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Avadhuta Gita
(Sanskrit Text with English Translation)
ू गीता
अवधत
Avadhuta Gita
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अवधूत गीता
ू गीता
अवधत
अथ थमोऽायः
ु
ईरानहादे ं ु ामैतवासना ।
व पस
महयपिराणािाणामपु जायते ॥ १॥
2
अवधूत गीता
4
अवधूत गीता
ु िवानिवहः ।
अहमेवायोऽनः श
ु ःखं न जानािम कथं कािप वतत े ॥ ७॥
सखं
5
अवधूत गीता
ु म ।्
मनो वै गगनाकारं मनो वै सवतोमख
मनोऽतीतं मनः सव न मनः परमाथ तः ॥ ९॥
6
अवधूत गीता
7
अवधूत गीता
ु से
मेवमेकं िह कथं न ब
समं िह सवष ु िवमृमयम ।्
सदोिदतोऽिस मखिडतः भो
िदवा च नं च कथं िह मसे ॥ ११॥
8
अवधूत गीता
ै ं िनररम ।्
आानं सततं िवि सवक
् १२॥
अहं ाता परं ेयमखडं खते कथम ॥
9
अवधूत गीता
ु ।
शािदपका न ैवािस ं न ते पनः
10
अवधूत गीता
11
अवधूत गीता
12
अवधूत गीता
ु मयम ।्
ु श
वदि तु यः सवाः िनगणं
अशरीरं समं तं तां िवि न संशयः ॥ २०॥
13
अवधूत गीता
14
अवधूत गीता
16
अवधूत गीता
17
अवधूत गीता
18
अवधूत गीता
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अवधूत गीता
ु
घटे िभे घटाकाशं सलीनं भेदविजतम ।्
ु ो न भेदः ितभाित मे ॥ ३१॥
िशवेन मनसा श
20
अवधूत गीता
21
अवधूत गीता
ु न या
वेदा न लोका न सरा
वणामो न ैव कुलं न जाितः ।
न धूममाग न च दीिमाग
् ३४॥
ैकपं परमाथ तम ॥
22
अवधूत गीता
23
अवधूत गीता
ु तम ।्
ेतािदवणरिहतं शािदगणविज
् ३७॥
कथयि कथं तं मनोवाचामगोचरम ॥
24
अवधूत गीता
ु
यरोिम यदािम यहोिम ददािम यत ।्
ु ोऽहमजोऽयः ॥ ४०॥
एतव न मे िकं िचिश
25
अवधूत गीता
26
अवधूत गीता
ु ।
तं ं न िह सेहः िकं जानाथवा पनः
े ं संव
असंव ् ४२॥
े माानं मसे कथम ॥
27
अवधूत गीता
28
अवधूत गीता
ु
न षढो न पमा ी न बोधो न ैव कना ।
सानो वा िनरानमाानं मसे कथम ् ॥ ४७॥
29
अवधूत गीता
षडयोगा त ु न ैव श
ु ं
ु म ।्
मनोिवनाशा त ु न ैव श
ु पदेशा त ु न ैव श
ग ु ं
् ४८॥
यं च तं यमेव बु म ॥
30
अवधूत गीता
31
अवधूत गीता
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अवधूत गीता
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अवधूत गीता
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अवधूत गीता
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अवधूत गीता
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अवधूत गीता
38
अवधूत गीता
Maya - ignorance.
39
अवधूत गीता
40
अवधूत गीता
ु
नािवभं िवभं च न िह ःखसखािद च।
् ६५॥
न िह सवमसव च िवि चाानमयम ॥
ु
नाहं कता न भोा च न मे कम पराऽधनु ा ।
् ६६॥
न मे देहो िवदेहो वा िनममिे त ममेित िकम ॥
41
अवधूत गीता
42
अवधूत गीता
43
अवधूत गीता
44
अवधूत गीता
शूागारे समरसपूत
ु
िेकः सखमवधू
तः ।
चरित िह ना गव
् ७३॥
िवित के वलमािन सवम ॥
45
अवधूत गीता
47
अवधूत गीता
ितीयोऽायः Chapter 2
ु एव त ु िचनीयो
न ैवा कागण
48
अवधूत गीता
ु
ाः परं गणवता ख सार एव ।
ु पशूा
िसरिचरिहता भिव
ु
पारं न िकं नयित नौिरह गकामान ् २॥
॥
ु ं तथाहं िदशािचतम ।्
सवावयविनम
ू
संपण ् ६॥
ा गृािम िवभागं िदशािदकम ॥
50
अवधूत गीता
51
अवधूत गीता
52
अवधूत गीता
53
अवधूत गीता
54
अवधूत गीता
ु
सूादयािगणा योिगिभः ।
आलनािद यों मादालनं भवेत ् ॥ १५॥
55
अवधूत गीता
57
अवधूत गीता
Reality.
58
अवधूत गीता
59
अवधूत गीता
ु
गासादे
न मूख वा यिद पिडतः ।
य ु संबते
ु ् २३॥
तं िवरो भवसागरात ॥
60
अवधूत गीता
ु ानां सा च वािगियादेत ।्
या गितः कमय
योिगनां या गितः ािप का भवतोिजता ॥ २७॥
62
अवधूत गीता
63
अवधूत गीता
64
अवधूत गीता
सहजमजमिचं य ु पयेपं
घटित यिद यथे ं िलते न ैव दोष ैः ।
सकृ दिप तदभावाम िकं िचकुयात ्
तदिप न च िवबः संयमी वा तपी ॥ ३०॥
65
अवधूत गीता
66
अवधूत गीता
न शावं शािकमानवं न वा
िपडं च पं च पदािदकं न वा ।
67
अवधूत गीता
आरिनिघटािदकं च नो
् ३३॥
तमीशमाानमपु ैित शातम ॥
68
अवधूत गीता
69
अवधूत गीता
य पाचराचरं जग-
ते ितित लीयतेऽिप वा ।
पयोिवकारािदव फे नबु दु ा-
् ३४॥
मीशमाानमपु ैित शातम ॥
नासािनरोधो न च िरासनं
बोधोऽबोधोऽिप न य भासते ।
नाडीचारोऽिप न य िकि-
् ३५॥
मीशमाानमपु ैित शातम ॥
70
अवधूत गीता
71
अवधूत गीता
नानामेकमभु मता
ु दीघ महशूता ।
अण
मानमेयसमविजत ं
् ३६॥
तमीशमाानमपु ैित शातम ॥
72
अवधूत गीता
ु शरीरिमियं
मनो न बिन
ताभूतािन न भूतपकम ।्
अहंकृितािप िवयपकं
् ३८॥
तमीशमाानमपु ैित शातम ॥
73
अवधूत गीता
न योिगनेतिस भेदविजत े ।
शौचं न वाशौचमिलभावना
सव िवधेय ं यिद वा िनिषते ॥ ३९॥
74
अवधूत गीता
75
अवधूत गीता
तृतीयोऽायः Chapter 3
ु
गणिवग ु िवभागो वतत े न ैव िकित ्
ण
रितिवरितिवहीनं िनमलं िनपम ।्
ु िवगणिवहीनं
गण ु ापकं िवपं
कथमहिमह वे ोमपं िशवं वै ॥ १॥
76
अवधूत गीता
77
अवधूत गीता
मूलरिहतो िह सदोिदतोऽहं
िनमूल
िनधूम धूमरिहतो िह सदोिदतोऽहम ।्
िनदपदीपरिहतो िह सदोिदतोऽहं
् ३॥
ानामृत ं समरसं गगनोपमोऽहम ॥
78
अवधूत गीता
79
अवधूत गीता
80
अवधूत गीता
81
अवधूत गीता
् ७॥
ानामृत ं समरसं गगनोपमोऽहम ॥
82
अवधूत गीता
िनापपापदहनो िह ताशनोऽहं
िनधमधमदहनो िह ताशनोऽहम ।्
िनबबदहनो िह ताशनोऽहं
् १०॥
ानामृत ं समरसं गगनोपमोऽहम ॥
83
अवधूत गीता
िनभावभावरिहतो न भवािम व
िनयगयोगरिहतो न भवािम व ।
िनििचरिहतो न भवािम व
् ११॥
ानामृत ं समरसं गगनोपमोऽहम ॥
84
अवधूत गीता
िनमहमोहपदवीित न मे िवको
िनःशोकशोकपदवीित न मे िवकः ।
िनलभलोभपदवीित न मे िवको
् १२॥
ानामृत ं समरसं गगनोपमोऽहम ॥
संसारसितलता न च मे कदािचत ्
ु न च मे कदािचत ।्
सोषसितसखो
85
अवधूत गीता
अानबनिमदं न च मे कदािचत ्
् १३॥
ानामृत ं समरसं गगनोपमोऽहम ॥
संसारसितरजो न च मे िवकारः
सापसिततमो न च मे िवकारः ।
सं धमजनकं न च मे िवकारो
् १४॥
ानामृत ं समरसं गगनोपमोऽहम ॥
िनकिनधनं न िवककं
बोधिनधनं न िहतािहतं िह ।
िनःसारसारिनधनं न चराचरं िह
87
अवधूत गीता
् १६॥
ानामृत ं समरसं गगनोपमोऽहम ॥
नो वेवेदकिमदं न च हेततु
ु ।
वाचामगोचरिमदं न मनो न बिः
एवं कथं िह भवतः कथयािम तं
् १७॥
ानामृत ं समरसं गगनोपमोऽहम ॥
88
अवधूत गीता
् १९॥
ानामृत ं समरसं गगनोपमोऽहम ॥
90
अवधूत गीता
91
अवधूत गीता
ु ं िवश
श ु मिवचारमनपं
िनल पलेपमिवचारमनपम ।्
िनडखडमिवचारमनपं
् २३॥
ानामृत ं समरसं गगनोपमोऽहम ॥
92
अवधूत गीता
ु
ादयः सरगणाः कथम सि
गादयो वसतयः कथम सि ।
येकपममलं परमाथ तं
् २४॥
ानामृत ं समरसं गगनोपमोऽहम ॥
93
अवधूत गीता
How shall I, the pure One, the "not this " and
yet the not "not this", speak? How shall I, the
pure One, The endless and the end, speak?
How shall I, the pure One, attributeless and
attribute, speak? I am the nectar of knowledge,
homogenous existence, like the sky.
94
अवधूत गीता
मायापरचना न च मे िवकारः ।
कौिटदरचना न च मे िवकारः ।
सानृतिे त रचना न च मे िवकारो
् २७॥
ानामृत ं समरसं गगनोपमोऽहम ॥
सािदकालरिहतं न च मे िवयोगो-
ः बोधरिहतं बिधरो न मूकः ।
ु ं
एवं िवकरिहतं न च भावश
् २८॥
ानामृत ं समरसं गगनोपमोऽहम ॥
95
अवधूत गीता
िननाथनाथरिहतं िह िनराकुलं वै
िनििचिवगतं िह िनराकुलं वै ।
संिवि सविवगतं िह िनराकुअलं वै
् २९॥
ानामृत ं समरसं गगनोपमोऽहम ॥
96
अवधूत गीता
97
अवधूत गीता
् ३३॥
ानामृत ं समरसं गगनोपमोऽहम ॥
99
अवधूत गीता
100
अवधूत गीता
ु न च ते न मे च
िलपजनषी
िनलमानसिमदं च िवभाित िभम ।्
िनभदभेदरिहतं न च ते न मे च
् ३९॥
ानामृत ं समरसं गगनोपमोऽहम ॥
ु ामिप ते िह िवरागपं
नो वाणम
ु ामिप ते िह सरागपम ।्
नो वाणम
ु ामिप ते िह सकामपं
नो वाणम
् ४०॥ (3.40)
ानामृत ं समरसं गगनोपमोऽहम ॥
103
अवधूत गीता
् ४१॥
ानामृत ं समरसं गगनोपमोऽहम ॥
105
अवधूत गीता
न शूपं न िवशूपं
ु पम ।्
ु पं न िवश
न श
पं िवपं न भवािम िकित ्
् ४५॥
पपं परमाथ तम ॥
106
अवधूत गीता
ु म
म ु िह संसारं ागं म
ु िह सवथा ।
् ४६॥
ु ममृत ं सहजं वु म ॥
ागाागिवषं श
107
अवधूत गीता
नावाहनं न ैव िवसजन ं वा
ु
पािण पािण कथं भवि ।
ानािन मािण कथं भवि
समासमं च ैव िशवाचनं च ॥ १॥
ु ो
न के वलं बिवबम
ु िवश
न के वलं श ु म
ु ः।
ु ः
न के वलं योगिवयोगम
108
अवधूत गीता
् २॥
ु ो गगनोपमोऽहम ॥
स वै िवम
न सानं च ैव िनरनं वा
109
अवधूत गीता
अबोधबोधो मम न ैव जातो
बोधपं मम न ैव जातम ।्
िनबधबोधं च कथं वदािम
् ५॥
पिनवाणमनामयोऽहम ॥
ु ो न च पापय
न धमय ु ो
ु ो न च मोय
न बय ु ः।
ु ं य
य ु ं न च मे िवभाित
् ६॥
पिनवाणमनामयोऽहम ॥
परापरं वा न च मे कदािचत ्
मभावो िह न चािरिमम ।्
िहतािहतं चािप कथं वदािम
् ७॥
पिनवाणमनामयोऽहम ॥
111
अवधूत गीता
112
अवधूत गीता
113
अवधूत गीता
ु ै-
उे खमां न िह िभम
े खमां न ितरोिहतं वै ।
समासमं िम कथं वदािम
् १३॥
पिनवाणमनामयोऽहम ॥
िजतेियोऽहं िजतेियो वा
न संयमो मे िनयमो न जातः ।
जयाजयौ िम कथं वदािम
115
अवधूत गीता
् १४॥
पिनवाणमनामयोऽहम ॥
116
अवधूत गीता
ु ं
संिवि मां सविवसवम
माया िवमाया न च मे कदािचत ।्
सािदकं कम कथं वदािम
् १८॥
पिनवाणमनामयोऽहम ॥
ु ं
संिवि मां सवसमािधय
ु म ।्
संिवि मां लिवलम
118
अवधूत गीता
120
अवधूत गीता
िवित िवित न िह न िह य
छोलणं न िह न िह त ।
समरसमो भािवतपूतः
लपित तं परमवधूतः ॥ २५॥
122
अवधूत गीता
पमोायः Chapter 5
123
अवधूत गीता
् २॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
अधऊिवविजतसवसमं
बिहररविजतसवसमम ।्
यिद च ैकिवविजतसवसमं
् ३॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
124
अवधूत गीता
न िह कितकिवचार इित
न िह कारणकायिवचार इित ।
पदसििवविजतसवसमं
् ४॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
न िह बोधिवबोधसमािधिरित
न िह देशिवदेशसमािधिरित ।
न िह कालिवकालसमािधिरित
् ५॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
125
अवधूत गीता
इह सविनररमोपदं
ु िवचारिवहीन इित ।
लघदीघ
126
अवधूत गीता
ु कोणिवभाग इित
न िह वतल
् ७॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
इह शूिवशूिवहीन इित
ु िवश
इह श ु िवहीन इित ।
इह सविवसविवहीन इित
् ८॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
127
अवधूत गीता
न िह िभिविभिवचार इित
बिहररसििवचार इित ।
अिरिमिवविजतसवसमं
् ९॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
न िह िशिविशप ैित
न चराचरभेदिवचार इित ।
इह सविनररमोपदं
् १०॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
128
अवधूत गीता
नन ु पिवपिवहीन इित
नन ु िभिविभिवहीन इित ।
नन ु सगि वसग िवहीन इित
् ११॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
ु ागणपाशिनब
न गण ु इित
129
अवधूत गीता
इह भाविवभाविवहीन इित
इह कामिवकामिवहीन इित ।
इह बोधतमं ख मोसमं
् १३॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
इह तिनररतिमित
न िह सििवसििवहीन इित ।
यिद सविवविजतसवसमं
् १४॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
131
अवधूत गीता
् १५॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
अिवकारिवकारमसिमित
अिवलिवलमसिमित ।
यिद के वलमािन सिमित
् १६॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
132
अवधूत गीता
अिववेकिववेकमबोध इित
अिवकिवकमबोध इित ।
यिद च ैकिनररबोध इित
् १८॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
133
अवधूत गीता
न िह मोपदं न िह बपदं
ु
न िह पयपदं न िह पापपदम ।्
न िह पूणप दं न िह िरपदं
् १९॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
यिद वणिववणिवहीनसमं
यिद कारणकायिवहीनसमम ।्
134
अवधूत गीता
यिदभेदिवभेदिवहीनसमं
् २०॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
इह सविनररसविचते
इह के वलिनलसविचते ।
िपदािदिवविजतसविचते
् २१॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
अितसविनररसवगतं
अितिनमलिनलसवगतम ।्
िदनराििवविजतसवगतं
् २२॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
न िह बिवबसमागमनं
न िह योगिवयोगसमागमनम ।्
न िह तक िवतक समागमनं
136
अवधूत गीता
् २३॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
इह कालिवकालिनराकरणं
ु
ु ाकृ शानिनराकरणम
अणम ।्
न िह के वलसिनराकरणं
् २४॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
इह देहिवदेहिवहीन इित
137
अवधूत गीता
नन ु सषु ििवहीनपरम
ु ।्
अिभधानिवधानिवहीनपरं
् २५॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
ु िवशालसमं
गगनोपमश
अितसविवविजतसवसमम ।्
गतसारिवसारिवकारसमं
् २६॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
इह धमिवधमिवरागतर-
िमह विु वविु वरागतरम ।्
इह कामिवकामिवरागतरं
् २७॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
ु
सखःखिवविज
तसवसम-
िमह शोकिवशोकिवहीनपरम ।्
ु
गिशिवविज
ततपरं
139
अवधूत गीता
् २८॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
न िकलारसारिवसार इित
न चलाचलसािवसािमित ।
अिवचारिवचारिवहीनिमित
् २९॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
140
अवधूत गीता
ु यसारिमित ।
इह सारसम
किथतं िनजभाविवभेद इित ।
िवषये करणमसिमित
् ३०॥
िकम ु रोिदिष मानिस सवसमम ॥
141
अवधूत गीता
िवित िवित न िह न िह य
छोलणं न िह न िह त ।
समरसमो भािवतपूतः
लपित तं परमवधूतः ॥ ३२॥
142
अवधूत गीता
षमोऽायः Chapter 6
अिवभििवभििवहीनपरं
नन ु कायिवकायिवहीनपरम ।्
यिद च ैकिनररसविशवं
143
अवधूत गीता
् २॥
यजनं च कथं तपनं च कथम ॥
मन एव िनररसवगतं
िवशालिवशालिवहीनपरम ।्
मन एव िनररसविशवं
् ३॥
मनसािप कथं वचसा च कथम ॥
144
अवधूत गीता
िदनराििवभेदिनराकरण-
ु
मिु दतानिदत िनराकरणम ।्
यिद च ैकिनररसविशवं
् ४॥
रिवचमसौ लन कथम ॥
गतकामिवकामिवभेद इित
गतचेिवचेिवभेद इित ।
यिद च ैकिनररसविशवं
् ५॥
बिहररिभमित कथम ॥
145
अवधूत गीता
146
अवधूत गीता
यिदभेदिवभेदिनराकरणं
यिद वेदकवेिनराकरणम ।्
यिद च ैकिनररसविशवं
् ७॥
तृतीयं च कथं तरु ीयं च कथम ॥
गिदतािविदतं न िह सिमित
िविदतािविदतं निह सिमित ।
यिद च ैकिनररसविशवं
् ८॥
िवषयेियबिु मनांिस कथम ॥
147
अवधूत गीता
Ether and air are not the truth; Earth and fire
are not the truth. If there is only one indivisible,
all-comprehensive absolute how can there be
cloud, how can there be water?
यिद कितलोकिनराकरणं
यिद कितदेविनराकरणम ।्
148
अवधूत गीता
यिद च ैकिनररसविशवं
् १०॥
ु दोषिवचारमित कथम ॥
गण
मरणामरणं िह िनराकरणं
करणाकरणं िह िनराकरणम ।्
यिद च ैकिनररसविशवं
गमनागमनं िह कथं वदित ॥ ११॥
149
अवधूत गीता
ु न िह भेद इित
कृ ितः पषो
न िह कारणकायिवभेद इित ।
यिद च ैकिनररसविशवं
ु
पषाप ु च कथं वदित ॥ १२॥
षं
तृतीयं न िह ःखसमागमनं
ु ाितीय समागमनम ।्
न गण
यिद च ैकिनररसविशवं
150
अवधूत गीता
नन ु आमवणिवहीनपरं
नन ु कारणकतृि वहीनपरम ।्
यिद च ैकिनररसविशव-
् १४॥
मिवनिवनमित कथम ॥
151
अवधूत गीता
िसतािसतं च िवतिमित
जिनताजिनतं च िवतिमित ।
यिद च ैकिनररसविशव-
् १५॥
मिवनािश िवनािश कथं िह भवेत ॥
ु
पषाप ु
ष िवनिमित
विनताविनत िवनिमित ।
यिद च ैकिनररसविशव-
् १६॥
मिवनोदिवनोदमित कथम ॥
152
अवधूत गीता
यिद मोहिवषादिवहीनपरो
यिद संशयशोकिवहीनपरः ।
यिद च ैकिनररसविशव-
ु ॥ १७॥
महमेित ममेित कथं च पनः
नन ु धमिवधमिवनाश इित
नन ु बिवबिवनाश इित ।
153
अवधूत गीता
यिद च ैकिनररसविशवं-
् १८॥
िमहःखिवःखमित कथम ॥
न िह यािकयिवभाग इित
ु
न ताशनविवभाग इित ।
यिद च ैकिनररसविशवं
् १९॥
वद कमफलािन भवि कथम ॥
नन ु शोकिवशोकिवम
ु इित
नन ु दप िवदप िवम
ु इित ।
यिद च ैकिनररसविशवं
् २०॥
नन ु रागिवरागमित कथम ॥
न िह मोहिवमोहिवकार इित
न िह लोभिवलोभिवकार इित ।
यिद च ैकिनररसविशवं
् २१॥
िववेकिववेकमित कथम ॥
155
अवधूत गीता
महं न िह ह कदािचदिप
कुलजाितिवचारमसिमित ।
अहमेव िशवः परमाथ इित
् २२॥
अिभवादनम करोिम कथम ॥
156
अवधूत गीता
ु
गिशिवचारिवशीण इित
उपदेशिवचारिवशीण इित ।
अहमेव िशवः परमाथ इित
् २३॥
अिभवादनम करोिम कथम ॥
न िह कितदेहिवभाग इित
न िह कितलोकिवभाग इित ।
अहमेव िशवः परमाथ इित
् २४॥
अिभवादनम करोिम कथम ॥
157
अवधूत गीता
न िह देहिवदेहिवक इित
अनृत ं चिरतं न िह सिमित ।
158
अवधूत गीता
िवित िवित न िह न िह य
छोलणं न िह न िह त ।
समरसमो भािवतपूतः
लपित तं परमवधूतः ॥ २७॥
159
अवधूत गीता
समोऽायः Chapter 7
राकप टिवरिचतकः
ु
पयाप ु
यिवविज
तपः ।
शूागारे ितित नो
ु िनरनसमरसमः ॥ १॥
श
लालिवविजतलो
ु ाय
य ु िवविजतदः ।
के वलतिनरनपूतो
160
अवधूत गीता
वादिववादः कथमवधूतः ॥ २॥
ु ाः
आशापाशिवबनम
ु ाः ।
शौचाचारिवविजतय
एवं सविवविजतशा-
ु िनरनवः ॥ ३॥
ं श
161
अवधूत गीता
कथिमह देहिवदेहिवचारः
कथिमह रागिवरागिवचारः ।
िनमलिनलगगनाकारं
् ४॥
यिमह तं सहजाकारम ॥
162
अवधूत गीता
गगनाकारिनररहंस-
ु िनरनहंसः ।
िवश
एवं कथिमह िभिविभं
् ६॥
बिवबिवकारिविभम ॥
के वलतिनररसव
योगिवयोगौ कथिमह गवम ।्
163
अवधूत गीता
एवं परमिनररसव-
् ७॥
मेवं कथिमह सारिवसारम ॥
के वलतिनरनसव
ु म ।्
गगनाकारिनररश
एवं कथिमह सिवसं
् ८॥
सं कथिमह रिवरम ॥
164
अवधूत गीता
ु ो
बोधिवबोध ैः सततं य
ु ः।
ैताैतःै कथिमह म
सहजो िवरजः कथिमह योगी
ु िनरनसमरसभोगी ॥ १०॥
श
165
अवधूत गीता
भाभिवविजतभो
लालिवविजतलः ।
एवं कथिमह सारिवसारः
समरसतं गगनाकारः ॥ ११॥
166
अवधूत गीता
ु ः
सततं सविवविजतय
ु ः।
सव तिवविजतम
एवं कथिमह जीिवतमरणं
् १२॥
ानाान ैः कथिमह करणम ॥
167
अवधूत गीता
िवित िवित न िह न िह य
छोलणं न िह न िह त ।
समरसमो भािवतपूतः
लपित तं परमवधूतः ॥ १५॥
168
अवधूत गीता
अमोऽायः Chapter 8
169
अवधूत गीता
्
अमो गभीराा धृितमान िजतष णः
ु ।
अमानी मानदः को मैः कािणकः किवः ॥ ३॥
170
अवधूत गीता
ु आिदमािनमलः ।
आशापाशिविनम
् ६॥
आने वतत े िनमकारं त लणम ॥
171
अवधूत गीता
172
अवधूत गीता
दाेयावधूतने िनिमतानिपणा ।
ु व ः ॥ १०॥
ये पठि च वि तेषां न ैव पनभ
इित अमोऽायः ॥ ८॥
173