उिके सामिे बाण तकया जाय िो िुरंि िडिे के तिये तफर
पडें िे । धिु क = युद्ध के तिये चढी कमाि, टे ढापि, कुतटििा । सर = शर िीर, िाि, सरोवर । जो सर....सामा = जो िडाई में िीर के
सामिे आिे हैं वे श्वेि बििे कािे कैसे हो सकिे हैं ? करै ि आपि....साँदेसा = िू अपिे को शुद्ध और उज्ज्वि िहीं करिा, केवि क वों की
िरह इधर का उधर साँदेसा कहिा है (कतव िोि िातयकाओं का क ए से साँदेशा कहिा वणाि करिे हैं )। अपिे चिि...आाँ के = वे एक बाि
पर दृढ रहिे हैं और सदा वही कातिमा ही प्रकट करिे हैं पर िू अपिे को और का और प्रकट करके छि करिा है ।
(8) अब सेवा...जोहारे = उन्होंिे मे ि कर तिया है , िू अब भी दे ख सकिा है तक श्वेि हैं या कािे अथााि् वे छि िहीं करें िे । जो रे धिु क
..बािू = जो अब वह तकिे में मे रे जािे पर तकसी प्रकार की कुतटििा करे िा िो उसके सामिे तफर बाण होिा ( धिु ष टे ढा होिा है और
बाण सीधा ) । िुि = िूि, रस्सी । जहाँ वा धिु क ....सोझा = जहााँ कुतटििा हुई तक सामिे सीधा बाण िैयार है ।
बादशाह -भोज- खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) रोझ = िीििाय । िििा = एक विमृि । चीिर = तचत्रमृ ि । िोइि = कोई मृ ि । झााँ ख = एक प्रकार का बडा जंििी तहरि; जैसे -
ठाढे तढि बाघ, तबि, तचिे तचिवि झााँख मृ ि शाखा मृ ि सब रीतझ रीतझ रहे हैं । ससे = खरहे । पुछार = मोर । खेहा = केहा, बटे र की िरह
की एक तचतडया । जुडरू = कोई पक्षी । बिेरी = भरिाज, भरुही । चरि = बाज की जाति की एक तचतडया । चाह = चाहा िामक जिपक्षी
। तपदारे = तपद् ््दे । िकटा = एक छोटी तचतडया सोि, सिारे =कोई पक्षी । खुरुक = खटका । पतढिा =पाठीि मछिी, पतहिा । रोहू, तसधरी,
स री टें िरा, सींिी, भाकुर, पथरी, बििरी, चरख, तपयासी = मछतियों के िाम । बााँब = बाम मछिी जो दे खिे में सााँप तक िरह िििी है । चाि
= चेिवा मछिी । तिरुवारा = छु डाए ।
(2) रााँचे = अिु रक्त, तिप्त । िेतह सरवर-घािे = उस सरोवर में पडे हुए को क ि बचा सकिा है । ( जीवपक्ष में संसार -सािर में पडे हुए
का क ि उद्धार कर सकिा है । एतह मु ख...दे ह = इसी दु ख से िो मछिी िे शरीर में कााँटे ििाकर, रक्त िहीं रखा। िपि जििी हुई ,
िरम िरम । िैिू = िविीि , मक्खि । कोंवरी = कोमि । तघउ मे ई = घी का मोयि दी हुई । कहि म मीठ ...बाि = उिके िाम िेिे
से मुाँ ह मीठा हो जािा है ।
(4) काजर-रािी = रािी काजि िाम का चावि । रायभोि, तझिवा, रुदवा, दाउदखािी, बासमिी, कजरी मधु कर, ढे िा, झीिासारी, तघउकााँदो, कुाँवर-
तबिास, रामबास, िवाँिचूर, िाची, सोिखररका, कपूरी, संसारतििक, खाँडतविा, धतिया, दे वि = चाविों के िाम । पुहुप = फूिों पर ।
(5) कटु वा = खंड खंड कटा हुआ । बटु आ = तसि पर बटा या तपसा हुआ । अिबि = तवतवध,अिे क। िरासू = ग्रास, क र । िरे = ििे हुए
। आाँ डी = अं ठी, िााँठ । िाकतहं िाका =िवा दे खिे हैं । परे ह = रसा, शोरबा । सरािन्ह = तसखचों पर, शिाकाओं पर । िूाँतज उठे ।
(6) ठाढे = खडी, समू ची । भए फर...भााँटा = मााँस ही अिे क प्रकार के फि-फूि के रूप में बिा है । तहं दवािा = िरबूज, किींदा । बािम
खीरा = खीरे की एक जाति । खजहजा = खािे के फि । तसरका भेइ...आिे = मािों तसरके में तभिोए हुए फि समू चे िाकर रखे िए हैं
(तसरके में पडे हुए फि ज्यों के त्ों रहिे हैं ) । मसेवरा = मााँ स की बिी चीजें सीतझ = पक्की, तसद्ध हुई । बारी = काछी या मािी । बारी
आइ...छूाँछ = मािी िे पुकार मचाई तक मे रे यहााँ जो फि-फूि थे वे सब िो मु झे खािी करके िे तिए अथााि् वे सब मााँस ही के बिा तिए
िए ।
(7) पखारर = धोकर । बसवारू = छ क ं । परे ह = रसा । खााँडर = कििे । िरर = ििकर । बेहर = अिि । टााँक =बरिि, कटोरा ।
सेरावा = ठं ढा तकया । िख = एक िंधद्रव्य । अरदावा = कुचिा या भुरिा । पहुाँ च िति =पहुाँ चा या किाई िक । ऊड = तववाह करे या
रखे (ऊढ)।
(8) फारी = फाि, टु कडे । ि आ = घीया, कद् दू । रयिा = रायिा । रिी रिी = महीि महीि । चूक = खटाई । रींधे =पकाए । अरहि =
चिे की तपसी दाि जो िरकारी में पकािे समय डािी जािी है रे हि । बाटा = पीसा । डें डसी = कुम्हडे की िरह की एक िरकारी,
तटं ड,(तटतडस) िरी = ििी । धुाँ िार =छ कं । चुरमु र = कुरकुरे । करुई कातड = कडवापि तिकािकर (िमक हल्दी के साथ मिकर ) । कै
खाटै = खट्टे करके । फारा = फाि, टु कडे ।
(9) बेिर = उदा या मूाँ ि का रवादार आटा, धुाँ वााँस । बरा =बडा । पीठा पीसा िया । मुाँ ि छी = मूाँ ि का पक वाि । मुाँ ि रा = मूाँि की पक डी
। मे थ री = एक प्रकार की बडी । खरसा = एक पकवाि । मतहयाउर = मट्ठे में पका चावि । िै िू = िविीि, मक्खि । बर री =बढी ।
ररकवाँच = अरुई या कच्चू के पत्ते पीठी में िपेटकर बिाए हुए बडे । आद = अदरक ।
(10) िहरी = बडी और हरी मटर के दािों की खखचडी । खरहरी = खररक, छु हारा । िुरंब = शीरे में रखे हुए आम । मे टा = तमट्टी के बरिि
, मटके ।िोहाँ डा = िोहे का सििा । मु रंडा = पािी तिथार कर तपंडाकार बाँधा दही या छे िा । साँधािे = अचार । छाि = एक तमठाई । टोरी
= ठ र । तपराकैं = िोतझया । बुाँ दोरी = बुाँतदया । पतछयाउरर = मट्ठे में तभिोई बुाँतदया । सीझी = तसद्ध हुई,पकी ।
(11) जि = तजििी । िि = उििी । पािी मू ि ....कोई = जो कोई तवचार कर दे खे िो पािी ही सबका मू ि है । अमृ ि-पाि = अमृ ि
पाि के तिये । दुं द = ठक ठक ।
तचत्त रिढ-वणाि-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) जेवााँ = भोजि तकया । तबहाि = सबेरा । मि िें अतधक = मि से अतधक बेिवािा । पवाँरर = ड्य ढी । िाढ = कतठि । िाके = च तकयााँ
। तजन्ह िें िवतहं करोरर = तजिके सामिे करोडों आदमी आवें िो सहम जायाँ ।
(2) घररयारा = घंटे । तफरै = जब तफरै । भाँवरी चक्कर । पीढी = तसंहासि । िे खा = समझा, समझ पडा । फुर = सचमु च ।
(3) साँिति = सभा । सुख चाउ = आिन्द मं िि । मादर = मदा ि, एक प्रकार ढोि । घूरन्ह = कूडे खािों में । छहरािे = तिखरे हुए ।
पााँसासारर = च पड । ओिातहं = झुके या ििे ।
(4) पुरइि = कमि । अिोरे = रखवािी या सेवा में खडी है । सारदू ि = तसंह । िििाजतहं = िरजिे हैं । कटाऊ = कटाव, बेिबूटे ।
(5) रािा = िाि । दरपि भाव....दे करावा = दपाि के समाि ऐसा साफ झखाझक है तक प्रतितबंब तदखाई पडिा है । अकूर = अं कुर ।
ियितहं ि आव = िजर में िहीं जाँचिा है ।
(6) उपराही = ऊपर । सूर = सूया के समाि बादशाह । सतस = चंद्रमा के समाि राजा । सतस...दीठी = सूया के सामिे चंद्रमा (राजा) की
ओर िजर िहीं जािी है । अखाडा = अखाडा; राँ िभूतम ; जैसे इं द्र का अखाडा । जािहुाँ सब धं धा = मािो िाच-कूद िो संसार का काम ही है
यह समझकर उस ओर ध्याि िहीं दे िा है । कह = कहिा है । दहक = तजससे दहकिा है । िुि = डोरी । खााँच = खींचिी है ।
(7) रावि = सामं ि । दु व जिु वाहााँ = मािो राजा की दोिों भुजाएाँ हैं । स्रवि िािे = काि में ििकर सिाह दे िे ििे । मू तस ि जातहं = िू टे
िहीं जािे हैं । बाचा परखख ...बूझा = उस मु सिमाि की मैं बाि परखकर समझ िया हूाँ । मे र = मे ि । कै फेरू = घुमा तफराकर । बैरी
= शत्रु; भेर का पेड । सो मकोय रह....आाँ टा = उसे मकोय की िरह (कााँटे तिए हुए) रहकर ओट या दााँव में रख सकिे हैं । आाँ टा =
दााँव । अिोटी = छें का । ओछ = ओछे , िीच । पावा धािू = दााँव पेच समझ िया । मू ि िए ...पािू = उसिे सोचा है तक राजा को
पकड िें िो सेिा-सामं ि आप ही ि रह जायाँिे । कृस्न = तवष्णु, वामि । छर-बााँध = छि का आयोजि । कााँध दीतजय = स्वीकार कीतजए ।
(8) तबष-हार = तवष हरिे वािा । तबसहर = तवषधर , सााँप । होइ िोि तबिाई = िमक की िरह िि जािा है । कर िे ई = हाथ में िे िा है ।
मारे िोि = िमक से मारिे से , अथााि् िमक का एहसाि ऊपर डाििे से । बाजा = ऊपर पडिा है । िोि जस िाि = अतप्रय ििा, बुरा
ििा । कोहार = रूठकर । मतधर = अपिे घर । छाि = बााँधिी है । िोि = रस्सी । तसंध....िोि= = तसंह अब रस्सी से बाँधा चाहिा है
।
(9) रायमुिी = मु तिया िाम की छोटी सुंदर तचतडया । सारं ि = धिु ष ।
(10) आउ = आयु । कहाँ केिकी....बासी = वह केिकी यहााँ कहााँ है (अथााि् िहीं है ) तजस पर भ रं े बसिे हैं । पदारथ = रत्न । ज िति
सूर....परिासू = जब िक सूया ऊपर रहिा है िब िक चंद्रमा का उदय िहीं होिा; अथााि् जब िक आपकी दृति ऊपर ििी रहे िी िब िक
पतद्मिी िहीं आएिी । हे रै = दे खिा है । हिा राहु अजुाि परछाहीं = जैसे अजुाि िे िीचे छाया दे खकर मत्स्य का बेध तकया था वैसे ही आप
को तकसी प्रकार दपाण आतद में उसकी छाया दे खकर ही उसे प्राप्त करिे का उद्योि करिा होिा । सूख = सूखिा है ।
(11) पिवार = बडा पत्ति । माडे = एक प्रकार की चपािी । जूरी = िड्डी ििाकर । साँधाि = अचार । बूकतह बूक = चंिुि भर भरकर ।
करतहं साँवार िोसाईं = डर के मारे ईश्वर का स्मरण करिे िििी हैं ।
(12) िखि = पतद्मिी की दातसयााँ । सतस = पतद्मिी । जेंवा = भोजि करिा । बहु परकार = बहुि प्रकार की खस्त्रयााँ । परी ं असू झ = आाँ ख
उिपर िहीं पडिी । िोिी = सुंदरी पतद्मिी । िोि सब खारी = सब खारी िमक के समाि कडवी िििी हैं । आवतहं ितड = िड जािे हैं ।
ि आटा = िहीं पहुाँ चिा है । काँवि के डं डी = मृणाि रूप पतद्मिी में । किउाँ डी = दासी । अिभावि = तबिा मि से । बैरािा = तवरक्त ।
उपास = उपवास ।
(13) कचोरा = कटोरा । अघा = अघािा है , िृप्त होिा है । मघा = मघा िक्षत्र । कोपर एक प्रकार का बडा थाि या पराि । हाथ धोवाईं =
बादशाह िे मािों पतद्मिी के दशाि से हाथ धोया ।तवरह करोरा = हाथ जो धोिे के तिए मििा है मािो तबरह खरोच रहा है । हाथ मरोरा =
हाथ धोिा है , मािो पछिाकर हाथ मििा है ।
(14) सेव = सेवा में । घाति तिउ पािा = ििे में पिडी डािकर ( अधीििासूचक) सीऊ = शीि । रै ति-मतस = राि की कातिमा । िेहु
चातह = उससे भी बढकर । साँघार = िि कर ।
(15) तदपा = चमका । मतस = कातिमा । खाहु = भोि करो । मााँड = मााँड िढ । दे वा = दे व , राजा । िीक-पखाि = पत्थर की िीक सा
(ि तमटिे वािा) पसाउ = प्रसाद,भेंट । मू रू = मू िधि । प्रीति = प्रीति से । छि = छि से । रिि = राजा रत्नसेि । पदारथ =पतद्मिी ।
(16)घररक = एक घडी , थोडी दे र । भीति = दीवार में । िावा ििाया । रह साजा ििा रहिा है तपयादे पाऊाँ = पैदि । तपयादे = शिरं ज
की एक िोटी । फरजी = शिरं ज का वह मोहरा जो सीधा और टे ढा दोिों चििा है । फरजीबं द = वह घाि तजसमें तकसी प्यादे के जोर पर
बादशाह को ऐसी शह दे िा है तजससे तवपक्षी की हार होिी है । सह = बादशाह को रोकिे वािा घाि । रथ = शिरं ज का वह मोहरा तजसे
आजकि ऊंट कहिे हैं । ( जब चिुरंि का पुरािा खेि तहं दुस्ताि से फारस-अरब की ओर िया िब वहााँ `रथ' के स्थाि पर `ऊाँट' हो िया)
बुदा = खेि में वह अवस्था तजसमें तकसी पक्ष के सब मोहरे मारे जािे हैं , केवि बादशाह बच रहिा है ; यह आधी हार मािी जािी है । शह-
माि = पूरी हार ।
(17) सूर दे ख...िरई दासी = दासी रूप िक्षत्रों िे जब सूया-रूप बादशाह को दे खा । जहाँ सतस....परिासी = जहााँ चंद्र-रूप पदमाविी थी
वहााँ जाकर कहा । परिासी = प्रकट तकया, कहा । भूजा = भोि करिा है । आरस = आदशा , दपाण । कसा कस टी आरस = दपाण में
दे खकर परीक्षा की । तकि आव = तफर कहााँ आिा है , अथााि् ि आएिा ।
(18)कहे सतस ठाऊाँ = इस जिह चंद्रमा है , यह कहिे से । सुिे = सुििे से । परस भा िोिा = पारस या स्पशामतण का स्पशा सा हो िया ।
रुख = शिरं ज का रुख । रुख = सामिा । भा शहमाि = शिरं ज में पूरी हार हुई ; बादशाह बेसुध या मिवािा हो िया । झााँपा = तछपा, िुप्त
। भा तबसाँभार = बादशाह बेसुध हो िया िाति सोपारी = सुपारी के टु कडे तििििे में छािी मे म रुक जािे से कभी कभी एकबारिी पीडा होिे
िििी है तजससे आदमी बैचैि हो जािा है ; इसी को सुपारी िििा कहिे हैं । दे खै = जो उठकर दे खिा है िो । करा = किा, शोभा ।
(19) भोजि-प्रेम = प्रेम का भोजि (इस प्रकार के उिटे समास जायसी में प्रायुः तमििे हैं - शायद फारसी के ढं ि पर हों ) सो जाि = वह
जाििा है । बास-रस - केवा = केवा-बास-रस अथााि् कमि का िंध और रस । सूरुज दे खख....तबसमसऊ = (वहााँ जाकर दे खा तक)
सूया-बादशाह कमि-पतद्मिी को दे खकर स्तब्ध हो िया है । तदि = प्रतितदि । पिु हतहं = पिपिे हैं । उकठे = सूखे । िुम्ह = िुम्हें । तदितहं
ियि....जाि = तदि के सोये सोये आप राि होिे पर भी ि जािे तितचंि = बेखबर ।
(20)रहा अाँ िरपट...अहा = परदा था भी और िहीं भी था अथाा ि् परदे के कारण मैं उस िक पहुाँ च िहीं सकिा था । पर उसकी झिक
दे खिा था; यह जिि ब्रह्म और जीव के बीच परदा है पर इसमें उसकी झिक भी तदखाई पडिी है । रहा पाति ...ि होई = उसमें पािी था
पर उस िक पहुाँ चकर मैं पी िहीं सकिा था । सरवर = वह दपा ण ही यहााँ सरोवर के समाि तदखाई पडा । सरि आइ धरिी ...आवा =
सरोवर में आकाश (उसका प्रतितबंब) तदखाई पडिा है पर उसे कोई छू िहीं सकिा । धरति = धरिी पर । धरि ि आवा = पकडाई िहीं
दे िा था । करन्ह अहा = हाथों में ही था । अब जहाँ चिुरदसी.. ..कहााँ = च दस के चंद्र के समाि जहााँ पतद्मिी है जीव िो वहााँ है ,
अमावस्या में सूया (शाह) िो है ही िहीं । वह िो चिुदाशी में हैं ; चिुदाशी में ही उसे अद् भुि ग्रहण िि रहा है । ि तक िई = चमक उठी,
तदखाई पड िई ।
(21) तचि कै तचत्र = तचत्त या हृदय में अपिा तचत्र पैठाकर । कुंभस्थि जोरू = हाथी के उठे हुए मस्तकों का जोडा (अथााि् दोिों कुच)
आाँ कुस िाि = सााँपों (अथााि् बाि की िटों) का अं कुश । मोरू = मयूर । तमररि = अथााि् मृ िियिी पद्माविी । िवि तफरर तकया = पीछे
तफरकर चिी िई । सतस भा िाि = उसके पीछे तफरिे से चंद्रमा के स्थाि पर िाि हो िया, अथााि् मु ख के स्थाि पर वेणी तदखाई पडी ।
सूर भा तदया = उस िाि को दे खिे ही सूया (बादशाह) दीपक के समाि िेज हीि हो िया ( ऐसा कहा जािा है तक सााँप के सामिे दीपक
की ि तझितम िािे िििी है ।) पहुाँ च तबहूाँ ि.....तकि भई ? जहााँपहुाँ िहीं हो सकिी वहााँ दृति क्यों जािी है ? हे रि िएउ = दे खिे ही मे रा
जीव चिा िया । तकि आछि जो असाद = जो वश में िहीं था वह रहिा कैसे ? यह िि....अपराध = यह तमट्टी का शरीर पंख ििाकर
क्यों िहीं जा सकिा, इसिे क्या अपराध तकया है ?
(22) बेतधया = बेध करिे वािा अं कुश । ओतह = उसका । तदया तचि भएऊ = वह िुम्हारा तचत्र था जो िाि के सामिे दीपक के समाि िेज
हीि हो िया मति कीज = ऐसी सिाह या युखक्त कीतजए । अिक....रस िीज = सााँप की िरह जो िटें हैं उन्हें पकडकर अधर रस िीतजए
( राजा को पकडिे का इशारा करिा है ) ।
रत्नसेि-बंधि-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) मीि भै = तमत्र से । सेराई = समाप्त होिा है । छर = छि । बर = बि । ि आाँ टा = िहीं पूरा पडिा है । हे िु = प्रेम । तघउ मधु ।
कहिे हैं , घी और शहद बराबर तमिािे से तवष हो जािा है । मुाँ ह = मुाँ ह में । पेट = पेट में ।
(2) चााँद पद्माविी । सूरुज=बादशाह । िखि = अथााि् पद्माविी की सखखयााँ । अिाह = आिे से, पहिे से । राज भूिि = राजा भूिा हुआ है
। पतहरावा = राजा को खखिाि पहिाई । च घडा = एक प्रकार का बाजा । माड = माड िढ । चाँदेरर = चाँदेरी का राज्य । िरे रर = घेरकर ।
एतह जि...(यह संसार समु द्र है ) इसमें बहुि सी ितदयों का जि इकट्ठा हुआ है , अथााि् इसमें बहुि िरह के िोि हैं । आिु = आिम ।
तडतठयार = दृतिवािा । सरे खा = चिुर । ितज कतबिास....पाया = तकिे से िीचे उिरा; सुख के स्थाि से दु ुःख के स्थाि में तिरा । अिोठी
= अिोठा, छे का, घेरा । जि हुाँ ि...काछू = वही कछु वा है जो जि से िहीं तिकििा और िहीं मरिा । सत्रू....माँ दा = शत्रु रूपी िाि को
पेटारी में बंद कर तिया । पैि िहीं खूाँदा = एक कदम भी िहीं कूदिा । चीि सातम कै दोह = जो स्वामी का द्रोह मि में तबचारिा है ।
(4) ऐसे शत्र दु हेिा = शत्रु भी ऐसे दु ख में ि पडे । बखािा = चचाा । जि खूाँदा = संसार में आकर कूदे । मूाँ दा बंद तकया । मीि = मत्स्य
अविार । पंडव = पांडव ।
(5) दे व = राजा, दै त् । सुिेमााँ = यहूतदयों के बादशाह सुिेमाि िे दे वों और पररयों को वश में तकया था । बाँतद परा = कैद में पडा । सि-
हरा = सत् छोडे हुए; तबिा सत् के । धरा अस दे उ = तक ऐसे बडे राजा को पकड तिया । दुं दुतह = दुं दुभी या ििाडे पर । डााँड दीन्ह =
डं डा या चोट मारी ।
(6) बाँदवािा = बन्दीिृह का रक्षक, दरोिा । तजउ-बधा = बतधक, जल्लाद । अतिदधा = आि से जिे हुए । सााँस भर = सााँस भर रहिे के तिये
पािीया = पािी । तजउ रहा = जी में यह बाि िहीं रही तक । सकिी = बि । जब अं जि मुाँ ह सोवा = जब िक अन्न-जि मुाँह में पडिा
रहा िब िक िो सोया तकया ।
(7) मरपुरी = यमपुरी हाड जो....िे खी = तबखरी हुई हतड्डयों को दे खकर भी िुझे उसका चेि ि हुआ । महूाँ = मैं भी । खोज = पिा । बार
होइ खूाँदे = अपिे िार पर पैर ि रखा । धू वााँ = िवा या क्रोध की बािि । िस =ऐसा । मााँि = बुिा भेज । िढवा = िड्ढा । चरिन्ह दे इ
राखा = पैरों को िड्ढे में िाड तदया । बााँका = धरकारों का टे ढा औजार तजससे वे बााँस छीििे हैं । हे िा = डोम । साँडास = संसी, तजससे
पकडकर िरम बटिोई उिारिे हैं । िाजहु चातह = ब्रज से भी बडकर । बाज = पडिा है ।
पद्माविी-िािमिी-तबिाप-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
िािमतितह `तपय तपय' रट िािी । तितस तदि िपै मच्छ तजतम आिी ॥
भाँवर, भुजंि कहााँ, हो तपया । हम ठे घा िुम काि ि तकया ॥
भूति ि जातह कवि के पाहााँ । बााँधि तबिाँ ब ि िािै िाहा ॥
कहााँ सो सूर पास ह ं जाऊाँ । बााँधा भाँवर छोरर कै िाऊाँ ॥
कहााँ जाउ को कहै साँदेसा ? ।जाउाँ सो िहाँ जोतिति के भेसा ॥
फारर पटोरतह पतहर ं कंथा । ज मोतहं कोउ दे खावै पंथा ॥
वह पंथ पिकन्ह जाइ बोहार ं । सीस चरि कै िहााँ तसधार ं ॥
तकि पावतस पुति जोबि रािा । मै माँ ाँ ि, चढा साम तसर छािा ॥
जोबि तबिा तबररध होइ िाऊाँ । तबिु जोबि थाकै सब ठाऊाँ ॥
जोबि हे रि तमिै ि हे रा । सो ज जाइ, करै ितहं फेरा ॥
हैं जो केस िि भाँवर जो बसा । पुति बि होतहं , जिि सब हाँ सा ॥
सेंवर सेव ि तचत्त करु सूआ । पुति पतछिातह अं ि जब भूआ ।
रूप िोर जि ऊपर िोिा । यह जोबि पाहुि चि होिा ॥
भोि तबिास केरर यह बेरा । माति िे हु, पुति को केतह केरा ? ॥
कुमु तदति ! िुइ बैररति, ितहं धाई । िुइ मतस बोति चढावतस आई ॥
तिरमि जिि िीर कर िामा । ज मतस परै होइ सो सामा ॥
जहाँ वा धरम पाप ितहं दीसा । किक सोहाि मााँझ जस सीसा ॥
जो मतस परे होइ सतस कारी । सो मतस िाइ दे तस मोतहं िोरी ॥
कापर महाँ ि छूट मतस-अं कू । सो मतस िे इ मोतहं दे तस किं कू ॥
साम भाँवर मोर सूरुज करा । और जो भाँवर साम मतस-भरा ॥
काँवि भवरर-रतब दे खै आाँ खी । चंदि-बास ि बैठै माखी ॥
(1) राजा केर = राजा रत्नसेि का । तहय सािू = हृदय में कसकिे वािा । पै = तििय । छर = छि । सत्रु-साि िब िे वरै = शत्रु के मि
की कसर िब पूरी पूरी तिकििी है । िे वरै = पूरी होिी है । जोइ = जोय, स्त्री ।
(2) का ितहं छर = क ि िहीं छिा िया ? पाढि कै = पढिे हुए । पाढि = पढं ि, मं त्र जो पढा जािा है , टोिा, मं त्र, जादू । भािा = बचकर जा
सकिा है । पैज = प्रतिज्ञा ।
(3) पकावि = पकवाि । साधे = बिवाए । खर रा = खाँड रा, खााँ ड या तमस्री के िड् डू । बूतझ = खूब सोच समझकर । कापर कपडे । डाि
= डिा या बडा थाि । ज बााँधे पाऊाँ = पैर बााँध तदए अथााि् बेबस कर तदया । बेवसाऊ = व्यवसाय, रोजिार । िि ठाढा = ििी हुई दे ह ।
(4) जोहि-मोहि = दे खिे ही मोहिे वािा । बरोठा = बैठकखािा । चीन्हा ितहं = क्या िहीं पहचािा ? जेतह = तजसका । उपिे उत्पन्न हुए ।
िीन्हे = िोद में तिए । सीपा = सीप में रखकर; शुखक्त में ।
(5) िै हर मायका; पीहर । िै ि-ििि = ििि-ियि, िे त्र- रूपी आकाश ।जिमी = जिी , पैदा की । बारी = िडकी । थुरर = िोडकर, मरोडाँ कर
। जिम = जन्मकाि में ही । कंि बाँतद = पति की कैद में । तजयि चातह = जीिे की अपेक्षा । कुहुतक = कूक कर । ितह कुहुक = उसी
कूक से, उसी कूक को िे कर ।
(6) सुतठ = खूब । रूप-डार = चााँदी का थाि या पराि । केि = तकििा ही । हींछ =इच्छा । बैि करे ई = बकवाद करिी है । भूि =
भूि, भूिकर भी ।
(7) उघारा = खोिा । खभारू = खभार, शोक । हाथन्ह सें ति = हाथों से । हााँथ साँकेिी = हाथ से बटोरकर । मु कुिा िे उाँ....दीठी = हाथ में
मोिी िे िे ही हाथों की ििाई से वह िाि हो जािा है ; रािी = िाि । छाया िाि और कािी छाया से ।
(8) काँवि = अथााि् पद्माविी । बैरी सूर.. ..आसा = कुमु तदिी का बैरी सूया है और वह कुमु तदिी चंद्र की आशा में है अथााि् उस दू िी का
रत्नसेि शत्रु है और वह दू िी पद्माविी को प्राप्त करिे की आशा में है । तबितस रै ति....भूरू = रत्नसेि के अभावरूपी राि में तवकतसि या
प्रसन्न होकर बािों से भुिाया चाहिी है । रहतस = िू रहिी है । कोवाँरर = कोमि । प िारर = मृ णाि । बार = दे र
(9) अाँ जोरा = प्रकाशवािा । माढी = मं च, मतचया । बाँतद = बंदी में । एतह फूि = इसी फूि से ।
(10) कोहााँइ = रूठिी है । सहुाँ सामिे । भाँवर = पािी का भाँवर; भ रं े के समाि कािे केश । भाँवर छपाि....परिटा = पािी का भाँवर िया
और हं स आया अथााि् कािे केश ि रह िए , सफेद बाि हुए । तबरतस जो िीज = जो तबिस िीतजए , जो तबिास कर िीतजए । ज िति
कातिं तद....परासी = जब िक कातिं दी या जमु िा है तविास कर िे तफर िो िंिा में तमिकर, िंिा होकर, समु द्र में द डकर जािा ही पडे िा,
अथााि् जब िक कािे बािों का य विव है िब िक तविास कर िे तफर िो सफेद बािोंवािा बुढापा आवेिा और मृ त्ु की ओर झपट िे
जायिा । तबरासी । परासी = िू भाििी है अथााि भािेिी ।
(10) जोबि भाँवर....िोरा = इस समय जोबिरूपी भ रं ा (कािे केश) है और फूि सा िेरा शरीर है । तबररध = वृद्धावस्था । हाथ मरोरा =
इस फूि को हाथ से मि दे िा । बाि = िीर वणा, कांति । धिु क = टे ढी कमर ।
(11) आपि जैस = अपिे ऐसा । खेरा = घर, बस्ती । थर = स्थि, जिह । फार =फाडे । सत् के...फटा = यतद सत्त के बि से हृदय ि
फटे अथााि् प्रीति में अं िर ि पडे (पािी घटिे से िाि की जमीि में दरारें पड जािी हैं ) । छरै को पार = क ि छि सकिा है ।
(12) रािा = ितिि । साम तसर छािा = अथााि् कािे ; केश । थाके = थक जािा है । बि = बििों के समाि श्वेि । चि होिा = चि
दे िेवािा है । कोंप = कोंपि, कल्ला । राँ ि िे हु रतच = रं ि िो, भोि-तविास कर िो । कााँचा कच्चा । रााँचा = अिु रक्त हुआ । जाइ दु इ बाटा
= दु िाति को प्राप्त होिा है । जाउ = चाहे चिा जाय । भाँवरा = कािे केश । जो साँवरा = तजसका स्मरण तकया करिी हूाँ । ज तदि तदि
हे रा = यतद ििािार ढूाँढिी रहूाँ िी ।
(14) क ति रसोई = तकस काम की रसोई है ? जेतह परकार....होई = तजसमे दू सरा प्रकार ि हो, जो एक ही प्रकार की हो । दू सर पुरुष =
दू सरे पुरुष का । बैसे = बैठे रहिे से , उद्योि ि करिे से । आि = दू सरा ।
(15) धाई = धाय, धात्री । मतस चढावतस = मे रे ऊपर िू स्याही पोििी है । जस सीसा =जैसे सीसा िहीं तदखाई पडिा है । िाइ ििाकर ।
कापर = कपडा । सरर = बराबरी का; िदी ।
(16) = घाति िीन्ही = डाि रखी है । मु द्रा = मु हर । उपराहीं = ऊपर । भाँवाहीं = घूमिे हैं । काँवि = कमि को , कमि के चारों ओर ।
सो कस.....िाहीं = ऐसी सफेदी कहााँ जहााँ स्याही िहीं, अथााि् स्याही के भाव के तविा सफेदी की भाविा हो ही िहीं सकिी ।तपंड =
साकार वस्तु या शरीर जेतह = तजसमें ।
(17) भ ह ं = धिु फेरी = क्रोध से टे ढी भ ं की । सरर पूज = बराबरी को पहुाँ च सकिा है दु ुःख भरा िि....केसा = शरीर में तजििे रोयें या
बाि िहीं उििे दु ुःख भरे हुए हैं । सोि िदी....िरुवा = महाभारि में तशिा िाम एक ऐसी िदी का उल्लेख है तजसमें कोई हिकी चीज
डाि दी जाय िो भी डूब जािी है और पत्थर हो जािी है (मे िखस्थिीज िे भी ऐसा ही तिखा है । िढवाि के कुछ सोिों के पािी में इििा रे ि
और चूिा रहिा है तक पढी हुई िकडी पर क्रमशुः जमकर उसे पत्थर के रूप में कर दे िा है ) पाहि होइ....हरुवा = हिकी वस्तु भी हो
िो उसमें पडिे पर पत्थर हो जािी है । चेरर = दातसयााँ । छूटीं = द डीं । कूटि = कुटाई, प्रहार । कुटिी = कुतट्टिी, दू िी । झूाँक = झोंका ।
बादशाह-दू िी-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) धरमसार = धमा शािा, सदाबिा , खैरािखािा । मोख पावतहं = छूटें । जि = तजििे । हुति = थी । जोति-सवााँिी = जोतिि का स्वााँि बिािे
वािी । अखारे हुाँ ि = रं िशािा से, िाचघर से । मााँिा = बुिा भेजा । िाँि = ित्त्व । किा मिमोहि = मि मोहिे की किा में ।
(2) राजबार = राजिार । बार = िार । िि तिरसूि....पीऊ = सारा शरीर ही तत्रशूिमय हो िया है और अधारी के स्थाि पर तप्रय ही है
अथााि् उसी का सहारा है । पवाँ री = चट्टी या खडाऊाँ । भूभुर = धू प से िपी धू ि या बािू । धाँ धारी = िोरखधं धा ।
(3) छाज ि = िहीं सोहिा । खे हा = धू ि, तमट्टी । चहुाँ चक्र = पृथ्वी के चारों खूाँट में । आतह = है ।
(4) ओिाउाँ = झुकिी हूाँ , झुककर काि ििािी हूाँ । सबद ओिाउाँ ...खेिा = आहट िे िे के तिए काि ििाए रहिी हूाँ तक तप्रय कहााँ िया ।
झूरों = सूखिी हूाँ । अधारी = सहारा दे िेवािी । पर पडिा है । बािा = िवीि । जािरण । दाि = दािा, िप्त मु द्रा िी । तिन्ह = उस तप्रय
का । आाँ क = तचन्ह, पिा । सरिदु वारी = अयोध्या में एक स्थाि ।
(5) िउमु ख = िोमु ख िीथा, िंिोत्तरी का वह स्थाि जहााँ से िंिा तिकििी है । िािरकोट, जहााँ दे वी का स्थाि है । कतट रसिा दीखन्हउाँ = जीभ
काटकर चढाई । बाििाथ कर टीिा = पंजाब में तसंध और झेिम के बीच पडिे वािे िमक के पहाडों की एक चोटी । मीिा = तमिा
सुरुजकुंड = अयोध्या, हररिार आतद कई िीथों में इस िाम के कुंड हैं । बद्री = बदररकाश्रम में । कै बारू = कई बार । अिकपुर =
अिकापुरी । ब्रह्मावति = कोई िदी । करसी = करीषाति में ; उपिों की आि में । हााँतड तफररउाँ = छाि डािा, ढूाँढ डािा, टटोि डािा ।
(6) राज पििािे = राजा िे प्रणाम तकया । ि केऊ = पास में कोई ि रह जाय । िे इ िएउ = िे िे या भोििे िया । सुखदे ऊ = सुख
दे िेवािा िुम्हारा तप्रय । तदल्ली िावाँ = तदल्ली या तढल्ली इस िाम से ।सुतठ = खूब । कीिी = कारािार के िार का अिाि । अबहुाँ कया ितहं
जीउ = अब भी मे रे होश तठकािे िहीं ।
(7) माया = मया, दया ।
(8) तफरर मााँिू = जाओ, और जिह घूम कर मााँिो । सवााँि = स्वााँि, िकि, आडं बर । यह बड....सहिा = तवयोि का जो सहिा है यही बडा
भारी योि है । जेहुाँ = जैसे, ज्यों, तजस प्रकार । िेहुाँ = त्ों , उस प्रकार । तसंिी सााँसा = िं बी सााँस िे िे को ही तसंिी फूाँकिा समझो । िटा =
िटरमािा । रहै प्रेम....िटा = तजसमें उिझा हुआ मि है उसी प्रेम को िटरमािा समझो । छािा = मृ िछािा । िाँि = ित्त्व या मं त्र ।
पााँचों भूि...होहीं = शरीर के पंचभूिों को ही रमी हुई भभूि या भस्म समझो । पाँवरर पााँच पर रे हु = पााँव पर जो धू ि ििे उसी को खडाऊाँ
समझ । अधारी = अड्डे के आकार की िकडी तजसे सहारे के तिये साधु रखिे हैं । अधारी िे हु = सहारा िो ।
पद्मावति-िोरा-बादि-संवाद-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) बारा = िार पर । कााँपे = च क ं पडे । सोिवािी = सुिहरी । माथे छाि = आपके माथे पर सदा छत्र बिा रहे ! बार = िार । का = क्या
। िुम्ह ि छाज = िुम्हें िहीं सोहिा ।
(2) दीख = तदखाई पडा । रािा = िाि । उिथ = उमडिा है । रुतहर । रं ि = रं ि पर । पै = अवश्य; तििय । भाँवरा = रत्नसेि । काँवि =
िे त्र (पतद्मिी के)। हरतद = कमि के भीिर छािे का रं ि पीिा होिा है । बदि कै िोहू = कमि के दि का रं ि रक्त होिा है ।
(3) खंभ = खंभे, राज्य के आधार-स्वरूप । पारथ = पाथा, अजुाि । बरखा = बषाा में । िे तह दु ख िे ि ...बाढे = उसी दु ुःख की बाढ को
िे कर जंिि के पेड बढकर इििे ऊाँचे हुए हैं । बेहरर = तवदीणा होकर । जेतह बाँतद = तजस बंदीिृह में । मु कराव ं = मु क्त कराऊाँ,छु डाऊाँ ।
(4) िुरकाि = मु सिमाि िोि । उए अिस्त = के उदय होिे पर, शरि् आिे पर । हखस्त जब िाजा = हाथी चढाई पर िरजेंिे; या हस्त िक्षत्र
िरजेिा । आइतह = आवेिा । दीतठतह = तदखाई दे खा । पररतह पिाति...पीतठतह = घोडों की पीठ पर जीि पडे िी चढाई के तिये घोडे कसे
जायाँिे । अाँ कुर । ससहर = शशधर, चंद्रमा ।
(5) िीन्ह पाि = बीडा तिया, प्रतिज्ञा की । केतह...जोरा = यहााँ से पद्माविी के वचि हैं । सावंि = सामं ि । भुवारा = भूपाि । टारि भारन्ह
= भार हटािे वािे । करि =कणा । मािकदे ऊ = मािदे व । बाँतदछोर = बंधि छु डािे वािे । िखाघर = िाक्षािृह । खंभ = राज्य का स्तंभ,
रत्नसेि ।
(6) दै ि साँभारा = दै त्ों का संहार करिे वािे । िंिेऊ = िााँिेय, भीष्म-तपिामह । िुम्ह िे ख ं = िु मको समझिी हूाँ । संबोधि = ढाढस दे िेवािे ।
िुम्ह परतिज्ञा = िुम्हारी प्रतिज्ञा से । बोधा = प्रबोध, िसल्ली । सि आाँ के = सत् की रे खा खींची है । भ्रम = प्रतिष्ठा, सम्माि ।
(7) बर = बि । अतहबािू = स भाग्य सोहाि । उदोि = प्रकाश । दे खख दु इज...तििाट = दू ज के चंद्रमा को दे ख उसे बैठिे के तिये तशवजी
िे अपिा ििाट- रूपी तसंहासि रखा अथााि् अपिे मस्तक पर रखा ।
िोरा-बादि-युद्ध-यात्रा-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
छााँड़घ फेंट धाति! बादि कहा । पुरुष िवि धाति फेंट ि िहा॥
जो िुइ िवि आइ, िजिामी । िवि मोर जहाँ वा मोर स्वामी॥
ज िति राजा छूतट ि आवा । भावै बीर, तसंिार ि भावा॥
तिररया भूतम खड़ि कै चेरी । जीि जो खड़ि होइ िेतह केरी॥
जेतह घर खड़ि मोंछ िेतहं िाढी । जहााँ ि खड़ि मोंछ ितहं दाढी॥
िब मुाँ ह मोछ, जीउ पर खेि ं । स्वातम काज इं द्रासि पेि ॥
ं
पुरुष बोति कै टरै ि पाछू । दसि ियंद, िीउ ितहं काछू॥
िुइ अबिा धाति! कुबुतधा बुतधा, जािै काह जुझार।
जेतह पुरुषतह तहय बीररस, भावै िेतह ि तसंिार॥6॥
ज िुम चहहु जूतझ, तपउ! बाजा । कीन्ह तसंिार जूझ मैं साजा॥
जोबि आइ स ह ं होइ रोपा । तबखरा तबरह, काम दि कोपा॥
बहे उ बीररस सेंदुर मााँिा । रािा रुतहर खड़ि जस िााँिा॥
भह ं ैं धािु क िै ि सर साधो । काजर पिच, बरुति तबष बााँधो॥
जिु कटाछ स्यों साि साँवारे । िखतसख बाि सेि अतियारे ॥
अिक फााँस तिउ मे ि असूझा । अधार अधार स ं चाहतहं जू झा॥
कुंभस्थि कुच दोउ मैमंिा । पेि ं स ह ं , साँभारहु, कंिा?॥
कोप तसंिार, तबरह दि, टू तट होइ दु इ आधा।
पतहिे मोतहं संग्राम कै, करहु जूझ कै साधा॥7॥
(1) जस वै=यह 'यशोदा' शब्द का प्राकृि या अप्रभंश रूप है । पाया=पैर। जुझारा=युध्द। ठटा=समू ह बााँधाकर।
(2) आदी=तििांि, तबिकुि। तसंघेिा=तसंह का बच्चा। मै मंिा=मस्त हाथी। स्वातम साँकरे =स्वामी के संकट के समय में । जस ढारा=ढाि के समाि
होकर। पेि =ं जोर से चिाऊाँ। भारा=भािा। टे क =
ं रोक िूाँ । जंघ बर जोर =
ं जााँघों में बि िाऊाँ। बार=बािक।
(3) जूझ=युध्द। िवि=वधा्ू का प्रथम प्रवेश। चारू=रीति-व्यवहार। बााँक=बााँका, सुंदर। जूरा=बाँधाी हुई चोटी का िुच्छा। टकोरर=टं कार दे कर।
परीखे=परीक्षा की, आजमाया। घाति=डािकर, ििाकर। कचपची=कृतत्ताका िक्षत्रा; यहााँ चमकी।
(4) बार=िार। हे र=िाकिा है । पोढा=कड़ा। तमि मे ष=आिा पीछा, सोच-तवचार। मकु...सािू =शायद मे री िीखी दृति का साि उसके हृदय में पैठ
िया है । हुिसी...फािू =वह साि पीठ की ओर हुिसकर जा तिकिा है इससे मैं वह िड़ा हुआ िीर का फि तिकिवा दू ाँ । कूच
िूाँबी...िड़ोव =ं जैसे धााँसे हुए कााँ टे आतद को िूाँबी ििाकर तिकाििे हैं वैसे ही अपिी कुचरूपी िुंबी जरा पीठ से ििाऊाँ। िहै
ज ...धाोव = ं पीड़ा से च क ं कर जब वह मु झे पकड़े िब मैं िाढे रस से उसे धाो डािूाँ अथााि् रसमि कर दू ाँ । िेवाति=तचंिा में पड़ी हुई।
दु औ=दोिों बािें।
(1) मिैं = सिाह करिे हैं । कीज = कीतजए । ि शाबा = तसकंदरिामा के अिु सार एक रािी तजसके यहााँ तसकंदर पहिे दू ि बि कर िया था
। उसिे तसकंदर को पहचाि कर भी छोड तदया । पीछे तसकंदर िे उसे अपिा अधीि तमत्र बिाया और उसिे बडी धूमधाम से तसकंदर की
दावि की दे वतह छरा = राजा को उसिे (अिाउद्दीि िे ) छिा । आइ अस आाँ ठी = इस प्रकार अमठी पर चढकर अथााि् कब्जे में आकर भी
। भंडा = भााँडा, बरिि । ि आाँ ट = िहीं पार पा सकिे
(2) चंडोिा = पािकी । कुाँवर = राजपूि सरदार । सजोइि = हतथयारों से िैयार । बैठ िोहार...भािू = पद्माविी के तिये जो पािकी बिीं
थी उसके भीिर एक िु हार बैठा, इस बाि का सूया को भी पिा ि ििा । ओहार = पािकी ढााँ किे का परदा । काँवि...जब पद्माविी ही
िहीं रही िब और सखखयों का क्या ? ओि होइ = ओि होकर, इस शिा पर बादशाह के यहााँ रहिे जाकर तक राजा छोड तदए जायाँ कोई
व्यखक्त जमािि के ि र पर यतद रख तिया जािा है िो उसे ओि कहिे हैं ) । िुरर = घोतडयााँ ।
(3) स प ं िा = दे खरे ख में , सुपुदािी में । अिमिा = आिे पहिे । अाँ कोर = भेंट, घूस, ररश्वि । स्यो = साथ, पास । तकल्ली = कुंजी । पािी भए
= िरम हो िए । हाथ जेतह = तजसके हाथ से ।
(4) तघउ भा = तपघिकर िरम हो िया । ि हे रा = ििाशी िहीं िी, जााँच िहीं की । इहााँ उहााँ कर स्वामी = मे रा पति राजा । कतबिास =
स्विा, यहााँ शाही महि ।
(5) छूाँतछ...भरी = जो घडा खािी था ईश्वर िे तफर भरा, अथााि् अच्छी घडी तफर पिटी । जस = जैसे ही । तजउ ऊपर = प्राण रक्षा के
तिये । छर कै िहि....जातहं = तजिपर छि से ग्रहण ििाया था वे ग्रहण ििाकर जािे हैं ।
(6) कारी कातिमा, अं धकार । तफरर = ि टकर, पीछे िाककर । िोइ = िोय, िेंद । जोरा = खेि का जोडा या प्रतििं िी । िोइ िे इ जाऊाँ =
बल्ले से िेंद तिकाि िे जाऊाँ । सीस ररपु = शत्रु के तसर पर । च िाि = िेंद मारिे का डं डा । हाि = कंप, हिचि ।
(7) अिमि = आिे ।साँकरे साथ = संकट की खस्थति में । समतद = तबदा िे कर । पुरुष = योद्धा । मतस = अं धकार ।
(8) िोई = िेंद । खेि = खेि में । काकरर = तकसकी । हाि करै = हिचि मचावै, मैदाि मारे । कूरी = धु स या टीिा तजसे िेंद को िाँ घािा
पडिा है । पैज = प्रतिज्ञा । अिकाढे = तबिा तिकािे ।
(9) हााँका = ििकारा । िोरा = िोरा सामं ि ; श्वेि । सोतहि = सुहैि, अिस्त्य िारा । डु ाँ िवै = टीिा या धु स्स । पीछे घाति..राजा = रत्नसेि
को पहाड या धु स्स के पीछे रखकर । सााँकरे = संकट में । तिबाहों = तिस्तार करू ाँ । बेंड = बेंडा, आडा ।
(10) दे व = दै त् । आदी = तबिकुि, पूरा । बादी = शत्रु । हरिािी = हरिाि की ििवार प्रतसद्ध थी । बािी = कां ति, चमक । िाजा = वज्
। इं दू = इं द्र । आइ ि बाज...तहं दू = कहीं तहं दू जािकर मु झ पर ि पडे । िोरै = िोरा िे । उठ िी = पहिा धावा । स्यो = साथ । कुाँड
=िोहे की टोपी जो िडाई में पहिी जािी है ।
(11) ओिवि = झुकिी और उमडिी हुई । िोहे = िोहे से । सूझ = तदखाई पडिी है । फोिाद = फ िाद । करतहं दु इ फााँके = चीरिा
चाहिे हैं । फााँके = टु कडे । जककाि = यम का खााँडा, एक प्रकार का खााँडा । भवााँ करतहं = घूमिे हैं । अपसवााँ चहतहं = चि दे िा चाहिे
हैं । सेि = बरछे । सरप = सााँ प । भुइाँ िे इ = तिर पडे सूर = शूि भािा ।
(12) बिमे ि = घोडो का बाि से बाि तमिाकर चििा, सवारों की पंखक्त का धावा । अधर धर मारै = धड या कबंध अधर में वार करिा है ।
कंध = धड । तिरारै = तबल्कुि, यहााँ से वहााँ िक ।भोिी = भोि-तविास करिे वािे सरदार थे । भारि = घोर युद्ध । कुाँवर = िोरा के साथी
राजपूि । तिबरे = समाप्त हुए ।
(13) िोरै = िोरा िे । करवारू = करवाि, ििवार । स्यो = साथ । टू टै = कट जािा है । तििारे = अिि । धू का = झुका । रुतहर = रुतधर
से । भभूका = अं िारे सा िाि । एतह हाथ करहु = इसे पकडो ।
(14) िूाँजि = िरजिा हुआ । टे का = पकडा । पितट तसंह...आवा = जहााँ से आिे बढिा है वहााँ पीछे हटकर िहीं आिा । बोिै बाहााँ (वह
मुाँ ह से िहीं बोििा है ) उसकी बाहें खडकिी हैं । िोरै = िोरा िे । जाज, जिदे ऊ = जाजा और जिदे व कोई ऐतिहातसक वीर जाि पडिे हैं
। तघतसयावा = घसीटे , तघतसयावे । रििसेि जो....िाि = रत्नसेि जो बााँधे िए इसका किं क िोरा के शरीर पर ििा हुआ है । रुतहर =
रुतहर से । राि = िाि, अथााि् किं क रतहि ।
(15) मीर हमजा = मीर हमजा मु हम्मद साहब के चचा थे तजिकी बीरिा की बहुि सी कखल्पि कहातियााँ पीछे से जोडी िईं । िाँ धउर =
िं ध रदे व िामक एक कखल्पि तहं दू राजा तजसे मीर हमजा िे जीि कर अपिा तमत्र बिाया था ; मीर हमजा के दास्ताि में यह बडे डीि-ड ि
का बडा भारी वीर कहा िया है । मदद.अिी = मािो इि सब वीरों की छाया उसके ऊपर थी । बर बााँधे = हठ या प्रतिज्ञा करके सामिे
आए । वादी = शत्रु । महामाि = कोई क्षतत्रय राजा या वीर । जेइ = तजसिे । सािार = शायद सािार मसऊद िाजी (िाजी तमयााँ) बररयारू
= बिवाि । हुमु तक = जोर से । काढे तस हुमु तक = सरजा िे जब भािा जोर से खींचा । खसी =तिरी ।
(16) सरजै = सरजा िे । जिु परा तिहाऊ = मािो तिहाई पर पडा (अथााि् सााँि को ि काट सका) डााँडा = दं ड या खंि । ओडि = ढाि
। कूाँड = िोहे का टोप । िुरुज = िुजा, िदा । कााँध िुरुज हुि = कंधे पर िुजा था (इससे) । िाति = मु ठ भेड या युद्ध में ।
(17) बररवंडा = बिवाि । सदू र = शादू ा ि । िस बाजा = ऐसा आघाि पडा । ठााँठर = ठठरी । तफरा संसारू = आाँ खों के सामिे संसार ि
रह िया । स्यो = सतहि । सुर पहुाँ चाया पाि = दे विाओं िे पाि का बीडा, अथााि् स्विा का तिमंत्रण तदया ।
बंधि-मोक्ष; पद्माविी-तमिि-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
तितस राजै रािी कंठ िाई । तपउ मरर तजया, िारर जिु पाई ॥
रति रति राजै दु ख उिसारा । तजयि जीउ ितहं होउाँ तििारा ॥
कतठि बंतद िुरुकन्ह िे इ िहा । ज साँवरा तजउ पेट ि रहा ॥
घाति तििड ओबरी िे इ मे िा । सााँकरर औ अाँ तधयार दु हेिा ॥
खि खि करतहं सडासन्ह आाँ का । औ तिति डोम छु आवतहं बााँका ॥
पाछे सााँ प रहतह चहुाँ पासा । भोजि सोइ, रहै भर सााँसा ॥
रााँध ि िहाँ वा दू सर कोई । ि जिों पवि पाति कस होई ॥
(1) झूरी रही = सूख रही थी । अखस्त, अखस्त = वाहवाह । तदतिअर = तदिकर, सूया ।
(3) आरति = आरिी । पूरर कै = भरकर । सेंति = से । िुम्हरै = िुम्हारा ही । िरुइ = िरुई, ि रवमयी । छाि = छत्र (कमि के बीच छत्ता
होिा भी है )
(4) िुरयके....कर खंडा = बादि के घोडे के पैर भी दाबे अपिे हाथ से । सेंदुर तििक ...अहा = सींदू र की रे खा जो मु झ िजिातमिी के
तसर पर अं कुश के समाि है अथााि् मु झ पर दाब रखिे वािे मे रे स्वामी का (अथााि् स भाग्य का) सूचक है । िुम तजउ...मे िा िुमिे मे रे
शरीर में प्राण डािे । औधारा = ढारा । छु द्रघं ट = घुाँघरूदार करधिी । िे ि = रे शमी चादर; जैसे, ओढे िे ि तपछ रा -िीि ।
(5) रति रति = रत्ती रत्ती, थोडा थोडा करके सब । उिसारा = तिकािा, खोिा, प्रकट तकया । तििड = बेडी । ओबरी = िंि कोठरी । आाँ का
करतह = दािा करिे थे । बााँका = हाँ तसए की िरह झुका हुआ टे ढा औजार तजससे घरकार बााँस छीििे हैं । भोजि सोइ...सााँ सा = भोजि
इििा ही तमििा था तजििे से सााँस या प्राण बिा रहे । रााँध = पास, समीप ।
(6) िुम्ह तपउ...बेरा = िुम पर िो ऐसा समय पडा । ि खंडतहं = िहीं खािे थे, िहीं चबािे थे । का मारतहं , बहु मं तद = वे मु झे क्या मारिे,
मैं बहुि क्षीण हो रही थी ।
(7) मारी = मार, चोट । सााँधा = सिा, तमिा । कहूाँ काँवि...सै फेरा = चाहै भ रं ा (पुरुष) स जिह फेरे ििाए पर कमि (स्त्री) दू सरों को
फाँसािे िहीं जािा ।पााँच भूि...माररउाँ = तफर योतििी बिकर उस योतििी के साथ जािे की इच्छा हुई पर अपिे शरीर और आत्मा को घर
बैठे ही वश तकया और योतििी होकर िार-िार तफरिे की इच्छा को रोका । जेउाँ = ज्यों, तजस प्रकार । फुि बास...खाइ = जैसे फि में
महाँ क और दु ध में घी तमिा रहिा है वैसे ही अपिे शरीर में िुम्हें तमिा समझकर इििा संिाप सहकर मैं जीिी रही ।
रत्नसेि-दे वपाि-युद्ध-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
सुति दे वपाि राय कर चािू । राजतह कतठि परा तहय सािू ॥
दादु र किहुाँ काँवि कहाँ पेखा । िादु र मु ख ि सूर कर दे खा ॥
अपिे राँ ि जस िाच मयूरू । िेतह सरर साध करै िमचूरू ॥
जों िति आइ िुरुक िढ बाजा । ि िति धरर आि ं ि राजा ॥
िींद ि िीन्ह, रै ति सब जािा । होि तबहाि जाइ िढ िािा ॥
कुंभििेर अिम िड बााँका । तबषम पंथ चतढ जाइ ि झााँका ॥
राजतह िहााँ िएउ िे इ कािू । होइ सामु हाँ रोपा दे वपािू ॥
(1) पेखा = दे खिा है । िादु र = चमिादर । सूर = सूया । सरर =बराबरी । िोहा भएउ = युद्ध हुआ । िे वरे = समाप्त हो, तिबटे ।
(2) एक झा = अकेिे , िं ियुद्ध । चिा मारर...मारा =वह भािा मारकर चिा जािा था िब राजा रत्नसेि िे तफरकर उसपर भी वार तकया ।
बैरी = शत्रु दे वपाि को मााँझ बाट...धरा = आधे रास्ते पहुाँ चकर हतथयार छोड तदया । कारी = िहरा, भारी । भार परा माँ झ बाट = बोझ की
िरह राजा रत्नसेि बीच रास्ते में तिर पडे ।
राजा-रत्न-सेि-वैकुंठवास-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) सााँटी = छडी । आपि सोइ...खावा = अपिा वही हुआ जो खाया और दू सरे को खखिाया । िे िी = पािे वािे । हुि = था । तटकतठ =
तटकठी, अरथी तजसपर मु रदा िे जािे हैं । दे व = राजा । जो भावै सो िे व = जो चाहे सो िे ।
पद्माविी-िािमिी-सिी-खंड / मतिक मोहम्मद जायसी
.सर रतच दाि पुतन्न बहु कीन्हा । साि बार तफरर भााँवरर िीन्हा ॥
एक जो भााँवरर भईं तबयाही । अब दु सरे होइ िोहि जाहीं ॥
तजयि, कंि ! िुम हम्ह िर िाई । मु ए कंठ ितहं छोडाँ तहं ,साईं !
औ जो िााँतठ, कंि ! िुम्ह जोरी । आतद अं ि ितह जाइ ि छोरी ।
यह जि काह जो अछतह ि आथी । हम िुम, िाह ! दु हुाँ जि साथी ॥
िे इ सर ऊपर खाट तबछाई । प ढ ं ी दु व कंि िर िाई ॥
िािी ं कंठ आति दे इ होरी । छार भईं जरर, अं ि ि मोरी ॥
(1) आति िाति ...अाँ तधयार = कािे बािों के बीच िाि तसंदूर मािो यह सूतचि करिा था तक अाँ धेरे संसार में आि ििा चाहिी है ।छहराऊाँ
=तछिराऊाँ ।
(2) महासि = सत् में तिन्ह दीतठ परा = उन्हें तदखाई पडा । बै ठी चाहे बैठे । खाटा = अथी, तटकठी । अिूिा होइ = आिे होकर । सूिा
चहतहं = सोिा चाहिी हैं । बाजा = बाजे से । ओर तिबाहू = अं ि का तिवााह । रहतस = प्रसन्न होकर । बूड = डूबा । हम्ह = हमें हमारे
तिये । जूड = ठं ढी ।
(3) सर = तचिा । िोहि =साथ । हम्ह िर िाई = हमें ििे ििाया । अं ि ितह = अं ि िक । अछतह = है । आथी = सार; पूाँजी, अखस्तत्व ।
अछतह ि आथी । जो खस्थर या सारवाि् िहीं रििार = िाि, प्रेममय या आभापूणा
(4) सहिवि भईं = पति के साथ सहिमि तकया, सिी हुई । ि िति...बीिा = िब िक िो वहााँ सब कुछ हो चुका था । अखारा = अखाडे
। या सभा में ,दरबार में । िढ घाटी = िढ की खाईं । पुि बााँधा...घाटी = सिी खस्त्रयों एक मु ट्ठी राख इििी हो िई तक उसिे जिह जिह
खाईं पट िई और पुि सा बाँध िया । ज ितह = जबिक । तिस्ना = िृष्णा । ज हर भइाँ = राजपूि प्रथा के अिु सार जि मरीं । संग्राम भए
= खेि रहे , िडकर मरे । तचिउर भा इसिाम = तचत्त रिढ में भी मु सिमािी अमिदारी हो िई ।
उपसंहार / मतिक मोहम्मद जायसी
(1) एतह = इसका । पं तडिन्ह = पंतडिों से । कहा...सूझा =उन्होंिे कहा, हमे िो तसवा इसके और कुछ िहीं सूझिा है तक । ऊपराहीं =
ऊपर । तिरिुि = ब्रह्म, ईश्वर ।
(2) जोरी िाइ .....भेई = इस कतविा को मैं िे रक्त की िे ई ििा कर जोडा है और िाढी प्रीति को आाँ सुओं से तभिो-तभिोकर िीिा तकया
है । चीन्हा = तचह्न, तिशाि । उपराजा = उत्पन्न तकया । अब बुतध उपराजा = तजसिे राजा रत्नसे ि के मि में ऐसी बुखद्ध उत्पन्न की । केइ ि
जिि जस बेचा = तकसिे इस संसार में थोडे के तिये अपिा यश िहीं खोया? अथााि् ऐसे बहुि से िोि ऐसे हैं । हम्ह साँवरे = हमें याद
करे िा । दु इ बोि = दो शब्दों में ।
(3) पचा = तपचका हुआ । अिरुच = अरुतचकर । बोराई = बाविापि । िरहुाँ ि = िीचे की ओर । धु िा = धु िी रूई । भुवा = कााँस के फूि
। ज ितह हाथा = कतव कहिा है तक जबिक तजंदिी रहे जवािी के साथ रहे , तफर जब दू सरे का आतश्रि होिा पडे िब िो मरिा ही अच्छा
है । रीस = ररस या क्रोध से । केइ.....असीस तकसिे व्यथा ऐसा आशीवााद तदया ?